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अलक
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अलक्खिय
अलंसाकच्छोति साकच्छाय युत्तो, अ. नि. अट्ठ. 3.31; - साजीव त्रि., भिक्षुसङ्घ में अन्य भिक्षुओं के साथ ठीक से निवास करने तथा अन्य क्रियाकलापों में सक्षम – वो पु., प्र. वि., ए. व. - पञ्चहि, भिक्खवे, धम्मेहि समन्नागतो भिक्खु अलंसाजीवो सब्रह्मचारीनं, अ. नि. 2(1).76; छठे अलंसाजीवोति साजीवाय युत्तो, अ. नि. अट्ठ. 3.31; - साटक त्रि.. ब. स., पांच प्रकार के पेटुओं या अत्यधिक मात्रा में भोजन लेने वालों में से एक, पेट्रपन के कारण उठी हुई तोंद के कारण ठीक से वस्त्र धारण करने में अक्षम - को पु.. प्र. वि., ए. व. - महग्यसो चाति महाभोजनो आहरहत्थकअलंसाटकत-त्रवट्टककाकमासकभुत्तवमितकानं अञतरो विय, ध. प. अट्ठ. 2.290; यो भुजित्वा अच्चु मातकुच्छिताय अद्वितोपि साटकं निवासेतुं न सक्कोति, अयं अलंसाटको, विसद्धि. महाटी. 1.56. अलक' पु.. [अलक]. धुंघराले बाल, बालों की लटें, जुल्फें, मस्तक के घूघर - का प्र. वि., ए. व. - कस्स वातेन छुपिता, निद्धन्ता मुदुकाळका, जा. अट्ठ. 7.63. अळक' पु., व्य. सं., एक राजा का नाम - स्स ष. वि., ए. व. - सो अस्सकस्स विसये, अळकस्स समासने, सु. नि. 983; अळकस्स पतिद्वानं, पुरिमाहिस्सतिं तदा, सु. नि. 1017. अलकमंदा/आळकमन्दा स्त्री., [अलकनन्दा]. कुबेर विस्सवन महाराज) की राजधानी- देवानं आळकमन्दा नाम राजधानी इद्धा चेव होति फीता च बहुजना च.... दी. नि. 2.110-111; आळकमन्दाव देवानं सावत्थिपुरमुत्तमन्ति, खु. पा. अट्ठ. 90; अलका लकमन्दास्स पुरी, पहरणं गदा, अभि. प. 32. अलका स्त्री.. [अलका]. उपरिवत् - अलकेव कुबेरस्स
सक्कस्सेवामरावती, चू. वं. 80.5. अळक्क' पु.. [अलक], सफेद मदार, अकवन - क्को प्र. वि., ए. व. - अक्को विकिरणो तस्मि, त्वळक्को सेतपुप्फके. अभि. प. 581; - माला स्त्री.. तत्पु. स. [अलर्कमाला]. मदार के पुष्पों की माला - य तृ. वि., ए. व. - वानरेन कुत्तगाथाय अलक्कमालीति अहितुण्डिकेन कण्ठे परिक्खिपित्वा ठपिताय अलक्कमालाय समन्नागतो, जा. अट्ठ. 4.2773; - माली पु.. प्र. वि., ए. व. [अलर्कमालिन]. मदार के पुष्पों की माला को धारण करने वाला - अलक्कमाली तिपुकण्णविद्धो, लट्ठीहतो सप्पमुखं उपेत जा. अट्ठ.4.2763
... अलक्कमालीति ... अलक्कमालाय समन्नागतो, जा.
अट्ठ. 4.277. अलक्क पु., [अलक], पागल कुत्ता - स्वानो सुवानो साळूरो सूनो सानो च सा पुमे, उन्मत्तादितमापन्नो अळक्को तिसुणो मनो, अभि. प. 519; तुल., शुनको भषक: श्वा स्यात्, अलर्कस्तु स योगितः, अमर. 2(10).22. अलक्खिक त्रि., [अलक्षक, अलक्ष्मक], शा. अ. चिहों या लक्षणों से रहित, नहीं दिखाई देने योग्य, ला. अ. वह, जिसके अशुभ लक्षण स्पष्ट रूप में दिखलाई न पड़ें, अमङ्गलसूचक, दुर्भाग्यजनक, मूर्ख, प्रज्ञाहीन - को पु..प्र. वि., ए. व. - याव पापो अयं देवदत्तो, अलक्खिको, चूळव. 335; अलक्खिकोति एत्थ न लक्खेतीति अलक्खिको, न जानातीति अत्थो, अहं पापकम्मं करोमीति न जानाति, न लक्खितब्बोति वा अलक्खिको, न परिसतब्बोति अत्थो, चूळव अट्ठ. 109; - का स्त्री., प्र. वि., ए. व. - अहं काळी अलक्खिका, काळकण्णीति में विदू ... अलक्खिकाति निप्पा , जा. अट्ठ. 3.226; - कं पु., द्वि. वि., ए. व. - कस्मा एवरूपं अलक्खिक रुञो पच्छिमासने निसीदापेसु. जा. अट्ठ. 5.277-78; - ता स्त्री., भाव. [अलक्ष्यता, अलक्ष्मीकता], ऐश्वर्य-विहीनता, धनसंपत्ति आदि से रहित होना - य तृ. वि., ए. व. - तत्थ नाहं अलक्ख्याति अलक्खिकताय निस्सिरीकताय नाहं गेहतो निक्खमिन्ति योजना, थेरगा. अट्ठ.2.399. अलक्खिपुरिस पु., कर्म. स. [अलक्ष्मीकपुरुष], ऐश्वर्य या सौभाग्य से रहित पुरुष, अभागा, पापी - स संबो.. प्र. वि., ए. व. - पुरिसन्त अन्तिमपुरिस, कलि अलक्खिपुरिस, अवजात अवजातपुत्त, सु. नि. अट्ठ. 2.180. अलक्खी स्त्री.. [अलक्ष्मी], क. दुर्भाग्य, विपत्ति, दुर्दशा, बुरी हालत - क्खिं द्वि. वि., ए. व. - नहि लक्खिं अलक्खिं वा, अञो अञस्स कारको ति, जा. अट्ठ. 3.230; अलक्खिं नुद महाराज, लक्ख्या भव निवेसनं जा. अट्ठ. 5.107: ख. कालकर्णी, अपशकुन, दुर्भाग्यसूचक लक्षण, असमृद्धि की देवी - अलक्खी काळकण्णीत्थी, अथ लक्खी सिरित्थिय, अभि. प. 82; सिरी तात अलक्खी च, पुच्छिता एतदब्र.
जा. अट्ठ. 5.107. अलक्खिय पु., व्य. सं., एक तमिल-प्रमुख का नाम - तथा ताड़िगप्पेरुमाळो अळक्खियरायरव्हयो, चू. वं. 76.145.
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