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आलोकसञआसय
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आलोकूपनिस्सय आलोकसआमनसिकारो अब्भोकासवासो कल्याणमित्तता के भाग - गा प्र. वि., ब. व. - आलोकसन्धिकण्णभागा सप्पायकथाति, म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(1).294.
पमज्जितब्बा, महाव. 53; आलोकसन्धिकण्णभागाति आलोकसज्ञासय त्रि., ब. स., आलोक संज्ञा के प्रति आलोक सन्धिाभागा च कण्णभागा च मानसिक अभिरुचि अथवा मन के रुझान से युक्त – यो अन्तरबाहिरवातपानकवाटकानि च गभस्स च चत्तारो कोणा पु., प्र. वि., ए. व. - अयं पुग्गलो आलोकसागरुको पमज्जितब्बाति अत्थो, महाव. अट्ठ. 249; - करणमत्त
आलोकसञआसयो आलोकसञआधिमत्तो ति, पटि. म. 113. नपुं., केवल खिड़की बनाना - त्तेन तृ. वि., ए. व. - आलोकसञी त्रि., [आलोकसंज्ञिन], 1. रात में भी दिन में आलोकसन्धिकरणमत्तेनपि नवकम्म देन्ति, चूळव. 303; - देखे गए सूर्य के आलोक को पर्णरूप से जानने में समर्थ, परिकम्म नपं.. तत्पू. स. [आलोकसन्धिपरिकर्म]. खिडकी नीवरणों से रहित विशुद्ध संज्ञा (चेतना) से, युक्त 2. की मरम्मत, खिड़की की रगांई, पुताई अथवा साजआवरणरहित, परिशुद्ध तथा आलोकमयी संज्ञा से युक्त - सजावट - म्माय च. वि., ए. व. - महल्लकं ... जी पु.. प्र. वि., ए. व. - ... विगतथिनमिद्धो विहरति आलोकसन्धिपरिकम्माय द्वत्तिच्छदनस्स परियाय अप्पहरिते आलोकसञ्जी, दी. नि. 1.63; आलोकसञ्जीति रत्तिम्पि ठितेन अधिट्ठातब्ब, पाचि. 69; आलोकसन्धिपरिकम्मायाति दिवादिद्वालोकसञ्जाननसमत्थाय विगतनीवरणाय, परिसद्धाय एत्थ आलोकसन्धीति वातपानकवाटका वुच्चन्ति ... तस्मा सआय समन्नागतो, दी. नि. अट्ठ 1.172; विभ. अट्ठ सब्बदिस्सासु कवाटवित्थारप्पमाणो ओकासो आलोकसन्धि 348; अयं स आलोका होति विवटा परिसद्धा परियोदाता, परिकम्मत्थायलिम्पितब्बो वा लेपापेतब्बो वाति अयमेत्थ तेन वुच्चति 'आलोकसञ्जी ति, विभ. 284; विभ. अट्ठ. अधिप्पायो, पाचि. अट्ठ. 44. 348.
आलोकित नपुं., आ + Vलुक का भू. क. कृ. [आलोकित], आलोकसञकत्त नपुं, भाव., तत्पु. स. [आलोकसंज्ञैकत्व], अपने सामने देखना, अपने आगे की ओर देखना - तं' (थीन-मिद्ध के नानात्व के विपरीत) आलोकमयी संज्ञा प्र. वि., ए. व. - आलोकितं नाम पुरतो पेक्खन, म. नि. अथवा आलोक-विषयिणी संज्ञा का एकत्व (एक होने की अट्ठ. (मू.प.) 1(1).271; प्रायः विलोकित (चारों ओर ताकना) अवस्था) - तं प्र. वि., ए. व. - आलोकस कत्तं के साथ प्रयुक्त, - आलोकितं विलोकितं समिजितं ..., चेतयतो थिनमिद्धतो चित्तं विवट्टतीति, पटि. म. 100; अ. नि. 1(2).120; - त? वि. वि., ए. व. - आलोकसओकत्तं चेतयतो थिनमिद्धेन सुझं पटि. म. आलोकितविलोकितं... मय्ह रुच्चति, स. नि. अट्ठ. 1.1063; 357.
- तेन तृ. वि., ए. व. - पासादिकेन ... आलोकितेन आलोकसजेसना स्त्री., तत्पु. स., प्र. वि., ए. व. विलोकितेन ..., महाव. 45; - ते सप्त. वि., ए. व. - [आलोकसंज्ञैषणा], आलोकमयी अथवा आलोक-विषयिणी आलोकिते विलोकिते सम्पजानकारी होति, दी. नि. 1.62. संज्ञा की तलाश --- आलोकसजेसना थिनमिद्धेन सा. आलो कितविलोकित नपु, समा. द्व. स. पटि. म. 357.
[आलोकितविलोकित], आगे की ओर देखना तथा चारो आलोकसन्धि पु., तत्पु. स. [आलोकसन्धि]खिड़की, ओर अथवा इधर उधर देखना - तं प्र. वि., ए. व. -
झरोखा, गवाक्ष, प्रकाश एवं धूप आदि का खुला प्रवेशस्थान, आलोकितविलोकितं न पासादिकं होति, सा. सं. 24(सिंहली); खिड़की की किवाड़ी - वातपानं गवक्खो च जालं च स.प. के अन्त., - आलोकितविलोकितसीहपञ्जरं आलोकसन्धि, अभि. प. 216; आलोकानं आतपानं कथितहसितगमनवानादीहि विसेसो होतियेव, अ. नि. अट्ठ. पविसनट्ठानं सन्धि छिद्दन्ति आलोक सन्धि, अभि. प. 216 3.165. पर सूची; अञ्जतरो भिक्खु ... सङ्घस्स आलोकसन्धिं, पारा. आलोकूपनिस्सय पु., तत्पु. स., आलोक, प्रज्ञा या ज्ञान के 78; आलोकसन्धीति वातपानकवाटका वुच्चन्ति, पाचि. अट्ठ.. प्रकाश का आश्रय अथवा सहारा - यं द्वि. वि., ए. व. - 44; -न्धिं द्वि. वि., ए. व. - आलोकसन्धिं दिवसं करोतु, चक्खायतनं निस्साय इद्वसम्मत रुपायत आलम्बित्वा जा. अट्ठ. 4.276; आलोकसन्धिं दिवसन्ति एकदिवसेनेव आलोकूपनिस्सयं लभित्वा मनोधातावज्जनानन्तरं एव वातपानं करोतु, जा. अट्ट. 4.277; - कण्णभाग पु., द्व. उप्पज्जति कुसलविपाकं उपेक्खासहगतं चक्षविज्ञआणं, स., खिड़कियों के किवाड़ों के भाग एवं प्रकोष्ठ के कोनों रूपा. वि. 153(रो.).
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