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काल. निर्धारण/287
जायसी के वर्णन से विदित होता है कि शेरशाह उस समय दिल्ली के सिंहासन पर बैठ चुका था और उसका भाग्योदय चरम सीमा पर पहुँच गया था । हुमायूं के ऊपर शेरशाह की विजय चौसा युद्ध में 26 जून, 1539 को और कन्नौज के युद्ध में 17 मई, 1540 को हई । दिल्ली के सुलतान पद पर उसका अभिषेक 26 जनवरी, 1542 को हना । जायसी ने पद्मावत के प्रारम्भ में तिथि का उल्लेख इस प्रकार किया है :
सन नौस संतालिस ग्रहै । कथा प्रारम्भ बैन कवि कहै ।।24।।
इसका 947 हिजरी 1540 ई० होता है। उस समय शेरशाह हुमायूं को परास्त करके हिन्दुस्तान का सम्राट बन चुका था, यद्यपि उमका अभिषेक तब तक नहीं हुआ था। 947 के कई नीचे लिखे पाठान्तर मिलते हैं :
1. गोपाल चन्द्र जी की तथा माताप्रसाद जी की कुछ प्रतियाँ
927 हि = 1521 ई० पद्मावत का अलाउल कृत बंगला अनुवाद 927 हि० = 1551 ई० 2. भारत कला भवन काशी की कैथी प्रति
936 हि० = 1530 ई० 3. 1109 हि० (1697 ई०) में लिखित माताप्रसाद की प्रति द्वि० 3
945 हि० = 1539 ई० 4. माताप्रसाद जी की कुछ प्रतियां, तथा रामपुर की प्रति
947 हि० = 1540 ई० 5. बिहार शरीफ की प्रति
948 हि० = 1542 ई० 927,936, 945, 947, 948 इन पाँच तिथियों में हस्तलिखित प्रतियों के साक्ष्य के आधार पर 927 पाठ सबसे अधिक प्रामाणिक जान पड़ता है। पद्मावत की सन् 1801 की लिखी एक अन्य प्रति में भी ग्रन्थ रचना-काल 927 मिला था (खोज रिपोर्ट, 14वाँ वार्षिक विवरण, 1929-31, पृ० 62)। 927 पाठ के पक्ष में एक तर्क यह भी है कि यह अपेक्षाकृत क्लिष्ट पाठ है । विपक्ष में यही युक्ति है कि शेरशाह के राज्यकाल से इसका मेल नहीं बैठता । शुक्ल जी ने प्रथम संस्करण में 947 पाठ रखा था, पर द्वितीय संस्करण में 927 को ही मान्य समझा क्योंकि अलाउल के अनुवाद में उन्हें यही सन् प्राप्त हा था । अवश्य ही यह एक ऐसी साक्षी है जो उस पाठ के पक्ष में विशेष ध्यान देने के लिये विवश करती है। 927 या 947 की संख्या ऐसी नहीं जिसके पढ़ने या अर्थ समझने में रुकावट होती। अतएव उसके भी जब पाठ-भेद हए तो उसका कुछ सविशेष कारण ऐसा होना चाहिये जो सामान्यतः दूसरे प्रकार के पाठान्तरों में लागू नहीं होता । मैंने अर्थ करते समय शेरशाह वाली युक्ति पर ध्यान देकर 947 पाठ को समीचीन लिखा था, किन्तु
1.
यह अनुवाद 1645-1652 के बीच मुदूर अराकान राज्य के मन्त्री मगन ठाकुर ने अलाउल नामक कवि से कराया थासेख मुहम्मद जती। जखने रचिले पुथी। संख्या सप्तविंश नव शत । सन नौ से छत्तीस जब रहा। कथा उरेहि वएन कवि-कवि कहा। (भारत कला भवन, काशी की कैथी प्रति)
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