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अविहेठन/अविहेठना
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अवीचि
वाला, अहिंसक या अनुत्पीड़क प्रकृति वाला - को पु., प्र. वि., ए. व. - तथागतो पुरिम जाति ... सत्तानं अविहेठकजातिको अहोसि पाणिना वा... सत्येन वा, दी. नि. 3.124. अविहेठन/अविहेठना पु./स्त्री., [अविहेठना], अहिंसा, अनुत्पीड़न, पीड़ा न देना, कष्ट न पहुंचाना, अविहिंसन, अहानि - नत्थ पु., तत्पु. स., हानि नहीं होने का प्रयोजन - त्थाय च. वि., ए. व. - एवमस्सा सीहादीनम्पि अविहेठनत्थाय आरक्खं .. आणापेसुं. जा. अट्ठ. 7.329; - ना स्त्री.. प्र. वि., ए. व. - अहिंसाति परेसं अविहेसा अविहेठना, जा. अट्ठ. 2.45. अविहेठयन्त त्रि., वि + vहेठ का वर्त. कृ. का निषे. [अविहेठयत्], पीड़ित न करता हुआ, चोट न पहुंचा रहा, हानि नहीं कर रहा - यं पु., प्र. वि., ए. व. - सब्बेसु भूतेसु निधाय दण्डं, अविहेठयं अञ्जतरम्पि तेसं. सु. नि. 35;
अविहेठयन्ति अविहेठयन्तो, सु. नि. अट्ठ. 1.52. अविहेसिकजातिकता स्त्री॰, भाव., अहिंसक प्रकृति का होना, कष्ट या पीड़ा न देने वाले स्वभाव का होना - ता प्र. वि., ए. व. - अविहिंसाति पाणिआदीहि
अविहेसिकजातिकता सकरुणभावो, सु. नि. अट्ठ. 2.48. अविहेसा स्त्री., विहेसा का निषे. [अविहिंसा]. प्राणियों के प्रति हिंसक मनोवृत्ति का अभाव, प्राणियों के प्रति अनुकम्पा या उनका कल्याण करने का भाव - तस्स मोघपरिसस्स पाणेसु अनुद्दया अनुकम्पा अविहेसा भविस्सति, पारा. 48%3B अविहेसा ति अविहिंसना, एतेहि करुणापुब्बभाग दस्सेति, पारा. अट्ठ 1.230; अहिंसाति परेसं अविहेसा अविहेठना, जा. अट्ट. 2.45; - सं द्वि. वि., ए. व. - अविहेसं खो पनस्स मनसिकरोतो... विमुच्चति, अ. नि. 2(1).225; - य च. वि., ए. व.- ... अविहेसाय चित्तं पक्खन्दति पसीदति सन्तिट्ठति विमुच्चति, अ. नि. 2(1).225; - धातु स्त्री., तत्पु. स. [अविहिंसाधातु]. धातु या मूल-तत्त्व के रूप में अहिंसा की भावना - छयिमा ..., धातुयो- कामधातु ..., अविहिंसाधातु, म. नि. 3.109; - वन्तु त्रि., [अविहिंसावत्], अहिंसा की भावना से युक्त, अनुकम्पा से भरा हुआ - वा पु., प्र. वि., ए. व. - अविहेसवा होति, अविहेसासहगतेन चेतसा विहरति. म. नि. 3.98. अवीचि' त्रि., वीचि का निषे., ब. स. [अवीचि, पु./स्त्री.]. बिना अन्तराल वाला, लगातार चल रहा, सतत् रूप में प्रवर्तित, व्यवधानरहित, चि नपुं.. प्र. वि., ए. व. - अवीचीति
अविरळ, महानि. अट्ठ. 62; पुन अवीचि सवीचीति एवम्पि दुविधा होति,ध. स. अट्ट, 360; - क त्रि.. ब. स. [अवीचिक]. लगातार चल रहा/रही - का स्त्री., प्र. वि., ए. व. - विसदिसचित्तपवत्तिसजाताय वीचिया अभावेन अवीचिका, चित्तसन्तति, विसुद्धि. महाटी. 2,450; - कं द्वि. वि., ए. व. - ... अवीचिकं चित्तसन्ततिं अनुप्पबन्धमानं तथेव सङ्घारे आरम्मणं कत्वा उप्पज्जति पठमं जवनचित्तं विसुद्धि. 2.306; - जरा स्त्री., कर्म स., लगातार रूप से चल रही जीर्णता, निरन्तर विद्यमान जरा, लगातार हो रहा रूपान्तरण - अन्तरन्तरा वण्णविसेसादीनं दुविजेय्यत्ता जरा अवीचिजरा नाम, ध. स. अट्ठ. 360; - मनुसम्बन्ध त्रि., अवीचि + अनुसम्बन्ध, व्यवधान से रहित क्रम, लगातार चल रहा सिलसिला - अवीचिमनुसम्बन्धो, नदीसोतोव वत्ततीति, म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(1).271. अवीचि पु., (निरय के तात्पर्य में) स्त्री॰ [अवीचि त्रि.], आठ प्रकार के महानरकों में से एक - पतापनो अवीचि त्थी संघातो तपनो इति, अभि. प. 657; - चि प्र. वि., ए. व. - ... अयं लोको अवीचि मजे..... अ. नि. 1(1).186; अवीचीव निरस्सादं लोक अत्वा दुखद्दितं. सद्धम्मो. 37; - चिं द्वि. वि., ए. व. - ... बहिजेतवने पथविया विवरे दिन्ने अवीचि पाविसि, जा. अट्ठ. 4.179; -- ना तृ. वि., ए. व. - हेट्ठा च अवीचिना परिच्छिन्ने लोकसन्निवासे एतं... नत्थी ति, जा. अट्ठ. 1.350; - तो प. वि., ए. व. - अयं पन अवीचितो याव भवग्गा पत्थट किलेसोघं... आह. स. नि. अट्ठ. 1.17-183; - म्हि सप्त. वि., ए. व. - अथ रुक्खं ... एकप्पहारेनेव कालं कत्वा अवीचिम्हि निब्बत्ता महादुक्खं अनुभवन्ति, स. नि. अट्ठ. 1.100; - चम्गि पु., तत्पु. स., अवीचि-नरक की जलाने वाली आग - यस्मिञ्च जायमानस्मि अवीचग्गि न पज्जलि, अप. 1.159; - निरय पु.. तत्पु. स. [बौ. सं. अवीचिनिरय], अवीचि नाम वाला एक नरक - यो प्र. वि., ए. व. - एवं अवीचिनिरयो, हेट्ठा उपरि पस्सतो, महानि. 300; - यं द्वि. वि., ए. व. - अवीचिनिरयं पत्तो, चतुद्वार भयानकं चूळव. 343; - ये सप्त. वि., ए. व. - ... न जच्चबधिरो, ..., न अवीचिनिरये, .... न अचं चक्कवाळ सङ्कमति, सु. नि. अट्ट. 1.41-42; - परायण त्रि., तत्पु. स., अवीचि-नामक नरक में जाने वाला - तस्माति यस्मा चेतियराजा छन्दागमनेन अवीचिपरायणो जातो, जा. अट्ठ. 3.406; - परियन्त त्रि., ब. स. [बौ. सं. अवीचिपर्यन्त]. अवीचि-नामक नरक की सीमा वाला, अवीचि नरक तक
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