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आरिय
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आरुप्प
आरिय त्रि., अरिय से व्यु., क. आर्य जाति का, ख. एक जनजाति के लिए प्रयुक्त - ये पु., द्वि. वि., ब. व. - ठकुरप्पमुखे सब्बे पुछिसु आरिये भटे, चू. वं. 90.27. आरियक्खत्तयोद्धा पु., श्रीलङ्का में राजा द्वारा चुने गए योद्धाओं का एक वर्ग - नं च. वि., ब. व. -
आरियक्खत्तयोद्धानं भत्तिं दातुं समारभुं, चू. वं. 90.16. आरियचक्कवत्ती पु., व्य. सं., एक प्राचीन तमिल-सेनापति का नाम अथवा उपाधि - त्ती प्र. वि., ए. व. -
आरियचक्कवत्तीति विस्सुतो नारियो पि सो, चू, वं. 90.44. आरियमुनित्थेर पु., व्य. सं., एक स्थविर के लिए प्रयुक्त नाम अथवा उपाधि-रं द्वि. वि., ए. व. - दुतियारियमुनित्थेरं
ससंघ हि निमन्तिय, चू, वं. 100.95. आरिस्स नपुं., भाव., इसि से व्यु. [आर्थ्य], ऋषि-भाव, ऋषि
या मुनि की अवस्था, ऋषि से सम्बद्ध होना - स्सं प्र. वि., ए.व.- इसिस्स भावो आरिस्सं.क. व्या. 404; आदिविकारो ताव - आरिस्सं ..., क. व्या. 406. आरुण्ण नपुं., आ + (रुद से व्यु., रोना, विलाप, रोदन, स. प. में प्रयुक्त - अताणो असरणो आरुण्णरुण्णकारुअरवं परिदेवमानो, मि. प. 322. आरुप्प/आरुप/अरुप पु./नपुं., अरूप से व्यु. [बौ.. सं., आरूप्य], 1. रूपरहित आलम्बनों वाला, अरूपध्यान, आकाश की अनन्तता, विज्ञान का आयतन, अकिञ्चनता का आयतन तथा न संज्ञा एवं न असंज्ञा का आयतन, इन। रूपरहित चार आलम्बनों वाला अरूप ध्यान, 2. अरूप-भव, तीन प्रकार के भवों में से तृतीय भव, रूपरहित ब्रह्मा का लोक, 3. अरूप-धातु - पं प्र. वि., ए. व. -- रूपानमेतं निस्सरणं यदिदं अरूप, दी. नि. 3.220; रूपानं निस्सरणं यदिदं आरुप्पन्ति एत्थ आरुप्पेपि अरहत्तमग्गो, दी. नि. अट्ठ. 3.222; ... अप्पन पापुणाति, आरम्मणातिक्कमभावनावसेन आरुप्पं, विसुद्धि. 1.230; - प्पं द्वि. वि., ए. व. - असदिसरूपो नाथो, आरुप्पं यं चतुबिधं आह, विसुद्धि. 1.328; उद्धवा आरुप्पं अधो कामष्ट तुं तिरिय रूपधातुं अनवसेस फरन्तो, खु. पा. अट्ठ. 202; - तो प. वि., ए. व. - आरुप्पतो हि अस्मिम्पि पञ्चवोकारभवे तं विपाकनामं हदयवत्थुनो सहायं हुत्वा ..., विभ. अट्ठ. 166; - स्स ष. वि., ए. व. - आरुप्पस्स च निरोधस्स च गहणं अञत्थ पाठे वृत्तक्कमेनेव कतं. पटि. म. अट्ठ. 2.296; - प्पे सप्त. वि., ए. व. - आरुप्पे परस्स चित्तं जानितकामो .... पटि. म. अट्ठ.
1.284; नाममेव हि आरुप्पे, पटिसन्धिपवत्तिस, विभ. अट्ठ. 165; - प्पा पु., प्र. वि., ब. व. - अरूपे आरम्मणे पवत्ता आरुप्पा, अभि. ध. वि. 226; ये ते सन्ता विमोक्खा, अतिक्कम्म रूपे आरुप्पा, ते कायेन फुसित्वा विहरेय्य न्ति, म. नि. 1.42; आरुप्पाति आरम्मणतो च विपाकतो च रूपविरहिता, म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(1).171; - प्पानि नपुं॰, प्र. वि., ब. व. - पञ्च रूपावचरानि चत्तारि च आरुप्पानि, विसुद्धि. 2.177; - प्पे पु., द्वि. वि., ब. व. - चत्तारो आरुप्पे गहिसु.ध. स. अट्ठ. 16; -- पेहि' पु.. तृ. वि., ब. व. - पञ्च सुद्धावासा चतूहि आरूपेहि सद्धि नवाति, म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(2).229; - पेहि प. वि., ब. व. - अरूपेहि निरोधो सन्ततरोति, सु. नि. (पृ.) 195; - प्पानं ष. वि., ब. व. - अरूपावचरं चतुन्नं आरुप्पानं योगवसेन चतुबिधं, विसुद्धि. 2.80; - पेसु पु., सप्त. वि., ब. व. - चतूसु पन आरुप्पेसु आरम्मणसमतिक्कमो होति, विसुद्धि. 1.109; अरूप्पेसु असण्ठिताति, इतिवु. अट्ठ. 195; - कथा स्त्री., कथा. के छठे वर्ग की चौथी कथा का शीर्षक, कथा. 271-272; प. प. अट्ठ. 189; - किरिया स्त्री., अरूपावचरभूमि के चार प्रकार के क्रियाचित्त - या प्र. वि., ब. व. - चतस्सो आरूप्पकिरिया, विभ. अट्ठ. 23; - कुसल नपुं.. तत्पु. स., अरुपावचरभूमि के चार कुशलचित्त - लानि प्र. वि., ब. व. - चत्तारि आरुप्पकुसलानि, विभ. अट्ठ. 23; - गमन नपुं.. तत्पु. स., अरूपभूमि अथवा अरूपलोक में पुनर्जन्म का ग्रहण - नं प्र. वि., ए. व. - पटिसन्धिवसेन अरूपगमन, सु. नि. अट्ठ. 2.188; - चित्त नपुं., अरूपावचरभूमि का चित्त, स. उ. प. के रूप में, दुतिया.- अरूपावचरभूमि का द्वितीय चित्त, जिसका आलम्बन विज्ञान का आयतन होता है - त्तं प्र. वि., ए. व. - दुतियारुप्पचित्तञ्च, चतुत्थारुप्पमानसं, अभि. अव. 314; - चुति स्त्री., तत्पु. स., अरूप-भूमि अथवा रूपरहित ब्रह्मलोकों में मृत्यु, अरूप-धातु में जीवन से बिलगाव - या तृ. वि., ए. व. - आरुप्पचुतियापि अनन्तरा पटिसन्धि वेदितब्बा, विसुद्धि. 2.181; अरूपावचरे च... हेट्ठिमा हेट्ठिमा पटिसन्धि नत्थीति चतुत्थारुप्पचुतिया नवत्तब्बारम्मणपटिसन्धि नत्थि विसुद्धि. महाटी. 2.283; -चेतस नपुं., कर्म. स., अरूपावचरध्यान का चित्त, स. उ. प. के रूप में, दुतिया.- द्वितीय अरूपध्यान का कुशलचित्त एवं विपाकचित्त - सो ष. वि., ए. व. - पठमारुप्पकुसलं दुतियारुप्पचेतसो, अभि. अव. 366; -
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