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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 270/पाण्डुलिपि-विज्ञान सं० 494 लिखा है । लक्ष्मणसेन के एक संवत् के समकालीन समकक्ष दूसरे शक-संवत् का उल्लेख है। इससे दोनों का अन्तर विदित हो जाता है और हम जान जाते हैं कि यदि लक्ष्मणसेन संवत् में 1041 जोड़ दिये जायें तो शक संवत् मिल जायेगा। शक संवत से अन्य संवतों और सन् के वर्ष ज्ञात हो सकेंगे। फलतः किसी अन्य संवत् से सम्बन्ध होता है, तो काल-चक्र में यथास्थान बिठाने में सहायता मिलती है। ___ कुछ ऐसे सन् या संवत् भी हैं, जिनसे किसी अज्ञात संवत् का सम्बन्ध ज्ञात हो जाय तब भी काल-क्रम में ठीक स्थान जानना कठिन रहता है और इसके लिये विशेष गरिणत का सहारा लेना पड़ता है । जैसे हिजरी सन् से संवत् विदित भी हो जाय तब भी गणित की विशेष सहायता लेनी पड़ती है क्योंकि इसके महीने और वर्षों का मान बदलता रहता है क्योंकि यह शुद्ध चान्द्र-वर्ष है। पंचांगों में यदि इस संवत् का भी उल्लेख हो तो उसकी सहायता से भी इसको काल-क्रम में ठीक स्थान या काल जाना जा सकता है। संवत्-काल जानना भारत में काल-संकेत विषयक कुछ बातें ऊपर बतायी जा चुकी हैं। अब तक हम देख चुके हैं कि पहले राज्यवर्ष का उल्लेख और उस वर्ष का विवरण अक्षरों में दिया गया, बाद में अक्षरों और अंकों दोनों में, और फिर अंकों में ही। बाद में ऋतुओं के भी उल्लेख हुए-ग्रीष्म, वर्षा और हेमन्त, ये तीन ऋतुएँ बतायी गई, उनके पास (पक्ष) और उनके दिन भी दिये गये । आगे महीनों का उल्लेख भी हुआ। राज्य-वर्ष से भिन्न एक संवत् का और उल्लेख किया जाने लगा। नियमित संवत् के प्रचार से राज्य-वर्ष के उल्लेख की प्रथा धीरे-धीरे उठ गई, संवत् के साथ महीने, शुक्ल या कृष्ण पक्ष, तिथि और बार या दिन को भी बताया जाने लगा। इतने विस्तृत विवरण के साथ और भी बातें दी जाने लगीं-जैसे-शशि, संक्रान्ति, नक्षत्र, योग, करण, लग्न, मुहूर्त आदि । इस सम्बन्ध में यह जानना आवश्यक है कि भारत में दो प्रकार के वर्ष चलते हैं सौर या चान्द्र । वर्ष का प्रारम्भ कार्तिकादि, चैत्रादि ही नहीं होता आषाढ़ादि और श्रावणादि भी होता है। सौर वर्ष राशियों के अनुसार बारह महीनों में विभाजित होता है, क्योंकि एक राशि पर सूर्य एक महीने रहता है, तब दूसरी राशि में संक्रमण करता है, इसलिये वह दिन संक्रान्ति कहलाता है, जिस राशि में प्रवेश करता है उसी की संक्रान्ति मानी जाती है, उसी दिन से सूर्य का नया महीना आरम्भ होता है। बारह राशियाँ इस प्रकार हैं : ___1. मेष मेष राशि से सौर वर्ष प्रारम्भ होता है, यह मेष राशि का महीना बंगाल में बैशाख और तमिलभाषी क्षेत्र में चैत्र (या चित्तिरह) कहलाता है] | 2. वृष, 3. मिथुन, 4. कर्क, 5. सिंह, 6. कन्या, 7. तुला, 8. वृश्चिक, 9. धनुष, 10. मकर, 11. कुम्भ तथा 12. मीन । मेष से मीन तक सूर्य की राशि-यात्रा भी प्रारम्भ से अन्त तक एक वर्ष में होती है। पंजाब तथा तमिलभाषी क्षेत्रों में सौर माह का प्रारम्भ उसी दिन से माना जाता है जिस दिन संक्रान्ति होती है, पर बंगाल में संक्रान्ति के दूसरे दिन से महीने For Private and Personal Use Only
SR No.020536
Book TitlePandulipi Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyendra
PublisherRajasthan Hindi Granth Academy
Publication Year1989
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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