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अवसेस
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अवस्सिक
(बछड़े के पीने के बाद) शेष बचे हुए को ही दुह लेने वाला - गोचरकुसलो होति, सावसेसदोही च होति. म. नि. 1.287; - मंसलोहितयुत्त त्रि., तत्पु. स., बचे हुए मांस एवं रक्त से युक्त - त्तं द्वि. वि., ए. व. - समंसलोहितन्ति सावसेसमंसलोहितयुत्तं, दी. नि. अट्ठ. 2.325. अवसेस त्रि., [अवशेष], शेष बचा हुआ, अवशिष्ट, अन्य, दूसरा - से पु., वि. वि., ब. व. - मेथुनधम्मतो अवसेसेपि सुन्दरे च असुन्दरे च पञ्च कामगुणे हित्वा, सु. नि. अट्ठ. 2.192; - सा' पु., प्र. वि.. ब. व. - इतो मुत्ता पन अवसेसा चतुहि सतिपट्टानेहि उपसन्ता, म. नि. अट्ठ. (म.प.) 2.3; - सा स्त्री., प्र. वि., ए. व. - तस्स ओनमनेन अवसेसा जनता ओनमति अपचितिं करोति, मि. प. 220; - सानि नपुं.. प्र. वि., ब. व. - अवसेसानि यानि कानिचि विविधानि पुष्फजातानि, मि. प. 177; - सेहि तृ. वि., ब. व. - अवसेसेहि समुहानेहि भगवतो वेदना उप्पज्जति, मि. प. 139; - सानं पु., ष. वि., ब. क. - अवसेसानं देवमनुस्सानं पूजा करणीया, मि. प. 173; - सेसु पु., सप्त. वि., ब. व. - अवसेसेसु पन अप्पमा सत्तपञत्तियं पवत्तन्ति, अभि. ध. स. 65. अवस्सं अ., क्रि. वि. [अवश्यं], आवश्यक रूप से, अनिवार्य रूप से, निश्चय ही, सर्वथा, बिना किसी सन्देह के -
अन्तरेनन्तरा अन्तोवस्सं नूनं च निच्छये, अभि. प. 1150. अवस्सक त्रि., अवस्स से व्यु. [आवश्यक], जरूरी, अनिवार्य, अपरिहार्य - अवस्सक अधमिण इच्चेतेस्वत्थेस णीप्पच्चयो होति किच्चा च, क. व्या. 638; अवस्सक अधमिण इच्चेतेस्वत्थेसु णीप्पच्चयो होति, सद्द. 3.862; - त्त नपुं.. भाव., आवश्यकता, जरूरत, अनिवार्यता - त्तं द्वि. वि., ए. व. - एवं सन्ते पि अवस्सकतं आविकातुं अवस्सन्ति वुत्तं, सद्द. 3.862. अवस्सकारी त्रि., [अवश्यकारिन], निश्चित रूप से काम को करने वाला - क्रियत्था णी होति सीलादिसु पतीयमानेसु उण्हभोजी, खीरपायी अवस्सकारी सतन्दायी, मो. व्या. 5.53. अवस्सजति अव+ सज का वर्त., प्र. पु.. ए. व. [अवसृजति], ढीला कर देता है, मुक्त कर देता है, स्वेच्छानुसार काम कर देता है, छोड़ देता है, शिथिल कर देता है - न्ति ब. व. - पप्पोन्ति पदमजरामरं चिराय, संक्लेसं सकलमवस्सजन्ति धीरा, ना. रु. प. 1791; - स्सजी अद्य., प्र. पु., ए. व. - सुदुक्करं पोरिसादो अकासि, जीवं गहेत्वान अवरसजी म.
जा. अट्ठ. 5.481; - स्सह त्रि., भू. क. कृ., मुक्त कर दिया गया, शिथिल कर दिया गया - टुं नपुं॰, प्र. वि., ए. व. - किलेसाभावेनेव कम्मं अप्पटिसन्धिकत्ता अवस्सलु नाम होतीति एवं किलेसप्पहानेन कम्म पजहि, उदा. अट्ठ. 269; - स्सट्ठभवसङ्घार त्रि.. ब. स. [अवसृष्टभवसंस्कार], वह, जिसका भवसंस्कार शिथिल हो चुका है - रो पु., प्र. वि., ए. व. - इति बोधिमूलेयेव अवस्सट्ठभवसद्धारो भगवा वेखमिस्सकेन विय, .... उदा. अट्ठ. 269. अवस्सन नपुं.. Vवस्स से व्यु., क्रि. ना., वस्सन का निषे०, बोलने का अभाव, नहीं मिमियाना - नत्थाय पु.. च. वि., ए. व., तत्पु. स., नहीं मिमियाने देने के लिए - दिवा अरुले खादिस्सामा ति तस्सा अवस्सनत्थाय मुखं बन्धित्वा वेलुगुम्बे ठपेसु. जा. अट्ठ. 4.224. अवस्संभावी त्रि.. [अवश्यंभाविन्], अवश्य ही घटित हो जाने वाला, निश्चित रूप से हो जाने वाला - सावकभावं उपगन्तुकामो, अरियसावको वा अवस्संभावी, इतिवु. अट्ठ. 222; - विनी स्त्री., प्र. वि., ए. व. - निरयादिका दुग्गति
इच्छितब्बा, सा अस्स अवस्सभाविनी, अ. नि. अट्ठ. 2.186. अवस्सय पु., [अपश्रय], सहारा, शरण, आश्रय, आधार क. आश्रय भूत वस्तु, स्थल, क्षेत्र या कर्म - यो प्र. वि., ए. व. - चत्तारो महापदेसा यावज्जदिवसा भिक्खून पतिट्ठा च अवस्सयो च. म. नि. अट्ठ. (उप.प.) 3.22; इधलोकपरलोकेसु दानसदिसो अवस्सयो पतिट्ठा आलम्बनं ताणं लेणं गति परायणं नत्थि, उदा. अट्ठ. 229; इदहि अवस्सयद्वेन रतनमयसीहासनसदिसं तदे; ख. आश्रय या शरणस्थल के रूप में मनुष्य - अहमरस अवस्सयो भविस्सामी ति केवट्टानं सन्तिकं गन्त्वा, जा. अट्ठ. 1.208; इमिस्सा ठपेत्वा में अओ अवस्सयो भवितुं समत्थो नाम नत्थी ति, ध. प. अट्ठ. 1.393; - कम्म नपुं.. कर्म. स. [अपश्रयकर्मन]. आश्रय या सहारा के रूप में कर्म - म्म द्वि. वि., ए. व. -- यावाहं बुद्धपूजादि अत्तनो अवस्सयकम्मं करोमी ति, म. नि. अट्ठ, (उप.प.) 3.177. अवस्सयिं अव/अप + सि का अद्य.. उ. पु.. ए. व., आ गिरा, आ पड़ा, बस गया, सहारा लिया - इति पङ्के अवस्सयिन्ति इमिना कारणेनाहं इमरिमं कद्दमे अवस्सयिं निपज्जि, वासं कप्पेसिन्ति अत्थो, जा. अट्ठ. 2.66; इति पङ्के अवस्सयिन्ति इदं एतस्स अत्थस्स साधकं वचनं, सद्द. 1.85. अवस्सिक त्रि., वस्सिक का निषे. [अवर्षिक], क, वर्षा-ऋतु के साथ नहीं जुड़ा हुआ, वर्षाकाल से भिन्न काल वाला
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