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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir काल निर्धारण 289 नहीं किया जा सका । यों 927 हिजरी का पक्ष डॉ० अग्रवाल को भी भारी लगता है। कारण यही है कि यह कई प्रतियों में है। दूसरा-काल-संकेत में केवल सन् का उल्लेख है, विस्तृत तिथि-विवरण-तिथि, दिन, महीना, पक्ष नहीं दिया गया, अतः गणना और पंचांग से शुद्ध 'काल' की परीक्षा नहीं हो सकती। तीसरा कारण है, ऐतिहासिक उल्लेख : "से रसाहि दिल्ली सुलतानू चारिउ खण्ड तपइ जस भानू ।।" यह शेरशाह का दिल्ली का सुलतान होना ऐतिहासिक काल-क्रम में 927, 936, 945 हिजरी से मेल नहीं खाता । 947 कुछ ठीक बैठता है। पर "तपे जस भान" तो 948 हि० में ही सम्भव था । इस ऐतिहासिक घटना ने 927 से असंगत होकर यथार्थ अमेला खड़ा कर दिया है। इसके समाधान में ही यह अनुमान प्रस्तुत करना पड़ा कि जायसी ने पद्मावत की रचना प्रारम्भ तो 927 हिजरी में की, केवल 'शाहेवक्त' विषयक पंक्तियाँ सन् 948 हि० में लिखीं। सन् के विविध पाठ-भेदों को विविध ऐतिहासिक घटनाओं का स्मारक मानने की कल्पना भी इतिहास की पृष्ठभूमि से संगति बिठाने की दृष्टि से रोचक है । प्रामाणिक कितनी हैं, यह कहना कठिन है । सामाजिक परिस्थितियाँ एवं सांस्कृतिक उल्लेख यह पक्ष भी उभयाश्रित है । अंतरंग से उपलब्ध सामाजिक एवं सांस्कृतिक सामग्री की संगति बाह्य साक्ष्य से बिठाकर काल-निर्णय में सहायता ली जाती है । बाह्य साक्ष्य काल-निर्धारण में प्रमुख रहता है अतः इसे बाह्य साक्ष्य में रखा जा सकता है। __ यह भी तथ्य है कि सामाजिक और सांस्कृतिक आधार को काल-क्रम निर्धारण में उपयोगी बनाने के लिए उनका स्वयं का काल-क्रम किसी अन्य प्राधार से, वह अधिकांशतः ऐतिहासिक हो सकता है, सुनिश्चित करना होगा। यह भी ध्यान में रखना होगा कि सामाजिक और सांस्कृतिक सामग्री को बिल्कुल अलग-अलग करके नहीं देखा जा सकता । दोनों का इतना अन्योन्याश्रित सम्बन्ध है कि दोनों को एक मान कर चलना ही अधिक समीचीन प्रतीत होता है। सांस्कृतिक एवं सामाजिक साक्ष्य से काल-निर्धारण का उदाहरण डॉ० माताप्रसाद गुप्त द्वारा सम्पादित 'बसन्त विलास और उसकी भाषा' शीर्षक पुस्तक से मिलता है। - डॉ० माताप्रसाद गुप्त से पूर्व 'बसन्त विलास' के काल-निर्णय का प्रयत्न प्रो० डब्ल्यू० नारमन ब्राउन और उनसे पूर्व श्री कान्तिकाल बी० व्यास कर चुके थे। इन दोनों ने भाषा को आधार मान कर ऊपरली और निचली काल सीमाएँ निर्धारित की थीं-वे थीं 1400-1424 के बीच । __ इसका खण्डन और अपने मत का संकेत उक्त पुस्तक की भूमिका में रचना-काल शीर्षक में संक्षेप में यों दिया है : "कृति के रचना-काल का उसमें कोई उल्लेख नहीं है। उसकी प्राचीनतम प्राप्त For Private and Personal Use Only
SR No.020536
Book TitlePandulipi Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyendra
PublisherRajasthan Hindi Granth Academy
Publication Year1989
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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