SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 584
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अरञ्जवास 557 अरञाराम सदा ब. व. में ही प्रयुक्त [अरण्यवनप्रस्थ], क. जंगल एवं पठार में स्थित वन, ख. जंगलों एवं वनों में विद्यमान आश्रय-स्थल - नि प्र. वि., ब. व. - अरवनपत्थानि पन्तानि सेनासनानि, म. नि. 1.22; अञ्जवनपत्थानीति अरआनि च वनपत्थानि, म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(1).119; अरञ्जवनपत्थानीति अरञकङ्गयुत्तताय अरानि, महावनसण्डताय वनपत्थानि, दी. नि. अट्ठ. 2.360; अरज्जवनपत्थानीति अरञ्जलक्खणप्पत्तानि वनपत्थानि, अ. नि. टी. 2.24. अरञवास 1. पु.. [अरण्यवास], क. वनवासी या वानप्रस्थजीवन, तपस्वी जीवन, भिक्षुभाव - सो प्र. वि. ए. व. - तस्स अञवासो न इज्झति, म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(2).144; अरञवासो नाम बुद्धादीहि वण्णितो थोमितो ति, थेरगा. अट्ट, 1.96; - सं द्वि. वि., ए. व. - अम्हाक अनुरक्खणत्थाय अरञवासं अनुजानि जा. अट्ठ. 1.138; - सेन तृ. वि., ए. व. - किं करिस्सामि अरञ्जवासेन, जा. अट्ट, 1.114; - स्स ष. वि., ए. व. - अरुञवासस्स पच्चयसम्पत्तिं दरसेति, म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(2).114; - से सप्त. वि., ए. व. - अरतिन्ति अरजवासे उक्कण्ठितत्तं. ध. प. अट्ठ. 2.413; - म्हि सप्त. वि., ए. व. - तस्मा अज्ञवासम्हि रतिं कयिराथ पण्डितोति, विसुद्धि. 1.72; 2 त्रि., ब. स., तापस जीवन बिताने वाला, वानप्रस्थ, वन में वास करने वाला साधक, वनवासी - सा पु., प्र. वि., ब. व. - अरञवासा अहेसुं... उत्तमत्थगवेसका, मि. प. 130; - वासी त्रि.. [अरण्यवासिन्], वन में निवास करने वाला, तपस्वी जीवन बिताने वाला - सिनो पु., प्र. वि., ब. व. - अरुञवासिनो पन दुब्बलमनुस्सा ... न सक्कोन्ति, म. नि. अट्ट (मू.प.) 1(2).137; - वासिको पु., प्र. वि., ए. व.. उपरिवत् - अरञवासिको एको तापसो झानलाभी, जा. अट्ठ. 1.286; - विहार पु.. [अरण्यविहार], क. वन में निवास - रेन त. वि., ए. व. - अत्तमनो होमि अरविहारेन, अ. नि. 2(2).57; ख. वन में विद्यमान आवास-गृह - स्स ष. वि., ए. व. - एकस्स अरविहारस्स पिट्ठिभागे पादे ..... पलिबुद्धो, जा. अट्ठ. 3.292; - सङ्गामगत त्रि., [अरण्यसंग्रामगत], जङ्गल में हो रहे युद्ध में पहुंचा हुआ - तो पु., प्र. वि., ए. व. - अरञसङ्गामगतो अवसेसधुतायुधो, । विसुद्धि. 1.72; - सज्ञा स्त्री., प्र. वि., ए. व. [अरण्यसंज्ञा]. शा. अ. वन में एकान्तसेवन से सम्बन्धित सोच-विचार, ला. अ. लगावरहित या अनासक्त जीवन की इच्छा, अनासक्तिभाव के लिए संकल्प - मिगसूकरादिसद्देन अरञ्जसा उप्पज्जति, सु. नि. अट्ठ. 2.68; - अं द्वि. वि., ए. व. - अरञस येव मनसि करिस्सति एकत्तन्ति, अ. नि. 2(2).57; - य तृ. वि., ए. व. - अरअसआय चित्तं पक्खन्दति ... अधिमुच्चति, म. नि. 3.148; - सजी त्रि., [अरण्यसंज्ञिन], लगावरहित जीवन की इच्छा करने वाला, अनासक्तिभाव के लिए सुदृढ़ संकल्प करने वाला - चिनो पु, ष. वि., ए. व. -- विवेककामस्स अरअसचिनो, थेरगा. 110; - सत्थ पु., एक चक्रवर्ती राजा का नाम - त्थो प्र. वि., ए. व. - अरञसत्थो नामेन, चक्कवत्ती महब्बलो, अप. 1.281; - सामिक पु., तत्पु. स. [अरण्यस्वामिन], जंगल का स्वामी - मिका प्र. वि. , ब. व. - अरञसामिका एतेसं अनिस्सरा, पारा. अट्ठ. 1.274; - सुनख पु.. तत्पु. स., जंगली कुत्ता, भेड़िया - खो प्र. वि., ए. व. - एत्थ कोकोति अरञसुनखो, सद्द. 2.325; - सेनासन नपु., तत्पु. स. [अरण्यशयनासन], जंगल में बना निवास स्थान - नं द्वि. वि., ए. व. - तेनस्स परक्कमजवयोग्गभूमि अरञसेनासन दस्सेन्तो भगवा ..., पारा. अट्ठ2.12; - अस्स पु.. [अरण्याश्व], जंगली घोड़ा - स्सा प्र. वि., ब. व. - हत्थी अरञहत्थी अस्सा अरु अस्सा. म. नि. अट्ठ. (म.प.) 2.240. अरञानी स्त्री., [अरण्यानी], विशाल वन, बीहड़ जंगल, बड़ा जंगल, विस्तृत मरुभूमि - नियं सप्त. वि., ए. व. - ब्रहावनेति महारुक्खगच्छगहनताय महावने अरुआनियं ...., थेरगा. अट्ठ. 1.96. अरआयतन नपुं.. तत्पु. स. [अरण्यायतन]. वन में मौजूद (वन्य पशुओं अथवा तपस्वियों का) आश्रय-स्थल, वन्य निवासस्थली - नं प्र. वि., ए. व. - रमणीयं अरआयतनं ...... पे. व. अट्ठ. 36; - नानि द्वि. वि., ब. व. - भयभोगा पटिविरता अरआयतनानि अज्झोगाहेत्वा, म. नि. 1.209; - तो प. वि., ए. व. - याजेय्याति सचे त्वं अरआयतनतो इसि लोमसकस्सपं आनेत्वा .... जा. अट्ठ. 3.454; - ने सप्त. वि., ए. व. - एकस्मिं अरआयतने फलानि खादन्तो वसति, जा. अट्ठ. 1.174. अरज्ञाराम त्रि., ब. स. [अरण्याराम], वनवासी जीवन में भरपूर आनन्द अनुभव करने वाला - मा पु., प्र. वि., ब. व. - बुद्धा हि नाम अरञज्झासया अरजारामा अन्तोगामे ..... म. नि. अट्ठ. (म.प.) 2.13. For Private and Personal Use Only
SR No.020528
Book TitlePali Hindi Shabdakosh Part 01 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Panth and Others
PublisherNav Nalanda Mahavihar
Publication Year2007
Total Pages761
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size29 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy