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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शब्द और अर्थ की समस्या/313 9. संख्यावाचक शब्द 10. वर्तनीच्युत शब्द 11. भ्रमात् स्थानापन्न शब्द 12. अपरिचित शब्द पांडुलिपि को दृष्टि में रखकर हमने जो शब्द-भेद निर्धारित किये हैं वे ऊपर दिए गए हैं । किसी ग्रन्थ के अर्थ तक पहुंचने के लिए हमने शब्द को इकाई माना है । इनमें से बहुत-से शब्द विकृति के परिणाम हो सकते हैं । पाठालोचक इनका विचार अपनी तरह से करता है। उस पर पाठालोचन वाले अध्याय में लिखा जा चुका है । पर डॉ. चन्द्रभान रावत ने इस विषय पर जो प्रकाश डाला है, उसे इन शब्द भेदों के अन्तरंग को समझने के लिए, यहाँ दे देना समीचीन प्रतीत होता है । _ "मुद्रण-पूर्व-युग में पुस्तकें हस्तलिखित होती थीं। मूल प्रति की कालान्तर में प्रतिलिपियाँ होती थीं । प्रतिलिपिकार प्रादर्श या मूल-पाठ की यथावत् प्रतिलिपि नहीं कर सकता । अनेक कारणों से प्रतिलिपि में कुछ पाठ सम्बन्धी विकृतियां पा जाना स्वाभाविक है । इन अशुद्धियों के स्तरों को चीरते हुए मूल आदर्श-पाठ तक पहुँचना ही पाठानुसन्धान का लक्ष्य होता है। विकृतियों की परिभाषा इस प्रकार दी जा सकती है : उम समस्त पाठों को विकृत-पाठ की संज्ञा दी जायेगी जिनके मूल लेखक द्वारा लिखे होने की किसी प्रकार की सम्भावना नहीं की जा सकती और जो लेखक की भाषा, शैली और विचारधारा में पूर्णतया विपरीत पड़ते हैं। इन अशुद्धियों के कारण ही पाठानुसन्धान की आवश्यकता होती है । इस प्रक्रिया के ये सोपान हो सकते हैं : 1. मूल लेखक की भाषा, शैली और विचारधारा से परिचय, 2. इस ज्ञान के प्रकाश में अशुद्धियों का परीक्षण, 3. इन सम्भावित अशुद्धियों का परीक्षण, 4. पाठ-निर्माण, 5. पाठ-सुधार तथा 6. आदर्श-पाठ की स्थापना पाट-विकृतियों के मूल कारणों का वर्गीकरण इस प्रकार दिया जा सकता है : ( स्रोतगत : मूल पाठ विकृत हो। ( सामग्रीगत : पन्ने फटे हों, अक्षर अस्पष्ट हों। ___ 1. बाह्य विकृतियाँ ( क्रमगत : पन्नों का क्रम नियोजन दोषपूर्ण हो या छन्दक्रम ( दूषित हो । (एक से अधिक स्रोत हों। 1. अनुसंधान-पृ० 269-271. 2. वर्मा, विमलेश कान्ति-पाठ विकृतियां और पाठ मम्बन्धी निर्धारण में उनका महत्व-परिषद पत्रिका ___ (वर्ष 3, अंक 4) पृ. 48. 3. Encyclopaedia Britanica-Postgate Essay. For Private and Personal Use Only
SR No.020536
Book TitlePandulipi Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyendra
PublisherRajasthan Hindi Granth Academy
Publication Year1989
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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