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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आवत्तन 229 आवमति रखपाल, हीनायावत्तित्वा भोगे. म. नि. 2.261; पच्चयबाहुल्लाय आवत्तित्वा, जा. अट्ठ. 1.90; यन्नून्नाहं हीनायावत्तित्वा कामे परिभुजेय्य, सु. नि. (पृ.) 157; पच्चयबाहुल्लाय आवत्तित्वा, जा. अट्ट, 1.90; 3. (समुद्र) घटता है- आभुजति आवत्तत्तीति अत्थो, सद्द. 2.348; 4. (केश) धुंघराला हो जाता है, आकुञ्चित हो जाता है - माना वर्त. कृ., आत्मने, पु., प्र. वि., ब. व. - केसा द्वङ्गुलमत्ता हुत्वा दक्खिणतो आवत्तमाना सीसं अल्लीयिंसु, जा. अट्ठ. 1.74; 5. पलट देता है, रूपान्तरित कर देता है - पटिपक्खेन अकसले धम्मे परियेसति, तेसं किलेसानं हारेन आवट्टति, पेटको. 234. आवत्तन नपुं, आ + Vवत्त से व्यु., क्रि. ना. [आवर्तन], वापसी, प्रत्यावर्तन, वापस लौट आना, अधःपतन - नेन त. वि., ए. व. - न च तेसं हीनायावत्तनेन जिनसासनं हीलितं नाम होति. मि. प. 235; - क पु. उलट-पुलट करने वाला, - को पु. प्र. वि., ए. व. - नङ्गलस्स फालस्स आवत्तनको नङ्गलं इतो चितो च आवत्तेत्वा खेत्ते प्रेरगा. अट्ठ. 1.69; - स्स ष. वि., ए. व. - नत्थि आवत्तनकस्स भूमि होन्ति, पेटको. 290; स. प. के अन्त., - एवं अरिया चतक्कमग्गं पञआपेन्ति अबुधजनसेविताय बालकन्ताय रत्तवासिनिया नन्दिया भवतण्हाय अवट्टनत्थं, नेत्ति. 93; स. उ. प. के रूप में, अना. देवता., के अन्त. द्रष्ट... आवत्तनधम्म त्रि., ब. स. [आवर्तनधर्म], पुनः वापस लौटने की प्रकृति से युक्त, वापस लौटकर आने वाला, स. उ. प. के रूप में, अना.- पुनः वापस लौटने की प्रकृति से रहित, पुनः अधोगति की प्राप्ति न करने वाला - म्मो पु., प्र. वि., ए. व. - अनावत्तिधम्मोति ततो ब्रह्मलोका पुन पटिसन्धिवसेन अनावत्तनधम्मो, दी. नि. अट्ठ. 1.252. आवत्तनी त्रि., [आवर्तिन], उलटने-पलटने वाला, स. उ. प. में, नङ्गला.- हल के फाल को उलटने पलटने वाला अथवा ऊपर और नीचे करके खींचने वाला - नी पु., प्र.. वि., ए. व. - यथापि भद्दो आजओ नङ्गलावत्तनी सिखी, थेरगा. 16; नङ्गलस्स फालस्स आवत्तनको नङ्गलं इतो चितो च आवत्तेत्वा खेते कसनकोति अत्थो, थेरगा. अट्ठ. आवत्तेति/आवत्तयति आ + Vवत्त का प्रेर., वर्त, प्र. पु., ए. व. [आवर्तयति], वापस लौटाता है, गृहस्थ जीवन की हीन अवस्था की ओर वापस लौटने को प्रेरित कराता है, निवारण कराता है, उलट-पुलट करता है - यथा कुञ्जरं अदन्तं... बलवा आवत्तेति अकामं, थेरगा. 357; आवत्तेति अकामन्ति अनिच्छन्तमेव निसेधनतो निवत्तेति, थेरगा. अट्ठ. 2.57; - त्तो भू. क. कृ., पु., प्र. वि., ए. व. - बाहुल्लाय आवत्तो, महाव. 66; - यिस्ससि भवि., म. पु. ए. व. - न म पुत्तकत्ते जम्मि, पुनरावत्तयिस्ससि, थेरीगा. 304; - यिस्सं उ. पु., ए. व. - एवं आवत्तयिस्संतं, थेरगा. 357; - त्वा पू. का. कृ. - नङ्गलं इतो चितो च आवत्तेत्वा, थेरगा. अट्ठ. 1.69. आवत्थिक त्रि., अवस्था से व्यु. [आवस्थिक], जीवन की अवस्था-विशेष का सूचक, किसी विशेष अवस्था के साथ सम्बद्ध - कं नपुं. प्र. वि., ए. व. - आवत्थिकं लिङ्गिक नेमित्तिकं अधिच्चसम्प्पन्नन्ति ... तत्थ वच्छो दम्मो बलिवघोति एवमादि आवत्थिकं विसुद्धि. 1.201. आवदति आ + Vवद का वर्तः, प्र. पु., ए. व. [आवदति], निन्दा करता है, कलंक लगाता है, सम्बोधित करता है - दि अद्य.. प्र. पु., ए. व. - तं दिस्वा “कस्मा एवं तियावदि, चू. वं. 51.23; -दितब्बो सं. कृ., पु०. प्र. वि., ए. व. - जात्याचारा दीहि निहीनो यन्ति आवदितब्बो, अभि. प. 699 पर सूची. आवन्तिक त्रि., [आवन्तिक]. अवन्ती (आधुनिक उज्जैन) का रहने वाला, अवन्ती के साथ जुड़ा हुआ - का पु., प्र. वि.. ब. व. - पावेय्यका सट्टि थेरा असीतावन्तिका पिच महाखीणासवा सब्बे अहोगङ्गम्हि ओतलं, म. वं. 4.19. आवपति/आवपेति आ + Vवप का वर्त., प्र. पु., ए. व. [आवपति], जमा कर देता है, जमानत अथवा गिरवी के तौर पर रख देता है, फेंक देता है - न्ति प्र. पु., ब. व. - आवपन्ति, पक्खिपन्तीति वृत्तं होति, महाव. अट्ठ. 362; - पितुं निमि. कृ. - लभति पिता पुत्तं इणट्ठो वा आजीविकपकतो वा आवपितुं वा विक्किणितुं वाति, मि. प. 259. 1.69. आवमति आ + Vवम का वर्त., प्र. पु., ए. व. [आवमति], शा. अ., वमन किए हुए पेय का पुनः पान कर जाता है, ला. अ., जिस सांसारिक जीवन को त्याग चुका है, उसी में पुनः वापस लौटता है - मितुं निमि. कृ. - मनापिया आवत्तनी स्त्री., [आवर्तनी], धातुओं को गलाने का पात्र - सोण्णाद्यावत्तनी मूसा, अभि. प. 526. For Private and Personal Use Only
SR No.020529
Book TitlePali Hindi Shabdakosh Part 01 Khand 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Panth and Others
PublisherNav Nalanda Mahavihar
Publication Year2009
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size10 MB
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