SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 730
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir www.kobatirth.org असुर 703 असुर वा असुरा, उदा. अट्ठ. 243; ख.3. वास्तविक देवों के समान असुरों के समूहों को परास्त करने वाला देवराज शक्र प्रभासित नहीं होने के कारण असुर - पकतिदेवा विय न (इन्द्र)- नो प्र. वि., ए. व. - स देवराजा असुरगणप्पमद्दनो, सुरन्ति, न इसन्ति न विरोचन्तीति असुरा, उदा. अट्ठ. 243; ओकासमाकऋति.... जा. अट्ठ. 5.133; - जेट्ठक पु., तत्पु. ख.4. प्राणियों के अनेक वर्गों में से एक, अन्य प्राणियों से स. [असुरज्येष्ठक], असुरों का मुखिया, असुरों में प्रमुख, भिन्न प्राणियों का एक वर्ग - सुखकामा हि देवा मनुस्सा असुरों का स्वामी - को प्र. वि., ए. व. - तत्थ असुरेसोति असुरा नागा गन्धब्बा ये च सन्ति पुथुकाया ति, दी. नि. असुरो एसो, असुरजेट्टको सक्को एसोति अधिप्पायेन वदति, 2.198; ग.1. असुरों के दो सुस्पष्ट वर्ग क. कालकञ्चिका, जा. अट्ठ. 4.244; - त्त नपुं॰, भाव. [असुरत्व], असुरभाव, ये प्रेतों जैसे स्वरूप वाले तथा प्रेतों के साथ आवाह-विवाह असुर होने की अवस्था - त्ताय च. वि., ए. व. - अयं दिट्टि करते हैं - ननु कालकञ्चिका असुरा पेतानं समानवण्णा ... यक्खत्ताय वा असुरत्ताय वा... देवताय वा, महानि. 52; .... पेतेहि सह आवाहविवाहं गच्छन्ति, कथा. 299; ख. - दन्त त्रि., ब. स. [असुरदन्त], असुरों के दांतों जैसे वेपचित्तिपरिसा, इस वर्ग वाले असुर देवताओं जैसे रूप टिकराल दांतों वाला, मुख से बाहर की ओर निकले हुए वाले होते हैं तथा उन्हीं के साथ वैवाहिक सम्बन्ध भी दांतों वाला - न्तो पु., प्र. वि., ए. व. - ... असुरदन्तो वा स्थापित करते है - नन वेपचित्तिपरिसा देवानं समानवण्णा हेद्रा वा उपरि वा बहिनिक्खन्तदन्तो, महाव. अट्ठ. 295; - .....देवेहि सह आवाहविवाहं गच्छन्तीति, कथा. 299; ग.2. नगर नपुं, तत्पु. स. [असुरनगर], असुरों का नगर, असुरों पु., ए. व. में प्रयुक्त, शा. अ. एक असुर, देवताओं से की राजधानी - रं प्र. वि., ए. व. - द्वे नगरानि ... शत्रुता रखने वाली प्रजाति का एक प्राणी, ला. अ. दुष्ट अयुज्झपुरानि नाम जातानि देवनगरञ्च असुरनगरञ्च, स. प्रकृति वाला असज्जन व्यक्ति, वीभत्स - एवं खो, भिक्खवे, नि. अट्ठ. 1.296; - परिवार त्रि., ब. स. [असुरपरिवार]. पुग्गलो असुरो होति असुरपरिवारो, अ. नि. 1(2),1063; असुरों के समूह के साथ रहने वाला, असुरों से चारों ओर असुरोति असुरसदिसोविभच्छो, अ. नि. अठ्ठ. 2.319; नेसो से घिरा हुआ - रो प्र. वि., ए. व. - पुग्गलो असुरो होति मिगो महाराज, असुरेसो दिसम्पति, जा. अट्ठ, 4.244; तत्थ असुरपरिवारो, अ. नि. 