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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra इज्झनलक्खण करण नं ष० वि०, ब० व.. दित्रं करणानन्ति इज्जानपज्जन किरियाकरणानं इद्धिपादत्थानं, विभ. अनुटी. 162. इज्झनलक्खण नपुं. समृद्धि अथवा समुन्नति का लक्षण प्र. वि., ए. व. इद्विपादानं इज्झनलक्खणं दी. नि. — www.kobatirth.org - - अट्ठ. 1.60. कर रहा इज्झन्त त्रि, इज्झ का वर्त. कृ. समृद्धि या वृद्धि को प्राप्त तं द्वि. वि. ए. व. इज्झन्तञ्च सहेव इज्झति म. नि. टी. ( मु.प.) 1 ( 1 ).209. इज्झमान त्रि. √इध का वर्त. कृ. वृद्धि अथवा समृद्धि को प्राप्त हो रहा, बढ़ रहा, विकसित हो रहा, फल-फूल रहा " . पु. सप्त. वि. ए. व. सम्पयुत्तधम्मेसु हि एकस्मि इज्झमाने सेसापि इज्झन्तियेव स. नि. अट्ठ. 3.285. इज्झमानकोद्वास पु. कर्म. स. वृद्धि को प्राप्त कर रहा भाग या खण्ड, स. प. के अन्त., पादस्स इज्झमानकोद्वासइज्झनकरणूपायभावतो विसुद्धि महाटी, 2.17; सक्का पादस्स इज्झमानको द्वासइज्झनकरणपायभावतो, नेत्ति. टी. 49. इज्झमानविसेस पु. कर्म. स. विशेष प्रकार का समृद्धिलाभी, समृद्धि प्राप्त करने वाले का विशिष्ट स्वरूप – इमाय इद्धिया इज्झमानविसेसं दस्सेन्तो सन्तिकेपीति आदिमाह, पटि म. अड. 2.251. इज्झितब्बभावना स्त्री, कर्म, स., संवर्धित करने योग्य भावना, सुदृढ़ किए जाने योग्य भावना य तृ. वि., ए. समीपे वल्लिआदीन हरणं विय कम्मट्ठाने खलनपक्खलनच्छेदनं इज्झितब्बभावनाय विबन्धापनयनतो, म. नि. टी. (मू०प.) 1 (2).249. व. इञ्ज त्रि, √ इञ्ज से व्यु अनियमित स्वरूप का विशे., कम्पनयुक्त, स्खलनशील, अध्रुव, अस्थिर पु., द्वि. वि. ए. व. न इञ्ज अनेञ्ज, अनेजं भवं अभिसारोतीति "आनेञ्जाभिसङ्घारो, पटि. म. अ. 2.222. इञ्जति इञ्ज (गति या कांपना, हिलना-डुलना) का वर्त., प्र. पु. ए. व. [वैदिक ऋञ्जते, बौ. सं., इञ्जते / इञ्जति], शा. अ., हिलता है, कांपता है, प्रकम्पित होता है, चलता हैं- वातेन न समीरति न इञ्जति न चलति ध. प. अड्ड. 1.330-31; गच्छतो खो पन तस्स भोतो गोतमस्स अधरकायोव इञ्जति, न च कायबलेन गच्छति, म. नि. 2.346; ला. अ. (व्यक्ति, शरीर या मन ) हिल-डुल जाता हैं, उद्विग्न हो जाता है, अस्त-व्यस्त हो जाता है, उद्विग्न या बेचैन हो जाता है, बाधित हो जाता है- सद्धापरिग्गहितञ्हि NE 296 - इञ्जयति चित्तं अस्सद्धियेन न इञ्जति, पारा. अट्ठ 1.117; अनोणतं चित्तं कोसज्जे न इञ्जतीति आनेञ्ज, उदा. अट्ठ. 150; सो लाभेपि न इञ्जति, अलाभेपि न इञ्जति... न चलति न वेधति नप्पवेपति न सम्यवेधतीति, महानि. 260 - न्ति ब. व.- न इञ्जन्तीति एसिकत्थम्भो विय ठितत्ता न चलन्ति, स. नि. अह. 2.302 यस्मा इमेहि किलेरोहि सत्ता इञ्जन्ति चैव फन्दन्ति च पपञ्चिता च होन्ति पमत्ताकारपत्ता स. नि. अट्ठ 3.111. इञ्जन नपुं, √इञ्ज से व्यु. क्रि. ना. [बौ. सं., इञ्जन], गति, चाल, हिलना-डुलना, प्रकम्पन, स्पन्दन - नं प्र. वि., ए. व. - इञ्जितस्मिं वदामीति इञ्जनं चलनं फन्दनन्ति वदामि म. नि. अड्ड. (म.प.) 2.122 - नानं प. वि. व. व. राब्बेसं इञ्जनानं अभावतो वसीभावप्यत्तियाव ठितं उदा. अट्ठ. 200; स. उ. प. के रूप में किलेसि, के अन्त., द्रष्ट.. इञ्जनक त्रि, स्पन्दनशील, चलनशील, चञ्चल स्वभाव का का पु०, प्र० वि०, ब० व इञ्जिताति इञ्जनका चलनका तथा फन्दिता सारत्थ, टी. 2.189; - स्सष वि., ए. व. रूपतण्हासङ्घातस्स इञ्जनकस्स कारणत्ता वा विभ मू. टी. 94. करनीवरण नपुं०, कर्म, स, स्पन्दन एवं विक्षोभ उत्पन्न करने वाला नीवरण, स. प. के अन्त – रूपमेव सफन्दनत्ता "सइञ्जनन्ति वुत्तं इञ्जनकरनीवरणादीनं अविक्खम्भनतो, विभ. मू. टी. 94. " इञ्जना स्त्री०, इञ्ज से व्यु० क्रि० ना०, लिङ्गव्यत्यय [ बौ. सं.. इञ्जना ], शरीर की गति या चाल-ढाल, मन की चञ्चलता, शारीरिक चेष्टा, प्र. वि. ए. व. - समिञ्जेति पसारेति, एसा कायरस इञ्जना सु. नि. 196 एसा कायरस इञ्जनाति सब्बापेसा इमस्सेव सविज्ञाणकस्स कायस्स इञ्जना चलना फन्दना. सु. नि. अड. 1.207; या कायस्स आनमना विनमना सन्नमना पणमना इञ्जना फन्दना चलना पकम्पना पटि० म० 177. **** Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private and Personal Use Only इञ्जमानत्रि, इञ्ज का वर्त. कृ., केवल निषेधार्थक रूप में ही प्राप्त, अनिञ्ज, स्थिर, नहीं हिल-डुल रहा नेन तृ. वि. ए. व. अनिञ्जमानेन ठितेन वग्गुना, स. नि. 1(1).210; नो पु. प्र. वि. ए. व. - कायेन अभासमानो वाचं. म. नि. 1.131. इञ्जयति इञ्ज के प्रेर. का वर्त, प्र. पु. ए. व. गतिशील कराता है, चलाता है, हिला देता है - युं अद्य., प्र० पु०, अनिञ्जमानो - ww
SR No.020529
Book TitlePali Hindi Shabdakosh Part 01 Khand 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Panth and Others
PublisherNav Nalanda Mahavihar
Publication Year2009
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size10 MB
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