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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पाठालोचन/245 (2) तुलनात्मक भाषा वैज्ञानिक पद्धति-उक्त पद्धति में छन्द पर विशेष विचार किया जाता है । परिणामतः भाषाओं के पारिवारिक संबंधों का निर्धारण होता है और लुप्तप्रायः भाषाओं के उच्चार का आनुमानिक पुनरुद्धार प्रयोगवादी स्वन-वैज्ञानिकों ने छंद निर्माण की व्याख्या अनुतान की अभिरचना के आधार पर की है जो उस भाषा के बोलने वाले प्रयोग में लाते हैं । छंदों का अध्ययन तीन रूपों में किया जाता है (1) लेख वैज्ञानिक, (2) संगीतात्मक, और (3) ध्वनिक । लेख-विज्ञान में ठोक-ठीक ध्वनियों एवं अनुतानों का प्रयोग संगीतात्मक रूप में होता है । संगोतात्मक-अध्ययन में छंद संगीत की लय के सदृश होता है जिसका ज्ञापन संगीत-चिह्नक के द्वारा हो सकता है । यह पद्य के प्रात्मपरकतालोकन के झुकाव को समृद्ध करता है । ध्वनिक अध्ययन स्वराघात, प्रबलता तथा संधि को विभक्त करता है और अर्थ पर कोई ध्यान नहीं देता है । यह पद्य की ध्वनि का अनुक्रम स्वीकार करता है और अर्थ तथा शब्द एवं वाक्यांश गीमा (Boundary) के लिए परेशान नहीं होता है । इस प्रकार भाषा के खण्डेतर पुनः निर्माण के अनन्तर खण्डीय पुननिर्माण सरल हो जाते हैं क्योंकि खण्डेतर ध्वनि विस्तार खण्डीय व्यनियों के प्रयोग के नियामक होते हैं । त्रुटियाँ प्रायः विपरीत दिशा से पुनर्निर्माण के कारण होती हैं। (3) संकल्पनात्मक पद्धति-उक्त पद्धति में अभिव्यंजना की इकाइयों को पार्यतिक रूप में संक्षिप्त किया जाता है और तब तर्क-संगत प्रमेयों का सरलीकरना प्रारम्भ होता है जो कहानी के अभिप्राय-परिगणन में सहायक होते हैं, जिसके सहारे कथ्य की तुलना की जाती है। काव्य में वे परिवेश के ग्रहण के तरीके को बताते हैं जिससे कविता का निर्माण होता है । इस प्रकार पाठ के संक्षिप्तीकरण से अलंकरण-काटि, निर्माण कला एवं रचनाकार की वैयक्तिक शैली स्पष्ट हो जाती है । यह पद्धति सूक्ष्म संरचनात्मक संक्राभ्य पद्धति से अनेक रूपों में भिन्न है । सूक्ष्म संरचना एक धारणा मात्र है जो भाषा-विशेष के वाक्यों की प्रजनक होती है। व्याकरण की सरलता से इसकी प्रकृति एवं अवयवों का निर्धारण होता है । संकल्पनात्मक प्रतिमान भावानयन है जो एक ही विषय से सम्बन्ध एक या अनेक वाक्यों के संक्षिप्तीकरण से उत्पन्न होता है । सूक्ष्म संरचना में हर शब्द की कैफियत तलाश करनी होती है लेकिन संकल्पनात्मक प्रतिमान परिवर्त्य सम्बन्धों के संक्षिप्तीकरण का उद्धरण मात्र है । फिर सूक्ष्म संरचना में भावानयन क्रमशः नहीं होता है, जबकि संकल्पनात्मक में क्रमशः होता है। इन तीनों पद्धतियों के योग से कथ्य एवं भाषा दोनों का पुनः निर्माण प्रामाणिक रूप से सम्भव है और विकृतियों का निराकरण अत्यन्त सरल एवं सफल ।। DO 1. शर्मा, छोटेलाल (डॉ.)-हिन्दी पाठ-शोधन विज्ञान-विश्वभारती पत्रिका (खण्ड 13, अङ्क 4), पृ० 330। For Private and Personal Use Only
SR No.020536
Book TitlePandulipi Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyendra
PublisherRajasthan Hindi Granth Academy
Publication Year1989
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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