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अरे/हरे/रे
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अल
अरूपभवो अरूप, अरूपे उपपत्ति अरूपूपपत्ति, तस्सा अरोगी त्रि., रोगी का निषे. [अरोगिन], रोगरहित, स्वस्थ, अरूपूपपत्तिया, ध. स. अट्ठ. 245.
कुशल, क्षय-मुक्त - गी पु., प्र. वि., ए. व. - अरोगी महितं अरे/हरे/रे अ०, [अरे रे], आश्चर्य, घबराहट, असन्तोष, चम्म, धन्तहेमं निदस्सनं, अभि. अव. 90. डांट-फटकार एवं तिरस्कार का सूचक निपा., अपने से अरोचक/अरोचिक पु.. [अरोचक], भूख का कम लगना, छोटी श्रेणी वाले लोगों के लिए प्रयुक्त सम्बोधन - अव्हाने भोजन के प्रति अरुचि या जुगुप्सा - को प्र. वि., ए. व. भो अरे अम्भो हम्भो रे जेङ्ग आवुसो, हे हरे थ, अभि. प. - अरोचको आहाररस अरुच्चनरोगो, लीन. (दी.नि.टी.) 1139; आवुसो, अम्भो हम्भो हरे अरे हे इच्चेते 2.172; - केन तृ. वि., ए. व. - भत्ताच्छादकेनाति भत्तं एकवचनपुथुवचनवसेन पुरिसानं आमन्तणे, सद्द, 3.894%; अरोचिकेन, महाव. अट्ठ. 351. 895; अहो वत रे छेका आचरिया, ईदिसानिपि नाम सिप्पानि अरोचयति रुच के वर्त. प्र. पु., ए. व., पसन्द करता है, करिस्सन्ती ति, ध. स. अट्ठ. 251; सा नून पुन रे पक्का, मन के लिए रुचिकर मानता है - यिंसु अद्य. प्र. पु. ब. विकाले भत्तमाहरि जा. अट्ठ. 5.99; महाजनो अरे व. - तम्हा च कम्मा विरमिंसु एके, एके च पब्बज्जमरोचयिंसु, दुट्ठअन्तेवासिक, त्वं आचरियेन सद्धिं सारम्भं करोसि, जा. थेरगा. 724. अट्ठ. 2.187.
अरोदनकारण नपुं., तत्पु. स. [अरोदनकारण], नहीं रोने अरोग/आरोग त्रि., ब. स. [अरोग], शा. अ. रोग से का कारण - णं द्वि. वि., ए. व. - तं सुत्वा सा अरोदनकारणं मुक्त, स्वस्थ, हट्ठा कट्ठा, अच्छा, भला- गो पु., प्र. वि., ए. कथेन्ती.... पे. व. अट्ट. 54. व. - सोम्हि अरोगो विभमिस्सामी ति ... तं भिक्खु चेव अरोदमान त्रि., रुद के वर्त. कृ. का निषे. [अरोदमान], उपलहिंस. जीवको च कोमारभच्चो तिकिच्छि सो अरोगो नहीं रो रहा/रही - ना स्त्री., प्र. वि., ए. व. - केन विभमि, महाव. 91-92. येन येन भेसज्जेन आतुरो अरोगो कारणेन त्वं रोदितं युत्तकाले अरोदमानाव महाहसितं हसासि, होति, तेन तेन भेसज्जेन आतुरं उपसङ्कमति, मि. प. 166; जा. अट्ठ, 3.195. - गा ब. व. - पुत्ता च मे समानिया अरोगा, सु. नि. 24; अरोपितजात त्रि., कर्म. स. [अरोपितजात], बिना रोपे हुए ला. अ. अक्षुण्ण, नित्य, मृत्यु के उपरान्त रोग आदि से स्वयं उत्पन्न (जंगली फसल) - ता पु.. प्र. वि., ब. व. - सर्वथा मुक्त एवं शुद्ध आत्मा - अरूपी अत्ता होति अरोगो परं चीनकानीति अटविपब्बतपादेसु अरोपितजाता चीनमुग्गा, मरणा सञी तिनं पञपेन्ति, दी. नि. 1.26; तत्थ अरोगोति सु. नि. अट्ठ 1.261. निच्चो, दी. नि. अट्ठ. 1.101; एवं वण्णो अत्ता होति अरोगो अरोपिम त्रि., उपरिवत् -- नं नपुं.. प्र./द्वि. वि., ए. व. - परं मरणा'ति, म. नि. 2.235; - गा स्त्री., प्र. वि., ए. व. महावनं नाम सयंजातं अरोपिमं सपरिच्छेदं महन्तं वनं. - सुखिनी होतु सुप्पवासा कोलियधीता, अरोगा अरोगं पुत्तं । विजायतूति, उदा. 86; तावदेवस्स माता अरोगा अहोसि, अरोसनेय्य त्रि.. रुस के सं. कृ. रोसनेय्य का निषे०, वह, ध. स. अट्ठ. 149; - ता स्त्री॰, भाव. [अरोगता], स्वस्थ जिसे किसी भी तरह रुष्ट या क्रोधित न किया जा सके - होना, उपद्रवों से मुक्त होना, रोग-रहित होना - सोभनानं य्यो पु., प्र. वि., ए. व. - अरोसनेय्यो न सो रोसेति कञ्चि, अत्थिता होतु अरोगता निरुपदवताति, खु, पा. अट्ठ. 142; तं वापि धीरा मुनि वेदयन्ति, सु. नि. 218; ... सो खीणासवमुनि आयु अरोगता वण्णं, सग्गं उच्चाकुलीनता, मि. प. 309; - अरोसनेय्यो धीतुमारको ति वा पेसकारो ति वा एवमादिना नत्तु त्रि., ब. स. [अरोगनप्त], वह, जिसके नाती स्वस्थ या नयेन कायेन वा वाचाय वा रोसेतुं घट्टेतुं बाधेतुं अरहो न नीरोग हों - त्ता स्त्री., प्र. वि., ए. व. - तेन खो पन होति, सु. नि. अट्ठ. 1.224. समयेन विसाखा मिगारमाता बहुपुत्ता होति बहुनत्ता, अरोगपुत्ता अल क. तन्द्रा, रोकना, दूर रखना अर्थ वाली एक धातु - अरोगनत्ता अभिमङ्गलसम्मता, पारा. 292; - भाव पु.. स्वस्थ कलिले अलकल द्वयं, धा. मं. 66; मनु-पूर सुण कुसु होना, रोगों से रहित अवस्था, कुशलता - वं द्वि. वि., ए. इल अल मह सि-कि इच्चेवामादीहि धातूहि पाटिपदिकेहि व. - सा मातापितूनञ्च भरियाय च पत्तानञ्च अरोगभावं च उस्सनुस इस इच्चेते पच्चया होन्ति, क. व्या. 675; ख. पुच्छि ध. प. अट्ठ. 1.186; अथरस मम अरोगभावं कथेत्वा अलङ्करण अर्थ वाली एक धातु - अल भूसने, सद्द. तं आदाय आगच्छेय्याथ, जा. अट्ठ. 3.52.
2.434.
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