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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir लिपि- समस्या / 213 इनसे फायदा यह है कि एक तो व और य का निश्चित पता चल जाता है, अन्यथा कोप, य को मयाप आदि श्रादि समझने की भ्रांति हो सकती है । दूसरे यह पता लग जाता है कि या तो रचना, अथवा लिपिकार, राजस्थानी है, और सामान्यतया जो भूलें राजस्थानी लिपिकार करता है, वे सम्बन्धित प्रति में भी होंगी । ड और ड़ पृथक् ध्वनियाँ हैं । कहीं-कहीं दोनों के लिए केवल 'ड' ही लिखा मिलता है । पहचान यह है कि 'ड' श्रादि में नहीं प्राता । इसके अतिरिक्त जो भ्रांति हो सकती है, उसका निराकरण अन्य उपायों से होगा । चन्द्र बिन्दु का प्रयोग कहीं भी नहीं होता । जहाँ चन्द्र बिन्दु जैसा प्रयोग होता है, निश्चित समझना चाहिए कि या तो यह छूटे हुए अंश को द्योतित करने का ( ) चिह्न है, अथवा बड़ी 'ई' की मात्रा ( हजारों प्रतियों में मुझे तो एक भी चन्द्र बिन्दु का उदाहरण नहीं मिला ।) ध्यातव्य है कि गुजराती लिपि में चन्द्र-बिन्दु नहीं है । भाषा - शास्त्रीय और सांस्कृतिक दृष्टियों राजस्थान का उससे विशेष सम्बन्धों के कारण भी ऐसा हुआ लगता है । क्ष को ष्य लिखा जाता है। उन्नीसवीं शताब्दी से 'क्ष' भी लिखा मिलने लगता है, किन्तु यह ध्वनि संस्कृत शब्दों के अतिरिक्त राजस्थानी में नहीं है । ङ नहीं है । ध्यातव्य है कि ड़ को 'ङ' करके लिखा जाता है इसको 'ड' समझना चाहिए 'ङ' नहीं । 'ञ' को पाठशालाओं में तो 'नदियो खांडो चाँद' करके पढ़ाया जाता था । खंडित चन्द्राकार होने से इसको ऐसा कहा गया । केवल बारहखड़ी काव्य में ही 'ञ' आया है । इसी प्रकार 'ड' भी बारहखड़ी काव्य में प्रयुक्त हुआ है । अन्य स्थानों पर ये दो (ङ और ञ) नहीं आते । ज्ञ को सदा ग्य करके लिखा जाता है । For Private and Personal Use Only विराम चिह्नों के लिए चार बातें देखने में आई हैं- (,) कोमा का प्रयोग नहीं होता, केवल पूर्ण विराम का होता है। (2) पूर्ण विराम या तो ( 1 ) की भाँति लिखा जाता है अथवा (3) विसर्ग की भाँति ( : ) या (4) कुछ स्थान छोड़ दिया जाता है । विराम चिह्न रूप में विसर्ग अक्षर से ठीक जुड़ती हुई लगाकर कुछ जगह छोड़कर लगाई जाती है, यथा 'जागो चाहिजै काम करणौ चाहिजे' आदि । इसी प्रकार कुछ न लगाकर रिक्त स्थान छोड़ने का तात्पर्य भी पूर्ण विराम है, यथा 'जाणो चाहिजै = काम कररणो चाहिजे' । रेखांकित स्थान पर पूर्ण विराम मानना चाहिए । न छूटे हुए अक्षर और मात्रादि, तथा जुड़वे संकेत (-) के लिए ये बातें दृष्टव्य हैं:छूटा हुआ अक्षर दाएँ, बाँए हाशिये में, मात्रादि भी हाशिये में लिखी जाती हैं । किस हाशिये में कौन-सा अक्षर और मात्रादि लिखा जाये इसका सामान्य नियम यह है कि आधे से पूर्व तक कोई अक्षरादि छूट गया है, तो बाएँ में और बाद में कोई अक्षरादि छूट गया है तो दाएँ में लिखा जाता है। इसका चिह्न अथवा / अथवा L है । अन्तिम को आधा प या = न समझना चाहिए। है, तो वह प्रायः ऊपर के स्थान पर या नीचे के स्थान पर लिखी जाती है । मूल लिखावट में दो स्थानों पर चिह्न देकर ऊपर या नीचे (ओ) या (वो) लिखकर छूटी हुई पंक्ति लिखते हैं । यह पंक्ति प्रधान बाएँ हाशिये से कुछ हटकर दाहिनी ओर होती है, ताकि पाठक को आसानी से पता चल जाए (प्रो अर्थात् प्रोली - Live, और वो अर्थात् वोली > श्रोली । यदि अर्ध या पूर्ण पंक्ति छूट गई AA
SR No.020536
Book TitlePandulipi Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyendra
PublisherRajasthan Hindi Granth Academy
Publication Year1989
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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