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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir www.kobatirth.org परिशिष्ट-एक/371 4 12 52. 7वीं शती ई० से पूर्व दुर्वासा पाश्रम विक्रमशिला संघाराम वैशाली 53. 443 ई०पू० 377 ई०पू० से यहाँ गुफाएं हैं जो पहाड़ों में खुदी हई है । चंपा की यात्रा में ह्वेनसांग यहाँ अाया था । बौद्ध तीर्थ है। यह वृज्जियों/लिच्छवियों की राजधानी थी। यहाँ बौद्ध धर्म का द्वितीय संघ सम्मेलन हुआ था। इससे यहाँ धार्मिक ग्रन्धागार था, यह अनुमान किया जा सकता है। यहाँ भी 'तक्षशिला' जैसा विद्या केन्द्र था। 500 विद्यार्थियों को पढ़ाने की क्षमता वाले प्राचार्य यहाँ थे । तक्षशिला की भांति ही यह वैदिक शिक्षा और विद्या के लिए प्रसिद्ध था। 54. प्रावैदिक / वैदिक काशी 55. वैदिक काल नैमिषारण्य भृगु वंशी शौवक ऋषि का ऋषिकुल नैमिषा राज्य में था। इसमें दस सहस्र अन्तेवासी रहते थे। 56. रामायणकाल प्रयाग: भारद्वाज आश्रम इस काल का यह विशालतम आश्रम था । यह भारद्वाज ऋषि का आश्रम था। 57. ॥ अयोध्या अयोध्या नगर के पास ब्रह्मचारियों के श्राश्रम और छात्रावासों का रामायण में उल्लेख है। पाल वंश को स्थापित करने वाले गोपाल ने यहाँ एक बौद्ध विहार बनवाया था। 58. 7वीं-8वीं अोदन्तपुरी ___शती से पूर्व (बिहार शरीफ) 59. 1801 ई० . इंडिया ऑफिस में स्थापित लाइब्ररी, लन्दन इसमें 250000 मुद्रित पुस्तकें : 175000 पूर्वी भाषाओं में शेष यूरोपीय भाषाओं में । पूर्वी में 20000 हिन्दी की, 20,000 संस्कृत-प्राकृत की, 24000 बंगला की, 10,000 गुजराती की, 9000 मराठी की, 5000 पंजाबी की, 15000 तमिल की, 6000 तेलुगु की, 5500 अरबी की, 5500 फारसी की हैं। For Private and Personal Use Only
SR No.020536
Book TitlePandulipi Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyendra
PublisherRajasthan Hindi Granth Academy
Publication Year1989
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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