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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org 80 / पाण्डुलिपि - विज्ञान (च) में प्रत्येक पृष्ठ में पंक्ति-संख्या का निर्देश है । (छ) में प्रति पंक्ति में अक्षर संख्या बतायी गयी है । (ज) में लिपि - इसमें सुपाठ्य या पाठ्य की बात बतायी गई है । ( लिपि का नाम नहीं दिया गया है । लिपि नागरी है ।) (झ) में लिपिकार का नाम, (न) में लिपिबद्ध करने की तिथि, (ट) में प्राप्ति-स्थान की सूचना है । आन्तरिक परिचय : (ठ) में ग्रन्थ के 'आदि' से अवतरण दिया गया है । ग्रन्थारम्भ 'नमोकार' से होता है : इसमें साम्प्रदायिक इष्ट को नमस्कार है । (ड) ग्रन्थ के आदि में पुष्पिका है । इसमें रचनाकार और (ढ) ग्रन्थ का नाम दिया गया है । तब Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (ग) ग्रन्थ का प्रथम दोहा उद्धृत है, यह दोहा 'मंगलाचरण' है । (त) में 'अन्त के अंश का उद्धरण है, जिसमें ग्रन्थ की 'फल श्रुति' है, यथा 'मुक्ति भक्ति फलपाया' (द) (ध) (थ) में ग्रन्थ के अन्त को 'पुष्पिका' (Colophon ) है । जिसमें 'इति' और 'सम्पूर्ण' से ग्रन्थ के अन्त और सम्पूर्ण होने की सूचना के साथ रचनाकार एवं ग्रन्थ-नाम दिया गया है । तब (थ) 1 - लिपिबद्ध करने की तिथि, (थ) 2 - लिपिकार का परिचय, (थ) 3 - में लिपिबद्ध किये जाने के स्थान - गाँव का नाम है एवं (थ) 3-1 उस गाँव में वह विशिष्ट स्थान (विष्णु मन्दिर) जहाँ बैठ कर लिखी गई । (थ) 4 -- लिपिकार की प्रतिज्ञा और दोषारोपरण की वर्जना है । (थ) 4-1 में पाठक एवं संरक्षक से निवेदन है, इसका स्वरूप परम्परागत है । आशीर्वचन | 1 - भिन्न हस्तलिपि में पुस्तक के मालिक की घोषणा । उदाहरण-- एक पोथी एक और ग्रन्थ के विवरण को उदाहरणार्थ यहाँ दिया जा रहा है। इस ग्रन्थ का विवरण में लेखक ने 'पोथी'' बताया है। 81 पोथी, जिल्दबंधी (ब, प्रति ) । यत्र-तत्र खण्डित । एकाध पत्र अप्राप्य । अपेक्षाकृत मोटा देशी कागज । पत्र संख्या 152 | आकार 10x7 इंच । हाशिया - दाएँ बाएँ : पौन इंच । तीन लिपिकारों द्वारा सं० 1832 से 1839 तक लिपिबद्ध । लिपि, सामान्यतः पाठ्य । पंक्ति, प्रति पृष्ठ | (क) हरजी लिखित रचनाओं में 23-29 तक पंक्तियाँ हैं । (ख) तुलखीदास लिखित सबदवारणी में 31 पंक्तियाँ हैं, तथा । (ग) ध्यानदास लिखित रचनाओं में 24-25 पंक्तियाँ हैं । अक्षर-प्रति-पंक्ति-क्रमशः (क) में 18 से 20 तक, (ख) में 24 से 25 तक तथा (ग) में 23 से 25 तक 1 1. माहेश्वरी हीरालाल (डॉ.) -- जाम्भोजी, विष्णोई सम्प्रदाय और साहित्य, पृ. 41-42 । For Private and Personal Use Only
SR No.020536
Book TitlePandulipi Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyendra
PublisherRajasthan Hindi Granth Academy
Publication Year1989
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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