1(2).106; - पुर नपुं.. तत्पु. स. असुरेसोति असुरो एसो, असुरजेटको सक्को एसोति [असुरपुर], असुरों का नगर, असुरों की राजधानी - रं द्वि. अधिप्पायेन वदति, तदे.; - कञा स्त्री०, तत्पु. स. वि., ए. व. - कोटिसतापि कोटिसहस्सापि नागा तेहि सद्धिं [असुरकन्या], असुरों की पुत्री सुजा, जो देवराज इन्द्र की युज्झित्वा ते असुरपुरयेव पवेसेत्वा निवत्तन्ति, स. नि. अट्ठ. भार्या थी - अं द्वि. वि., ए. व. - सो सुजं असुरकज 1.296; - भवन नपुं.. तत्पु. स. [असुरभवन], सुमेरु पर्वत पुरतो कत्वा अपेथ, दी. नि. अट्ठ. 2.289; - काय पु., असुरों के नीचे पाताल में स्थित असुरों का निवासस्थान - नं प्र. का लोक, चार प्रकार की अपाय भूमियों या दुखभरी गतियों वि., ए. व. - सिनेरुस्स हेडिमतले असुरभवनं नाम अत्थि, में एक, अकुशल कर्मों के विपाक के कारण प्राप्त होने वाले म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(2).198; - भेरी स्त्री., तत्पु. स. दुखद लोक में जन्म - यो प्र. वि., ए. व. - कालङ्कतो च [असुरभेरी], असुरों का ताशा या बड़ा ढोल, असुरों का कालकञ्चिका नाम असुरा सब्बनिहीनो असुरकायो, तत्र नगाड़ा - रियो द्वि. वि., ब. व. - ..., युद्धसज्जा हुत्वा , उपपज्जिस्सति, दी. नि. 3.5; - ये सप्त. वि., ए. व. - असुरभेरियो वादेन्ता महासमुद्दे उदकं द्विधा भेत्वा उद्वहन्ति, देवेसु मनुस्सेसु च, तिरच्छानयोनिया असुरकाये, थेरीगा. स. नि. अट्ट, 1.296; - माया स्त्री., तत्पु. स. [असुरमाया], 477; असुरकायेति कालकञ्चिकादिपेतासुरनिकाये, थेरीगा. असुरों की माया, असुरों की जादुई चाल -- याहि तृ. वि. अट्ठ. 309; - या प्र. वि., ब. व. - दिब्बा वत, भो, काया ब. व. - समायाति सद्धि असुरमायाहि, जा. अट्ठ. 5.18; - परिपूरिस्सन्ति, परिहायिस्सन्ति असुरकाया ति, अ. नि. योनि स्त्री., [असुरयोनि], असुर नामक प्रजाति, असुरों का 1(1).168; असुरकायाति चत्तारो अपाया परिपूरिस्सन्ति, अ. लोक - निं द्वि. वि., ए. व. - असुरकायन्ति नि. अट्ठ. 2.122; - गण पु.. तत्पु. स. [असुरगण]. असुरों काळकञ्जिकअसुरयोनिञ्च वड्डेन्तीति अत्थो, जा. अट्ठ. का समूह, बहुत सारे असुर - णा प्र. वि., ब. व. - तस्मि 5.179; - योनिय त्रि., असुरयोनि में पुनर्जन्म दिलाने वाला काले असुरगणा तावतिंसदेवलोके पटिवसन्ति, म. नि. अट्ठ. - यो पु., प्र. वि., ए. व. - असुरयोनियोति असुरयोनिया (मू.प.) 1(2).198; - गणप्पमद्दन पु., [असुरगणप्रमर्दन]. हितो, असुरजातिनिब्बत्तनकोति अत्थो, नेत्ति. अट्ठ. 254; - For Private and Personal Use Only
SR No.020528
Book TitlePali Hindi Shabdakosh Part 01 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Panth and Others
PublisherNav Nalanda Mahavihar
Publication Year2007
Total Pages761
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size29 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy