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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 34 / पाण्डुलिपि - विज्ञान दाहिनी से बांयी ओर 12 5-नीचे से ऊपर की ओर । भारतीय लिपियों में ब्राह्मी और उससे जनित लिपियाँ बांयी ओर से दाहिनी ओर लिखी जाती हैं, हिन्दी भी इसी परम्परा में देवनागरी या नागरी रूप में बांयें से दांयें लिखी जाती है । खरोष्ठी दांयें से बांयें लिखी जाती है, जैसे कि फारसी लिपि, जिसमें उर्दू लिखी जाती है । साथ ही लेखन में वाक्य पंक्तियाँ ऊपर से नीचे की ओर चलती हैं। यही बात ब्राह्मी, नागरी आदि लिपियों पर लागू होती है, खरोष्ठी, फारसी आदि पर भी । पर स्वात के एक लेख में खरोष्ठी नीचे से ऊपर की ओर लिखी गई मिलती है । (2) पंक्तिबद्धता --- लिपि के अक्षरों की माप : पहले भारतीय लिपियों में अक्षरों पर शिरो - रेखाएँ नहीं होती थीं। फिर भी, वे लेख पंक्ति में बाँध कर अवश्य लिखे जाते थे । यह बात मौर्यकालीन शिलालेखों से भी प्रकट होती है । सभी अक्षर बाएँ से दाएँ सीधी पड़ी रेखाओं में लिखे गये हैं, मात्राएँ मूलाक्षरों से ऊपर लगाई गई हैं । कुछ व्यतिक्रम अवश्य हैं, पर वे प्रवृत्ति को तो स्पष्ट करते ही हैं। आगे तो रेखाओं के चिह्न बनाकर अन्य विधि से सीधी पंक्ति में लिखने के सुन्दर प्रयास मिलते हैं । रेखापाटी या कंबिका ( रूल या पटरी) का उपयोग इसी निमित्त ग्रन्थों में किया जाता था । लिपि के अक्षरों की माप भी एक लेख में बँधी हुई मिलती है, क्योंकि प्रायः प्रत्येक अक्षर लम्बाई-चौड़ाई में समान मिलता है । जिस प्रकार शब्द-प्रतिशब्द - बद्ध लेखन करते अलग बीच में कुछ अवकाश दे कर लिखा (3) मिलित शब्दावली - आज हम हैं, जिसमें एक शब्द अपने शब्द रूप में दूसरे जाता है, उस प्रकार प्राचीन काल में नहीं होता था, सभी शब्द एक दूसरे से मिला कर लिखे जाते थे । हम जानते हैं कि यूनानी प्राचीन पांडुलिपियों में भी मिलित शब्दावली का उपयोग हुआ है ।" यहीं हमें विदित होता है कि 11वीं शताब्दी के आसपास ही अमिलित अलग-अलग सही शब्दों में लिखने की प्रणाली यथार्थतः प्रचलित हुई । भारत में शिलालेखों और ग्रन्थों में ही यह मिलित शब्दावली मिलती है । इसे भी हम परम्परा का ही परिणाम मान सकते हैं। डॉ० राजबली पांडेय ने बताया है कि भारत में पृथक-पृथक शब्दों में लेखन की ओर ध्यान इसलिए नहीं गया क्योंकि यहाँ भाषा का व्याकरण ऐसा पूर्ण था कि शब्दों को पहचानने और उनके वाक्यान्तर्गत सम्बन्धों में भ्रम नहीं रह सकता था । किन्तु क्या 11वीं शताब्दी तथा यूनानी ग्रन्थों में मिलित शब्दावली का भी यही कारण हो सकता है ? हिन्दी के प्राचीन ग्रन्थों में भी मिलित शब्दावली की परम्परा मिलती है । (4) विराम चिह्न • मिलित शब्दावली की परम्परा में विराम चिह्नों (Punctuation) पर भी ध्यान नहीं जाता । प्राचीन कोर्डेक्स ग्रन्थों की यूनानी पांडुलिपियां में सातवीं-आठवीं शताब्दी ई० में विराम चिह्नों का उपयोग होने लगा था । भारत में पाँचवीं शताब्दी ई० पू० से ईसवी सन् तक केवल एक विराम चिह्न उद्भावित हुआ था । दंड, एक थाड़ी लकीर । इसे कभी-कभी कुछ वक्र [7] करके भी लिख दिया 1. भारत में कहीं-कहीं ही ब्राह्मी लेखों में प्रयोगात्मक | 2. The text of Greek MSS was, with occasional exce ptions, written continuously without seperation of words, even when the words were written seperately, the dimentions were often incorrectly made..........” - The Encyclopaedia Americana (Vol 21), P. 166 For Private and Personal Use Only
SR No.020536
Book TitlePandulipi Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyendra
PublisherRajasthan Hindi Granth Academy
Publication Year1989
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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