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350/पाण्डुलिपि-विज्ञान
रख-रखाव में केवल शत्रुओं से रक्षा ही नहीं करनी होती है, परन्तु पांडुलिपियों को ठीक रूप में और स्वस्थ दशा में रखना भी इसी का एक अंग है । जब पांडुलिपियाँ कहीं से प्राप्त होती हैं तो अनेक की दशा विकृत होती है ।
इसमें नीचे लिखी बातें या विकृतियाँ सम्मिलित हैं : 1. सिकुड़ने, सिलवट, गुड़ी-मुड़ी हुए पत्र । 2. किनारे गुड़ी-मुड़ी हुए कागज (पत्र)। 3. कटे-फटे स्थल या किनारे । 4. तड़कने वाले या कुरकुरे कागज । 5. पानी से भीगे हुए कागज । 6. चिपके कागज। 7.. धुंधले या धुले लेख । 8. जले कागज । 9. कागजों पर मुहरों की विकृतियाँ ।
इन विकृतियों को दूर करने के अनेक उपाय हैं, पर सबसे पहले एक कक्ष चिकित्सा के लिए अलग कर देना चाहिये । इसमें निम्नलिखित सामग्री इस कार्य के लिए अपेक्षित है :
1. मेज जिस पर ऊपर शीशा जुड़ा हो । 2. छोटा हाथ प्रेस (दाब देने के लिए)।
Paper Trimmer)। 4. कैंची (लम्बी)। 5. चाकू। 6. Poring Knives | 7. प्याले (पीतल के या इनामिल किये हुए) । 8. तश्तरियाँ (पीतल की या इनामिल की हुई)। 9. ब्रश (ऊँट के बाल के 205-1.25 सें० मी० चौड़ी)। 10. Paper Cutting Slices (सींग के बने हो तो अच्छा है)।
फुटा। 12. सुइयाँ (बड़ी और छोटी)। 13. बोदकिन (छेद करने के लिए)। 14. तख्त इनामिल किए हुए। 15. शीशे की प्लेटें। 16. देगची लेई बनाने के लिए।
17. बिजली की इस्तरी । मरम्मत या चिकित्सा की विधि क-अपेक्षित सामग्री
डॉ० के० डी० भार्गव ने ये सामग्रियां बतायी हैं : 1. हाथ का बना कागज :-यह कागज केवल चिथड़ों का बना होना चाहिये । ये
11.
फटा।
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