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आजीविकसेय्या
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आठपित
मरणभयं दुग्गतिभयं अ. नि. 3(1).182; आजीविकाभयन्ति जीवितवुत्तिभयं, अ. नि. अट्ठ. 3.259; आजीवकभयम्पि दुक्खं मरणभयम्पि दुक्खं मि. प. 189. आजीविकसेय्या स्त्री., द्रष्ट. आजीवक के अन्त.. आजीविकापकत त्रि., द्रष्ट. आजीविका के अन्त.. आजीविनी/आजीविका/आजीवकिनी स्त्री.. [आजीविका]. आजीवक संप्रदाय की अनुयायिनी स्त्री - किनियो प्र. वि., ब. व. - आजीवका आजीवकिनियो, अ. नि. 2(2).93; आजीवका आजीवकिनियो सुक्काभिजातीति वदति, दी. नि. अट्ठ. 1.135; आजीवका आजीविनियो अयं सक्काभिजातीति वदन्ति, स. नि. अट्ठ. 2.303. आजीवी त्रि., केवल स. उ. प. में प्राप्त [आजीविन्]. (के सहारे) जीने वाला, जीवनयापन करने वाला, स. उ. प. में - मन्तस्साजीविनो- पु.. प्र. वि., ब. व., प्रज्ञा के सहारे जीवन यापन करने वाले बुद्धिमान मन्त्री - मन्तस्साजीविनोति मन्ता वुच्चति पञआ, तं निस्सयं कत्वा ये जीवन्ति पण्डिता महामत्ता, तेसं एतं नाम, दी. नि. अट्ठ. 3.32; अमच्चा पारिसज्जा गणकमहामत्ता अनीकट्ठा दोवारिका मन्तस्साजीविनो सन्निपतित्वा, दी. नि. 3.47; लूखाजीविं - पु., वि. वि., ए. व., रूक्ष या कष्टदायक पद्धति से जीवन जीने वाला - मं पन तपस्सिं लूखाजीविं कुलेसु न सक्करोन्ति, दी. नि. 3.31; लूखाजीविन्ति अचेलकादिवसेन वा धुतङ्गवसेन वा लूखाजीविं. दी. नि. अट्ठ. 3.20; सुद्धा. ... विं - पु., द्वि. वि., ए. व., विशुद्ध जीवन-वृत्ति वाला -
तं वे देवा पसंसन्ति, सुद्धाजीविं अतन्दितं. ध. प. 366. आजीवुपायविपत्ति स्त्री., तत्पु. स., जीविका के उपार्जन में उत्पन्न विपत्ति या संकट - कसिरवृत्तिकतिआदीहि
आजीवुपायविपत्ति, स. नि. अट्ट, 1.143. आज्जव/अज्जव नपुं.. [आर्जव], सरलता, सीधापन - उजुनो भावो अज्जवं, इच्चेवमादि, क. व्या. 404; उजुनो भावो अज्जवन्ति च, सद्द. 3.807. आट पु.. [आटि/आडि]. एक पक्षी, जिसकी चोंच लकड़ी
की चम्मच के समान होती है - आटो दबिमुखद्विजो, अभि. प. 637; - टा प्र. वि., ब. व. - आटाति दब्बिसण्ठानमुखसकुणा, जा. अट्ठ. 7.309. आटक नपुं., पिशाच प्रदेश की आठ प्रकार की धातुओं में से एक - कं प्र. वि., ए. व. - मोरक्खक, पुथुक, मलिनक चपलक, सेलक, आटकं, भल्लक, दूसिलोहन्ति अट्ठ पिसाचलोहानि नाम, विभ. अट्ठ. 60.
आटानाटा स्त्री., उत्तरकुरु जनपद के एक नगर का नाम - आटानाटा कुसिनाटा परकुसिनाटा, नाटसुरिया परकुसिटनाटा, दी. नि. 3.152; एकहिस्स नगरं आटानाटा नाम आसि. दी. नि. अट्ठ. 3.134; आटानाटानामाति
इथिलिङ्गवसेन लद्धनामं नगरं आसि. दी. नि. टी. 3.142. आटानाटिय त्रि., [बौ. सं. आटानाटिक], आटानाटा-नामक नगर से सम्बद्ध - या स्त्री., प्र. वि., ए. व. - अयं खो सा, मारिस, आटानाटिया रक्खा भिक्खून भिक्खुनीनं उपासकानं.. फासुविहाराय, दी. नि. 3.154; आटानाटियन्ति
आटानाटनगरे बद्धत्ता एवंनाम, दी. नि. अट्ठ. 3.131. आटानाटियपरित्त नपुं.. आटानाटिय-सुत्त का परित्राण या
सुरक्षा, आटानाटिय-सुत्त का सुरक्षादायक मन्त्रकवच, अनेक परित्राणकारी सुत्तों की सूची में से एक - सेय्यथिद, रतनसुत्तं मेत्तसुतं ... मोरपरित्तं ... आटानाटियपरित्तं अङ्गुलिमालपरित, मि. प. 151; स. प. के अन्त.; आटानाटियपरित्तमोरपरित्तधजग्गपरित्त- रतनपरित्तादीनव्हि एत्थ आणा पवत्तति, अ. नि. अट्ठ. 1.343; विभ. अट्ट. 406. आटानाटियसुत्त नपुं., दी. नि. के पाथिक वग्ग का एक सुत्त, जिसमें भगवान् बुद्ध ने भिक्षुओं, भिक्षुणियों एवं उपासकों के लिए उत्तरकुरु जनपद की सुदृढ़ सुरक्षा जैसे उत्तम सुरक्षा साधनों का उपदेश दिया है, दी. नि. 3.147-165; एवं मे सुतन्ति आटानाटियसुत्तं, दी. नि. अट्ठ. 3.129; - ते सप्त. वि., ए. व. - तस्मा कुवेरो वेस्सवणो ति वुच्चति, दुतञ्चेतं आटानाटियसुत्ते. सु. नि. अट्ठ. 2.91; - वण्णना स्त्री., दी. नि. के आटानाटियसुत्त की अट्ठकथा, दी. नि. अट्ठ.3.129-138. आठपना/अट्ठपना स्त्री., आ +Vठा के प्रेर. से व्यु., क्रि.
ना. [आस्थापना], व्यवस्थित कराना, निर्धारण कराना, रखवाना, स्थापित कराना, आदरपूर्वक रखाना, प्रारम्भ से विन्यस्त कराना - यो एवरूपो उपनाहो... अट्ठपना ठपना सण्ठपना अनुसंसन्दना ... अयं वुच्चति उपनाहो, पु. प. 124; या एवरूपा इरियपथरस ठपना आठपना सण्ठपना भाकुटिका भाकुटियं, महानि. 164; आठपनाति आदिट्ठपना, आदरेन वा ठपना, महानि. अट्ठ. 269. आठपित त्रि., आ +vठा के प्रेर. का भू. क. कृ. [आस्थापित], स्थापित किया हुआ, रखाया हुआ, ठीक से व्यवस्थित किया हुआ- तो पु.. प्र. वि., ए. व. - योपि भुजिस्सो मातरा वा पितरा वा आठपितो होति. पारा. अट्ठ. 1.289; - तं पु..
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