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इम
इन्द्रियानुरक्खण इन्द्रियानुरक्खण नपुं॰, तत्पु. स. [इन्द्रियानुरक्षण], इन्द्रियों
का अनुरक्षण, इन्द्रियों को नियन्त्रण में रखना - णं प्र. वि., ए. व. -- पातिमोक्खसंवरो इन्द्रियानुरक्खणं, सद्धम्मो.
449. इन्द्रियाभिसमय पु., इन्द्रियभूत अभिसमय, इन्द्रियों
द्वारा अर्थ का यथार्थ बोध - यो प्र. वि., ए. व. - आधिपतेय्यद्वेन इन्द्रियाभिसमयो, पटि. म. 385. इन्द्रियारक्खा स्त्री०, इन्द्रियों की रक्षा, इन्द्रियों पर नियन्त्रण - क्खा प्र. वि., ए. व. - इन्द्रियारक्खा अत्तहितपटिपत्तियाव मूलन्ति, थेरगा. अट्ठ.
2.234. इन्द्रियूपसम पु.. तत्पु. स. [इन्द्रियोपशम], इन्द्रियों की शान्ति, इन्द्रियों का उपशमन - मे सप्त. वि., ए. व. - दुस्समादहं वापि समादहन्ति (कामदाति भगवा) इन्द्रियूपसमे रता, नेत्ति. 125; स. नि. 1(1).57; ... ये रत्तिन्दिवं इन्द्रियूपसमे रता, स. नि. अट्ट, 1.95. इन्धन नपुं.. [इन्धन, लकड़ी, ईंधन, जलावन, समिधा -- नं प्र. वि., ए. व. -- समिधा इधुमं चेधो उपादानं तथेन्धनं, अभि. प. 36; निप्पो वा गोचरो आहारो इन्धनं एतस्साति दुम्मेधगोचरो, चरिया. अट्ठ. 130; - स्स ष. वि., ए. व. - गतमग्गे इन्धनस्स भस्मभावावहनतो, चरिया. अट्ठ. 212; - नानं ष. वि., ब. व. - पब्बतकूटसदिसानं इन्धनानं वसेन महतियो ... महासिखी, चरिया. अट्ठ. 212; - क्खय पु.. [इन्धनक्षय], ईधन की समाप्ति - या प. वि., ए. व. - निब्बन्ति ते जोतिरिविन्धनक्खया, नेत्ति. 157; निब्बन्ति ते जोतिरिविन्धनक्खयाति यथा नाम अनुपादानो जातवेदो निब्बायति, एवमेवं अभिसङ्घारस्स विआणस्स अनवसेसक्खया निब्बायति, नेत्ति. अट्ठ. 377; - भाव पु.. [इन्धनभाव], आग के जलावन या ईधन की अवस्था, ईंधन जैसी स्थिति - वं द्वि. वि., ए. व. - सो तङ्क्षण व अवीचिजालानं इन्धनभावं अगमासि, पारा, अट्ठ. 1.218; - सङ्ख्य पु., [इन्धनसंक्षय], ईंधन का पूर्ण विनाश, ईंधन की समाप्ति - या प. वि., ए. व. -- उपादानसङ्घयाति इन्धनक्खया, बु. वं. अट्ठ. 189; - नुपादान त्रि., ब. स. [इन्धनोपादानक], ईंधन पर आश्रित, ईंधन पर पूरी तरह से टिका हुआ -- नो पु., प्र. वि., ए. व. - इन्धनुपादानो अग्गि विय ... लद्धिवसेन वदति, प. प. मू.
इब्म त्रि., उत्पत्ति सन्दिग्ध [इभ्य], शा. अ., क. भृत्य वर्ग
का, ख. अनेक नौकर रखने वाला धनी व्यक्ति, ला. अ., क. ब्राह्मण तथा क्षत्रिय-कुल से निम्नवर्ण के व्यक्ति के लिए उपाधि के रूप में प्रयुक्त, गृहस्थ, वणिक, कृषक या खेतिहर के लिए प्रयुक्त, - डमो पु., प्र. वि., ए. व. - इब्भो त्वड्ढो तथा धनी, अभि. प. 725; ला. अ., ख. अवैदिक-परम्परा के श्रमणों अथवा ब्राह्मणों के प्रभाव में रहने वाले कृषकों, वैश्यों, शूद्रों आदि के लिए प्रयुक्त, - ब्मा पु., प्र. वि., ब. व. - मुण्डका समणका इभा कण्हा बन्धुपादापच्चा, दी. नि. 1.79; इब्भाति गहपतिका, दी. नि. अट्ठ. 1.205; यथा इभो हत्थिवाहनभूतो परस्स वसेन वत्तति, न अत्तनो, एवं एतेपि ब्राह्मणानं सुस्सुसका सुद्दा परस्स वसेन वत्तन्ति, न अत्तनो, तस्मा इभसदिसपयोगताय इभाति, दी. नि. टी. (लीनत्थ.) 1.263; ला. अ., ग. धनलोलुप तथा विषयभोगों में अनुरक्त व्यक्तियों के लिए प्रयुक्त - बमा प्र. पु., ब. व. - यथापि इब्भा धनधञहेतु, कम्मानि करोन्ति पुथू पथब्या, जा. अट्ठ. 7.58; - मेहि तृ. वि., ब. व. - इब्भेहि ये ते समका भवन्ति, निच्चुस्सुका कामगुणेसु युत्ता, जा. अट्ट. 7.59; - कुल नपुं., [इभ्यकुल], गृहस्थ का परिवार - ले सप्त. वि., ए. व. - मगधरडे इब्भकुले निब्बत्तो गोसालो नाम नामेन, थेरगा. अट्ठ. 1.82; - वाद पु., [इभ्यवाद], नीच या अधम कह कर गाली देना, नीच या अधम कहना - दं द्वि. वि., ए. व. - इतिह अम्बट्ठो माणवो इदं पठमं सक्येसु इब्भवादं निपातेसि, दी. नि. 1.79; तुल. अशोकप्राकृत इब्भ., जैन. मा. इब्भ.. इभ पु.. [इभ], हाथी - भो प्र. वि., ए. व. - कुञ्जरो वारणो हत्थी मातङ्गो द्विरदो गजो, नागो द्विपो इभो दन्ती, अभि. प. 360; हत्थी नागो गजो दन्ती कुञ्जरो वारणो करी मातङ्गो द्विरदो सट्टिहायनो नेकपो इभो, सद्द. 2.345; स. प. के अन्त., मत्तेभ तथा सेतिभिन्द. के अन्त. द्रष्ट.. इभपिप्फली स्त्री., [इभकणा, हस्तिकणा, करिपिप्पली, गजपिप्पली], पिपरामूल या पहाड़ी पीपल - ली प्र. वि., ए. व. - कोलवल्लीभपिप्फली, अभि. प.
583.
इम' त्रि., निश्चयवाचक सर्वनाम का प्रातिपदिक, अत्यन्त निकटता का बोधक, एक सर्वनाम का अविभक्तिक रूपसद्द पु., इम शब्द - दो प्र. वि., ए. व. - इमसद्दो अच्चन्तसमीपवचनो, सद्द. 1.267; 'इम' के विभक्ति रूप
टी. 59.
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