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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पांडुलिपि-प्राप्ति और तत्सम्बन्धित प्रयत्न : क्षेत्रीय अनुसधान/77 'मलष युद्ध सम्य' और 'अनंगपाल सम्यों' के नीचे उनका लेखन-काल भी दिया हुआ है। ये प्रस्ताव क्रमशः सं० 1770, सं. 1772 और सं. 1773 के लिखे हुए हैं, लेदिन 'चित्ररेखा,' 'दुर्गाकेदार' आदि दो एक प्रस्ताव इसमें ऐसे भी हैं जो कागज आदि को देखते हुए इनसे 25-30 वर्ष पहले के लिखे हुए दिखाई पड़ते हैं। साथ ही, 'लोहाना अजान बाहु सम्यौ' स्पष्ट ही सं० 1800 के आस-पास का लिखा हुआ है । कहने का अभिप्राय यह है कि रासौ की यह एक ऐसी प्रति है जिसको तैयार करने में अनुमानतः 60 वर्ष (मं. 1740-180(3) का समय लगा है। भिन्न-भिन्न व्यक्तियों के हाथ की लिखावट होने से प्रति के सभी पृष्ठों पर पंक्तियों और अक्षरों का परिमाण भी एकसा नहीं है। किसी पृष्ठ पर 13 पंक्तियां, किसी पर 15, किसी पर 25 और किसी-किसी पर 27 तक पंक्तियाँ हैं। लिखावट प्रायः सभी लिपिकारों की सुन्दर और सुपाठ्य है । पाठ भी अधिकतर शुद्ध ही है। दो एक लिपिकारों ने संयुक्ताक्षरों में लिखने में असावधानो की है और ख्ख, ग, त्त इत्यादि के स्थान पर क्रमशः ख, ग, त आदि लिख दिया है, जिससे कहीं-कहीं छंदोभंग दिखाई देता है । पर ऐसे स्थान बहुत अधिक नहीं हैं। इसमें 67 प्रस्ताद हैं। उपरोक्त प्रति सं० 2 के मुकाबले में इसमें तीन प्रस्ताव (विवाह सम्यौं, पद्मावती सम्यौं और रेणसी सम्यों) कम और एक (समरसी दिल्ली सहाय सम्यों) अधिक हैं। ___ इस प्रति में से 'ससिव्रता सम्यो' का थोड़ा-सा भाग हम यहाँ देते हैं । यह सम्यौ, जैसा कि ऊपर बतलाया जा चुका है, सं० 1770 का लिखा हुआ है---- दूहा आदि कथा शाशिवृत की कहत अब समूल । दिल्ली वै पतिसाह गृहि कहि लहि उनमूल ।।१।। अरिल्ल ग्रीषम ऋतु क्रीडंत सुराजन । षिति उकलंत षेह नभ छाजन ।। विषम बाय तप्पित तनु भाजन । लागी शीत सुमीर सुराजन ।। कवित्त लागी शीत कल मंद नीर निकटं सुरजत षट । अमित सुरंग सुगंध तनह उबटंत रजत पट । मलय चन्द मल्लिका धाम धारा-गृह सुवर । रंजि विपिन वाटिका शीत द्रुम छांह रजततर ॥ कुमकुमा अंग उबटंत प्रधि मधि केसरि धनसार धनि । कीलंत राज ग्रीषम सुरिति आगम पावस तईय भनि । इसकी प्रति मेवाड़ के प्रसिद्ध कवि राव बख्तावर जी के पौत्र श्री मोहनसिंह जी राव के पास है। 1. राजस्थान में हिन्दी के हस्तलिखित ग्रन्थों की खोज (प्रथम भाग), पृ. 64-65। For Private and Personal Use Only
SR No.020536
Book TitlePandulipi Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyendra
PublisherRajasthan Hindi Granth Academy
Publication Year1989
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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