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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 280/पाण्डुलिपि-विज्ञान (क) ऐतिहासिक उल्लेख (ख) कवियों-ग्रन्थकारों के उल्लेख (ग) समय-वर्णन (घ) सांस्कृतिक बातें (ङ) सामाजिक परिवेश 3. भाषा वैशिष्ट्य से (क) व्याकरणगत (ख) शब्दगत (ग) मुहावरागत 3. वैज्ञानिक क-प्राप्ति-स्थान की भूमि का परीक्षण ख-वृक्ष परीक्षण ग-कोयले से प्रादि बाह्य साक्ष्य जब किसी ग्रंथ में रचना-काल न दिया गया हो तो इसके निर्णय के लिए बाह्य साक्ष्य महत्त्वपूर्ण रहता है। इसका एक रूप तो यह होता है कि सन्दर्भ ग्रन्थ में देखा जाये । ऐसी पुस्तकें और सन्दर्भ ग्रन्थ मिलते हैं जिनमें कवि और इनके ग्रंथों का विवरण दिया होता है। उदाहरणार्थ, 'भक्तमाल और उसकी टीकाओं' में कितने ही भक्त कवियों के उल्लेख हैं। उनकी सामग्री में आये संकेतों से कवि या उसकी कृति के काल-निर्धारण में सहायता मिल सकती है । अन्य साक्षियों और प्रमाणों के अभाव में कम से कम 'भक्तमाल' में पाये उल्लेख से कालनिर्धारण की दृष्टि से निचली सीमा तो मिल ही जाती है, क्योंकि जिन कवियों का उल्लेख उसमें हुअा है, वे सभी 'भक्तमाल' के रचना-काल से पूर्व ही हो चुके होंगे। दूसरे शब्दों में उनका समय 'भक्तमाल' के रचना-काल के बाद नहीं जा सकता। .. किन्तु इस सम्बन्ध में भी एक बात ध्यान में रखनी होगी कि 'भक्तमाल' जैसी कृतियों में, जैसे सभी कृतियों में सम्भव है प्रक्षिप्तांश या क्षेपक हों, ऐसे अंश हों जो बाद में जोड़े गये हों । प्रक्षेपों की विशेष चर्चा पाठालोचन वाले अध्याय में की गयी है, अतः ऐसे सन्दर्भ ग्रन्थ के उसी अंश के ऊपर निर्भर किया जा सकता है जो मूल है, क्षेपक नहीं। इन सन्दर्भ ग्रन्थों में ऐसे ग्रन्थ भी हो सकते हैं जो पूरी तरह किमी कवि पर ही लिखे गये होंजैसे 'तुलसी--चरित' और 'गोसाई-चरित ।' तुलसी चरित महात्मा रघुवरदास रचित है। ये तुलसी के शिष्य थे। यह ग्रन्थ आकार में महाभारत के समान कहा गया है और 'गोसाई चरित' के लेखक बेणी माधवदास हैं । यह वृहद् ग्रन्थ था जो आज उपलब्ध नहीं। बेणीमाधवदास ने इस 'गोसाई चरित' से दैनिक पाठ के लिए एक छोटा संस्करण तैयार किया-यह 'मूल गुसाई चरित' कहलाया, यह उपलब्ध है। बेणीमाधवदास गोस्वामी तुलसीदास के अन्तेवासी थे। इसमें इन्होंने For Private and Personal Use Only
SR No.020536
Book TitlePandulipi Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyendra
PublisherRajasthan Hindi Granth Academy
Publication Year1989
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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