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प्रकाशकीय भूमिका
राजस्थान हिन्दी ग्रन्थ अकादमी अपनी स्थापना के 20 वर्ष पूरे करके 15 जुलाई, 1989 को 21वें वर्ष में प्रवेश कर चुकी है। इस अवधि में विश्व साहित्य के विभिन्न विषयों के उत्कृष्ट ग्रन्थों के हिन्दी अनुवाद तथा विश्वविद्यालय के शैक्षणिक स्तर के मौलिक ग्रन्थों को हिन्दी में प्रकाशित कर अकादमी ने हिन्दी-जगत् के शिक्षकों, छात्रों एव अन्य पाठकों की सेवा करने का महत्त्वपूर्ण कार्य किया है और इस प्रकार विश्वविद्यालय स्तर पर हिन्दी में शिक्षण के मार्ग को सुगम बनाया है।
___ अकादमी की नीति हिन्दी में ऐसे ग्रन्थों का प्रकाशन करने की रही है जो विश्वविद्यालय के स्नातक और स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों के अनुकूल हों । विश्वविद्यालय स्तर के ऐसे उत्कृष्ट मानक ग्रन्थ जो उपयोगी होते हुए भी पुस्तक प्रकाशन की व्यावसायिकता की दौड़ में अपना समुचित स्थान नहीं पा सकते हों, और ऐसे ग्रन्थ भी जो अंग्रेजी की प्रतियोगिता के सामने टिक नहीं पाते हों, अकादमी प्रकाशित करती है। इस प्रकार अकादमी ज्ञान-विज्ञान के हर विषय में उन दुर्लभ मानक ग्रन्थों को प्रकाशित करती रही है और करेगी जिनको पाकर हिन्दी के पाठक लाभान्वित ही नहीं, गौरवान्वित भी हो सके । हमें यह कहते हुए हर्ष होता है कि अकादमी ने 330 से भी अधिक ऐसे दुर्लभ और महत्त्वपूर्ण ग्रन्थों का प्रकाशन किया है जिनमें से एकाधिक केन्द्र, राज्यों के बोझै एवं अन्य संस्थाओं द्वारा पुरस्कृत किये गये हैं तथा अनेक विभिन्न विश्वविद्यालयों द्वारा अनुशंसित ।
राजस्थान हिन्दी ग्रन्थ अकादमी को अपने स्थापना-काल से ही भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय से प्रेरणा और सहयोग प्राप्त होता रहा है तथा राजस्थान सरकार ने इसके पल्लवन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है, अतः अकादमी अपने लक्ष्यों की प्राप्ति में उक्त सरकारों की भूमिका के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करती है ।
हमें 'पाण्डुलिपि-विज्ञान' का द्वितीय संस्करण प्रकाशित करते हुए हर्ष का अनुभव हो रहा है । विद्वान् लेखक ने इस जटिल विषय को इसमें सरल एवं स्पष्ट रूप में साधिकार प्रस्तुत किया है । प्राचीन साहित्य के अध्येताओं के लिए और स्नातकोत्तर छात्रों के लिए यह अत्यन्त उपयोगी सिद्ध हुई है।
पी० बी० माथुर
अध्यक्ष राजस्थान हिन्दी ग्रन्थ अकादमी एवं
शिक्षा आयुक्त, राजस्थान सरकार, जयपुर
डॉ. राघव प्रकाश
निदेशक राजस्थान हिन्दी ग्रन्थ अकादमी
जयपुर
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