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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 200/पाण्डुलिपि-विज्ञान (भारतीय साहित्य-जनवरी, 1959) इस अशोक लिपि से विकसित होकर भारत की विविध लिपियाँ बनी हैं। इन लिपियों की आधुनिक वर्णमाला से तुलनात्मक रूप बताने के लिए पं० उदयशंकर शास्त्री ने एक चार्ट बनाया है, वह यहाँ उद्धृत किया जाता है । भारत में लिपि-विचार श्री गोपाल नारायण बहुरा जी ने लिपि के सम्बन्ध में जो टिप्पणियाँ भेजी हैं, उनमें पहले लिपि विषयक प्राचीन उल्लेखों की चर्चा की गयी है । वे लिखते हैं : _ "बौद्धग्रन्थ 'ललितविस्तार'' के दसवें अध्याय में 64 लिपियों के नाम आये हैं। 1-ब्राह्मी, 2-खरोष्ठी, 3-पुष्करसारी, 4-अंगलिपि, 5-बंगलिपि, 6-मगधलिपि, 7-मंगत्यलिपि, 8-मनुष्यलिपि, 9-अंगुलीय लिपि, 10-शकारिलिपि, 11-ब्रह्मवल्ली, 12-द्राविड़, 13-कनारि, 14-दक्षिण, 15-उग्र, 16-संख्या लिपि, 17-अनुलोम, 18-ऊर्ध्वध्वनु, 19-दरदलिपि, 20-खास्यलिपि, 21-चीनी, 22-हूण, 23-मध्याक्षरविस्तार लिपि, 24-पुष्पलिपि, 25-देवलिपि, 26-नाग लिपि, 27-यक्षलिपि, 28-गन्धर्वलिपि, 29-किन्नरलिपि, 30-महोरगलिपि, 31-असुरलिपि, 32-रुड़लिपि, 33-मृगचक्र लिपि, 34-चक्रलिपि, 35-वायुमरुलिपि, 36-मौमदेवलिपि, 37-अन्तरिक्षदेवलिपि, 38-उत्तरबुरुद्वीपलिपि, 39-अपरगौडादिलिपि, 40-पूर्वविवेहलिपि, 41-उत्क्षेपलिपि, 42-निक्षेपलिपि, 43-विक्षेप लिपि, 44-प्रक्षेप लिपि, 45-सागर लिपि, 46-ब्रजलिपि, 47-लेख-प्रतिलेख लिपि, 48-अनुद्रुतलिपि, 49-शास्त्रवर्तलिपि, 50-गणावर्तलिपि, 51-उत्क्षेपावर्त, 52-विक्षेपावर्त, 53-पादलिखितलिपि, 54-द्विरुत्तरपदसन्धिलिखित लिपि, 55-दशोत्तरपदसंधिलिखित लिपि, 56-अध्याहारिणी लिपि, 57-सर्वरुतसंग्रहणी लिपि, 58-विद्यानुलोभलिपि, 59-विमिश्रितलिपि, 60-ऋषितपस्तप्तलिपि, 61-धरणीप्रेक्षजालिपि, 62-सर्वोषधनिष्यन्दलिपि, 63-सर्वसारसंग्रहणी लिपि, 64-सर्वभूतरुद्ग्रहणी लिपि । उक्त लिपियों के नाम पढ़ने से ही ज्ञात हो जायेगा कि इनमें से बहुत-से नाम तो लिपि-योतक न होकर लेखन-प्रकार के हैं, कितने ही कल्पित लगते हैं और कितने ही नाम पुनरावृत्त भी हैं। किन्तु डॉ० राजबली पांडेय इस मत को मान्यता नहीं देते। उन्होंने इन चौसठ लिपियों को वर्गीकृत करके अपनी व्याख्या दी है। इन लिपियों पर डॉ० पाण्डेय की पूरी टिप्पणी यहाँ उद्धृत की जाती है । लिखते हैं कि : "ऊपर की सूची में भारतीय तथा विदेशी उन लिपियों के नाम हैं जिनसे उस काल में, जबकि ये पंक्तियां लिखी गयी थीं, भारतीय परिचित थे या जिनकी कल्पना उन्होंने की थी। पूरी सूची में से केवल दो ही लिपियां ऐसी हैं जिन्हें साक्षात प्रमाण के प्राधार 1. मूल 'सलितविस्तार' अन्य संस्कृत में है इसमें बुख का चरित वर्णित है। इसके रचना-काल का ठीक-ठीक पता नहीं चलता-परन्तु इसका चीनी भाषा में अनुवाद 308 ई. में हुआ था। डॉ. राजबली पांडेय ने इतना और बताया है कि यह कृति अपने चीनी अनुवाद से कम से कम एक या दो शताब्दी पूर्व की तो होनी ही चाहिये। . (पार, राजबली-इण्डियन पेलियोग्राफी, पृ. 26) For Private and Personal Use Only
SR No.020536
Book TitlePandulipi Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyendra
PublisherRajasthan Hindi Granth Academy
Publication Year1989
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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