SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 109
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 82, पाण्डुलिपि-विज्ञान उतारी छ । सबद।। दोहा ।।कवित्।। अरिल जो कुछ था सोई ॥थ। कवत सुरजनजी रा कह्या, संख्या 329। समत् 1839 रा बैसाष मासे तिथौ 5 देवा गुरवारे लिषतं वैष्णव ।। ध्यांनदास दुगाली मध्ये जथा प्रति तथा लिषतं ।। वाचे विचारै तिणनु राम राम । (द) होम को पाढ (ध) ग्रादि बंसावली । (न) विवरस (प) कलस थापन (फ) पाहल । (ब) चौजूगी वीवाह की । (भ) पांहलि (पुनः) आदि-श्री गणेसायनमः श्री सारदाय नमः श्री विसनजी सत सही ।। लिषतु औतार पात का वषाण ॥ दुहा ।। नवणि करू गुर आपण ।। नउं निरमल भाय। कर जोड़े बंदू चरण ।। सीस नवाय नवाय ।। अन्त-म छ को पाहलि ।। कछ की पाहली ।। बारा की पाहली ।। नारिसिंघ की पाहलि ।। वांवन की पाहलि फरसराम की पाहलि राम लक्षमण की पाहलि । कन की पाहलि बुध की पाहलि निकलंकी पाहलि-॥ ऊपर कुछ ग्रन्थों के विवरण (Notices) उद्धृत किये गये हैं। साथ ही प्रत्येक विवरण में आयी बातों का भी संकेत हमने अपनी टिप्परिणयों में कर दिया है। उनके प्राधार पर अब हम ग्रन्थ के विवरण में अपेक्षित बातों को व्यवस्थित रूप में यहाँ दे देना चाहते हैं : पांडुलिपि हाथ में आने पर विवरण लेने की दृष्टि से इतनी बातें सामने आती हैं :: (1) ग्रन्थ का 'अतिरिक्त पक्ष' । इसमें ये बातें पा सकती हैं : ग्रन्थ का रख-रखाव : वेष्टन, पिटक, जिल्द, पटरी (कांवी), पुट्ठा, डोरी, ग्रन्थि । वेष्टन कैसा है ? सामान्य कागज का है, किसी कपड़े का है, चमड़े का है या किसी अन्य का ? वह पिटक, जिसमें ग्रन्थ सुरक्षा की दृष्टि से रखा गया है, काष्ठ का है या धातु का है। जिल्द-यदि ग्रन्थ जिल्दयुक्त है तो वह कैसी है। जिल्द किस वस्तु की है, इसका भी उल्लेख किया जा सकता है। ताड़-पत्र की पांडुलिपि पर और खुले पत्रों वाली पांडुलिपि पर ऊपर नीचे पटरियाँ या 'काष्ठ-पट्ट' लगाये जाते हैं, या पट्ठ (पुट्ठ) लगाये जाते हैं। इन्हें विशेष पारिभाषिक अर्थ में 'कंबिका या कांबी' भी कहा जाता है। भा.ज.श्र.सं. अने लेखन कला में बताया है कि 'ताड़-पत्रीय लिखित पुस्तकना रक्षण माटे तेनी ऊपर अने नीचे लाकड़ानी चीपो-पाटीओं राखवामां आवती तेनु नाम 'कंबिका' छे। तो यह भी उल्लेख किया जा सकता है कि क्या ये पट्टिकायें ग्रन्थ के दोनों ओर हैं। इनके ऊपर डोरे में ग्रन्थि लगाने की ग्रन्थियाँ (गोलाकार टुकड़े जिनमें डोरे को पिरोकर पक्की गाँठ लगायी जाती है) भी हैं क्या? ये किस वस्तु की हैं ? और कैसे हैं ? क्या इन पर अलंकरण या चित्र भी बने हैं ? अलंकार और चित्र का विवरण भी दिया जाना चाहिये । (2) पुस्तक का स्वरूप---'अतिरिक्त पक्ष' के बाद पांडुलिपि के 'स्वपक्ष' पर दृष्टि जाती है । इसमें भी दो पहलू होते हैं । भा, जै. श्र सं. अने लेखन कला में 'काष्ठ पटिका' उस लकड़ी की 'पट्टी' को बताया है जिस पर व्यवसायी लोग कच्चा हिसाब लिखते थे, और लेखकगण पुस्तक का कच्चा पाठ लिखते थे । बच्चों को लिखना सिखाने के लिए भी पट्टी काम आती थी। यहाँ इस काष्ठ पट्टिका का उल्लेख नहीं है। यहाँ 'काष्ठ पटिटका' से 'पटरी' अभिप्रेत है, जो पांडुलिपि की रक्षार्थ ऊपर-नीचे लगायी जाती है। 2. भारतीय जैन श्रमण संस्कृति अने लेखन कला, पृ. 19 । For Private and Personal Use Only
SR No.020536
Book TitlePandulipi Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyendra
PublisherRajasthan Hindi Granth Academy
Publication Year1989
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy