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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 232/पाण्डुलिपि-विज्ञान राजस्थानी तथा गुजराती को इस समय की प्रतियों में तो ये प्रवृत्तियाँ : प्रचुरता से पाई जाती हैं । फलतः वर्तनी-सम्बन्धी इन प्रवृत्तियों का परिहार करके ही प्रति के पाठ पर विचार करना उचित होगा और इस प्रकार के ..परिहार के अनन्तर मो० का पाठ किसी भी प्रति से बुरा नहीं रहता है, वरन् वह प्रायः प्राचीनतर और इसलिए कभी-कभी दुर्बोध भी प्रमाणित होता है, यह सम्पादित पाठ और पाठांतरों पर दृष्टि डालने पर स्वतः स्पष्ट हो जायगा । "अतः इस प्रति को हम ।' मानेंगे और जहाँ-जहाँ इस प्रति का उल्लेख करेंगे।' का ही उल्लेख करेंगे।" यदि इस समस्त कथन का विश्लेषण किया जाय तो विदित होगी कि इसके परिचय में निम्न बातें दी गई हैं--- (क) प्रति के प्राप्ति स्थान एवं उसके स्वामी का परिचर्य(ख) 'प्रति की दशा (1) पूरी है या अधूरी है या कुछ पृष्ठ नहीं हैं, या फटे है या कीट-भक्षित हैं ? (2) पृष्ठ में पंक्तियों की और शब्दों की संख्या; (3) स्याही कैसी, एक रंग की या दो की, (4) कागज़ कैसा, (5) सचित्र या सादा ? कितने चित्र ? (ग) छन्द संख्या पृष्टगत तथा कुल ग्रन्थ में कुछ त्रुटित पत्र, हों तो उनके सम्बन्ध में भी अनुमान । (घ) लेख की प्रवृत्ति सुलेख, कुलेख, स्पष्ट आदि । (ङ) आकार-फुटं तथा इंच मैं । (च) 'प्राप्ति से उपाय । (छ) पुष्पिका। (ज) ग्रंथ आदि का इतिहास । (झ) ..पाठ-परम्परा तथा पाठ-विषयक उल्लेखनीय बातें । वर्तनी भेद के उदाहरणों के साथ। (न) इस शोध की दृष्टि से इस ग्रन्थ का महत्त्व । ग्रन्थों का यह क्रम 'कालक्रमानुसार' भी रखा जा सकता है, पर नाम उसका 'क्रमांक ही बनायेगा । हाँ, यदि एक ही सन् या संवत में एक ही प्रति मिलती है, और पूरी सूची-भर में ऐसी ही स्थिति हो तो सन् या संवत् को भी 'संकेत माना जा सकता है : यथा, सन् 1762 वाली प्रति आदि । प्रतिलिपिकार-प्रणाली ग्रन्थों के नाम-संकेत 'अंकों में न रखकर ग्रन्थ के प्रतिलिपिकार के नाम के पहले अक्षर के आधार पर रखे जा सकते हैं जैसे 'बीसलदेव रास' की एक प्रति का संकेत 'प' | उसके प्रतिलिपिकार 'पण्डित सीहा' के प्रथम अक्षर के आधार पर रखा गया है। स्थान संकेत प्रणाली गन्ध की प्रतिलिपि अथवा रचना के स्थान का जाल्लेख्य सहक की पुष्पिकार में हो तो TAITI T 1. गप्त, माताप्रसाद (डॉ.)-पृथ्वीराज For Private and Personal Use Only
SR No.020536
Book TitlePandulipi Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyendra
PublisherRajasthan Hindi Granth Academy
Publication Year1989
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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