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282/पाण्डुलिपि-विज्ञान
का मार्ग प्रशस्त किया। किन्तु अन्तस्साक्ष्य से सिद्ध है कि तुलसी भूतप्रेत पूजा के विरोधी
4. इसमें 'विनय पत्रिका' को 'रामविनयावली' नाम दिया गया है। कोई ऐसी प्रति नहीं मिलती जिसमें यह नाम उपलब्ध हो। हाँ, रामगीतावली नाम अवश्य पाया जाता है।
. 5. इसके अनुसार 'गीतावली' (सं० 1616-18) कवि की सर्वप्रथम कृति है । 'कृष्णगीतावली' (सं० 1628), 'कवितावली' (सं० 1628-42), 'रामचरित मानस' (1631-33), 'विनय पत्रिका' (1639), 'रामललानहछु' (1639), 'जानकी मंगल' (1639), 'पार्वती मंगल' (1639) और दोहावली (1640) बारह वर्षों के आयाम में लिखी गयी। सं० 1670 में चार पुस्तकों की रचना हुई : 'बरबै रामायण', 'हनुमान बाहक', 'वैराग्य मंदीपनी' तथा 'रामाज्ञा प्रश्न'। इसमें अनेक प्रसंगतियाँ अवेक्षणीय हैं। 'गीतावली'-जैसी प्रौढ़ कृति प्रारम्भिक बतलायी गयी है और 'वैराग्य संदीपनी' एवं रामाज्ञा-प्रश्न' के सदृश अप्रौढ़ कृतियाँ अन्तिम । तीस वर्षों (1640-70) तक कवि ने कोई रचना नहीं की । क्या उसकी प्रतिभा मूच्छित हो गई थी ?
6. इसमें 'रजियापुर' (राजापुर) को तुलसी का जन्म स्थान कहा गया है। लेकिन ऐतिहासिक स्रोतों से सिद्ध है कि सं० 1813 तक उस स्थान का नाम 'विक्रमपुर' रहा है ।
7. इसके अनुसार सं० 1616 में सूरदास ने चित्रकूट पहुँचकर तुलसी को 'सागर' दिखाया और आशीष माँगा । सं० 1616 तक तो तुलसी ने एक भी रचना नहीं की थी।
और उनकी कीर्ति 'रामचरित मानस' की रचना (सं0 1631) के बाद फैली। उन्हें 'सागर' दिखाने की क्या तुक थी? यह भी हास्यास्पद लगता है कि वयोवृद्ध, प्रतिष्ठित और अंधे सूरदास ने चित्रकूट जाकर उन्हें 'सागर' दिखाया।
8. इसमें वर्णित है कि सं० 1616 में मीराबाई ने तुलसी को पत्र लिखा था । मीरां मं० 1603 तक दिवंगत हो चुकी थीं, 1616 में उन्होंने पत्र कैसे लिखा?
9. यद्यपि लेखक ने केशवदास-सम्बन्धी घटनाओं के निश्चित समय का स्पष्ट निर्देश नहीं किया है तथापि सन्दर्भ से अवगत है कि वे 1643 के लगभग तुलसी से मिले और सं० 1650 के लगभग केशव के प्रेत ने तलसी को घेरा। स्वयं केशवदास के अनुसार 'रामचन्द्रिका' का रचनाकाल सं० 1658 है, न कि सं० 1643 । और, यह गप्प की हद है कि केशव ने रात भर में 'रामचन्द्रिका' का निर्माण कर डाला----अपने को अप्राकृत कवि सिद्ध करने के लिए। इसके अतिरिक्त सं० 1651 के लगभग केशव का प्रेत तुलसी से कैसे मिला ? यह तथ्य निर्विवाद है कि उनका देहान्त सं० 1670 के बाद हुआ । उन्होंने अपनी 'जहांगीर-जस-चन्द्रिका' का रचना काल सं० 1669 बतलाया है ।
• 1. दोहावली, 65; रामचरितमानस, 2/1671 2. मोरह से अट्ठावना कातक मुदि बुधवार ।
रामचन्द्र की चन्द्रिका तव लीनो अवतार । रामचन्द्रिका, 1/6 3. सौरह से उनहत्तरां माधव मास विचारु । जहाँगीर सक साहि की करी चन्द्रिका चारु ।।
जहाँगीर जस चन्द्रिका, 2।
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