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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir लिपि -समस्या / 191 यह तो ब्राह्मी लिपि को पढ़े जाने के प्रयत्नों की चर्चा हुई । अब अनुसन्धानकर्त्ताश्रों में और विद्वानों में अनुसन्धान-विषयक वैज्ञानिक प्रवृत्ति खूब मिलती है, फिर भी, लिपि विषयक कुछ कठिन समस्याएँ प्राज भी बनी हुई हैं । भारतवर्ष में सिन्धुघाटी की लिपि का रहस्य अभी भी नहीं खुला है । अनेक प्रकार के प्रयत्न हुए हैं, किन्तु जितने प्रयत्न हुए हैं उतनी ही समस्या उलझी है । इसी प्रकार और भी विश्व की कई लिपियाँ हैं जिनका पूरा रहस्य नहीं खुला । तो प्रश्न यह है कि यदि कोई एकदम ऐसी लिपि सामने आ जाय जिसके सम्बन्ध में आगे पीछे कोई सहायक परम्परा न मिलती हो तो क्या किया जाय ? इस सम्बन्ध में डॉ० पी. बी. पण्डित का 'हिन्दुस्तान टाइम्स वीकली' (रविवार, मार्च, 1969 ) में प्रकाशित 'क्रेकिंग द कोड' (Cracking the Code) उन सिद्धान्तों को प्रस्तुत करता है जिनसे ऐसी लिपि को समझा जा सके जिसकी न तो लेखन प्रणाली का और न उसमें लिखे कथ्य का ज्ञान हो । यह स्पष्ट कर दिया गया है कि ऐसी लिपि की कु जी पाने में अनेक कठिनाइयाँ हो सकती हैं। वे कठिनाइयाँ भी ऐसी हो सकती हैं जिन पर पार पाना असम्भव हो । फिर भी, उनके सुझाव हैं कि पहले तो ये निर्धारित किया जाना चाहिए कि जो विविध चिह्न और रेखांकन मिले हैं क्या वे भाषा को व्यक्त करते हैं । यदि यह माना जाय कि वे चिह्न भाषा की लिपि के ही हैं तो प्रश्न यह खड़ा होता है कि यह किस प्रकार की लेखन प्रणाली है । अर्थात् क्या यह लेखन प्रणाली चित्रात्मक है अथवा शब्दात्मक (logographic) है या वर्णात्मक (alphabetic ) । यद्यपि आज कुछ लिपियाँ मक्षरात्मक (Syllabic) भी हैं पर यह अक्षरता (Syllable) वर्ण से ही जुड़ी मिलती हैं, क्योंकि दोनों ही ध्वनिमूलक हैं । चित्रलिपि शब्द लिपि में तभी परिणत होती है जब एक चित्र कई भावों या वस्तुनों का श्रर्थ देने लगता है । तब एक चित्राकार या चित्रलिपि का एक-एक चित्र एक उच्चरित शब्द (logo) का स्थान ले लेता है। डॉ० पण्डित ने अंग्रेजी का स्टार शब्द लिया है । 'स्टार' का चित्र जब तक केवल स्टार का ही ज्ञान कराता है तब तक वह चित्रलिपि का अंश है । इसके बाद 'स्टार' का उपयोग केवल तारे के लिए ही नहीं, आकाश के द्युतिमान सभी तारों और तारिकाओं के लिए होने लगता है या उसका अर्थ चमकदार या शिरोमणि वस्तुत्रों के लिए होने लगे तो वह भावचित्रलिपि (ideograph) का रूप ग्रहण कर लेता है । अब यदि 'स्टार' की चित्राकृति और उसकी चित्रलिपि और भाव- चित्रलिपि को कोई शब्द मिल गया है— जैसे स्टार, तब यह शब्द हो गया । भावलिपि का एक अंग होकर अब उसने चित्र रूप के साथ शब्द रूप में भी सम्बद्धता प्राप्त कर ली, यही इस शब्द ध्वनि की लिपि या शब्दमूलक चित्रलिपि (logograph) कहलाती है । अब शब्द का अर्थ अपने ध्वनि-चित्र से किसी सीमा तक स्वतन्त्र हो चला क्योंकि 'शुद्ध स्टार ध्वनि' के लिए तो उसका ध्वनिचित्र आयेगा ही, सम्भवतः 'स्टार' की समवर्ती 1. "Histories of writing system indicate that the Pictorial scripts develop into logographic script where a picture gets a phonetic value corresponding to its pronunciation: then it can be used for all other items which have similar pronunciation.' (Pandit, P. B. ( Dr. ) -- Cracking the Code - Hindustan Times Weekly, Sunday, March 30, 1969) For Private and Personal Use Only
SR No.020536
Book TitlePandulipi Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyendra
PublisherRajasthan Hindi Granth Academy
Publication Year1989
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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