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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 344/पाण्डुलिपि-विज्ञान लाइब्रेरी) आदि में अब इन नये वैज्ञानिक ज्ञान और उपादानों और साधनों के कारण हस्तलेखागारों की उपयोगिता का क्षेत्र भी बढ़ गया है। क्षेत्र को बढ़ाने वाले साधनों में दो प्रमुख हैं : एक है, माइक्रोफिल्म द्वारा दूसरा है, फोटोस्टैट । माइक्रोफिल्म के एक फीते पर कई हजार पृष्ठ उतारे जा सकते है, इस हर एक फीते पर कितने ही ग्रन्थ अंकित हो जाते हैं । ऐसा एक फीता छोटे-से डिब्बे में बन्द कर रखा जा सकता है । इस प्रकार ग्रंथ अपने लेखन-वैशिष्ट्य के साथ पृष्ठ या पन्ने के यथार्थ चित्र के साथ माइक्रोफिल्म पर उतार कर सुरक्षित हो जाता है । इसे वे शत्रु नहीं स्पर्श कर पाते जिनके कारण मूल ग्रन्थ की वस्तु को हानि पहुँचती है । हाँ, माइक्रोफिल्म की सुरक्षा की वैज्ञानिक विधियाँ भी हैं, जिनसे कभी किसी प्रकार की क्षति की प्रांशका होते ही उसे सुरक्षित किया जा सकता है। किन्तु माइक्रोफिल्मांकित ग्रन्थ को आसानी से किसी भी व्यक्ति को माइक्रोफिल्म की प्रति करके दिया जा सकता है। इस पर व्यय भी अधिक नहीं होता। हाँ, माइक्रोफिल्मांकित ग्रन्थ को पढ़ने के लिए 'रीडर' (पठन-यन्त्र) की आवश्यकता होती है । बड़े संग्रहालयों में ये बहुत बड़े आकार के यन्त्र भी मिलते हैं। साथ ही 'मेजी-यन्त्र भी होता है । ऐसे पठन-यन्त्र भी हैं, जिनके साथ ही फिल्म-कैमरा भी लगा रहता है । क. मु. हिन्दी तथा भाषा-विज्ञान विद्यापीठ, आगरा में माइक्रोफिल्म कैमरा के साथ रीडर भी है । इस रीडर से पुस्तक का यथार्थ प्राकार ही दर्शित होता है। ___इसी प्रकार फोटो-स्टैट (Photo stat) यन्त्र से ग्रन्थ की फोटो-प्रतियां निकाली जा सकती हैं। ये ग्रन्थ-प्रतियाँ यथार्थ ग्रन्थ की भाँति ही उपयोगी मानी जा सकती हैं । ऐसी प्रतियाँ कोई भी पाठक प्राप्त कर सकता है, अतः सुरक्षा भी बढ़ती है, साथ ही उपयोगिता का क्षेत्र भी बढ़ जाता है। आज पुस्तकालयों एवं अभिलेखागारों आदि के रख-रखाव ने स्वयं एक विज्ञान का रूप ग्रहण कर लिया है । इस पर अंग्रेजी में कितने ही ग्रन्थ मिलते हैं। भारतीय राष्ट्रीय अभिलेखागार (National Archives of India) में अभिलेखागार में रख-रखाव (Archives-keeping)) में एक डिप्लोमा-पाठ्यक्रम का प्रशिक्षण भी दिया जाता है । पांडुलिपि-विज्ञानार्थी को यह प्रशिक्षण भी प्राप्त करना चाहिए। हम यहाँ संक्षेप में कुछ संकेतात्मक और काम-चलाऊ बातों का उल्लेख किये देते हैं जिससे इसके स्वरूप का कुछ प्राभास मिल सके और पांडुलिपि-विज्ञान का एक पक्ष अछूता न रह जाय । हम यह संकेत ऊपर कर चुके हैं कि जलवायु और वातावरण का प्रभाव सभी पर पड़ता है, तो वह लेखों और तत्सम्बन्धी सामग्री पर भी पड़ता है। किसका, कैसा, क्या प्रभाव पड़ता है, वह नीचे की तालिका में बताया गया है : ___जलवायु प्रभाव 1. गर्म और शुष्क जलवायु कागज तड़कने लगता (Brittle) है चमड़ा तथा सूख जाता है पूछा वस्तु 1. मेज पर रख कर उपयोग में लाया जाने वाला यन्त्र ।। For Private and Personal Use Only
SR No.020536
Book TitlePandulipi Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyendra
PublisherRajasthan Hindi Granth Academy
Publication Year1989
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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