SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 58
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org अग्गयोध वाहन, शाही हाथी, प्रधान-कुञ्जर अग्गयानं राजवाहि - ब्राह्मणानं अदा गज, जा. अट्ठ. 7.239; 274. अग्गयोध पु. कर्म. स. [ अग्रयोद्धा ] प्रधान-योद्धा, मुख्य सैनिक या सिपाही स्सष. वि., ए. व. योधानं अग्गयोधस्स सीसच्छिन्नासिधोवन, म. दं. 22.44. अग्गरतन नपुं., कर्म. स. [ अग्ररत्न ], बहुमूल्य रत्न, महार्घ रत्न. त्रिरत्न नं हि. वि. ए. व. अग्गरतनं पयच्छेति असोकं मम सहायक दी. वं. 11.28. अग्गरम्ह त्रि. गरव्ह का निषे [ अगर्ह्य] 1. अनिन्दनीय, प्रशंसनीय, श्लाघ्य तदग्गरम्हहि विनिन्दमानो, जा. अड. 7.46; 2. यह शब्द संभवतः अग्ग + अरम्ह (= अर्ह्य) रूप में भी निष्पन्न कहा जा सकता है तथा अत्यन्त पूजनीय या अग्रगण्य अर्थ का प्रकाशक है. अग्गरस पु.. कर्म. स. [ अग्ररस] प्रणीत रस उत्तम या श्रेष्ठरस, निर्वाणरस - संद्वि. वि., ए. व. - धोरम्हसीली च कुलम्हि जातो, न मज्जती अग्गरसं पियित्वा जा. अड. 2.80 घ. प. अ. 1,334 परिचित्त त्रि. [परितृप्त ], उत्तम रस या निर्वाणरस से छका हुआ या परितृप्त - तो पु०, प्र वि. ए. व. पुरिसो अग्गरसपरितित्तो न अज्ञेस हीनानं रसानं पिहेति, अ. नि. 2 ( 1 ) 218 - टि. भोज्य पदार्थों में खीर, तरल पदार्थों में गोघृत, कसैले पदार्थों में क्षुद्रक मधु मीठे पदार्थों में शर्करा अग्ररस माने गये हैं- भोजनरसेसु पायासों स्नेहसेसु गोसष्टि कसावररोसु खुदकमधु अनेलक मधुररसेसु सक्कराति एवमादयो अग्गरसा नाम, अ. नि. अड. 3.71. अग्गराज पु०, कर्म. स. [ अग्रराजन् ], सर्वोपरि राजा, अधिराज, अधीश्वर, मूर्द्धाभिषिक्त राजाज्ञो ष. वि. ए. व. हंसान अभिहारेसु अग्गरज पवासितन्ति जा. अड. 5373 - जाप्र. वि. ए. व. त्वंसि महाराज, सकलजम्बुदीपे अग्गराजा, मि. प. 24. - अग्गरूप नपुं., कर्म, स. [ अग्ररूप] अतीव सुन्दर वस्तु अतिशय शोभन पदार्थ, द्रष्ट. स. उ. प. के रूप में, सुत्त. के अन्त.. अग्गल / अग्गळ नपुं० [अर्गल, अर्गला, अर्गली, बौ. सं. अगड] 1. अगड़ी, किल्ली दरवाजे को बन्द करने वाली लकड़ी, सिटकिनी, - महत्लक... बिहार कारयमानेन यावद्वारकोसा अग्गलड़पनाय..... पाचि 69: - ळानि प्र. वि. ब. व. एसिका परिखायो च पलिखं अग्गळानि च जा. अ. 7.167; 2. कपड़ों पर लगा पैबन्द, थिगली, धकती लंद्वि. वि. ए. व. अब खो सो भिक्खु अग्गलं 31 अग्गल - अच्छुपेसि, महाव. 380, अग्गळं अच्छुपेय्यन्ति छिट्टाने पिलोतिकखण्डं लग्गापेय्य, महाव. अट्ठ. 385; उद्धरित्वा अल्लीयापनखण्ड अग्गळं तदे लन्तरिका स्त्री किवाड की दरार - अग्गळन्तरिकाय च अच्चि निक्खमित्वा तिणानि झापेसि, स. नि. 2 ( 2 ) 282 लादिदान नपुं चिगली या पैबन्द आदि जोड़कर मरम्मत करना अग्गळादिदाने हिस्स तं पलिबोधकर होति. म. नि. अड. (मू.प.) 1(1). 275; - गुत्ति स्त्री.. [अर्गलगुप्ति ] अर्गला या चटखनी के द्वारा की गई सुरक्षा अग्गळगुत्तिविहारोति... अग्गळगुत्तियेव पमाणं, महाव. अट्ठ. 386; गुत्तिविहार पु.. अर्गला, सिटकिनी या चटखनी के प्रयोग द्वारा सुरक्षित विहार अग्गलगुत्तिविहारो वा होति... महाव. 390: झपन नपुं. [ अगडस्थापन ] द्वार की अर्गला या सिटकिनी का स्थापन या नियोजन नाय च. वि. ए. व. अग्गलद्वपनायाति द्वारद्वपनाय, पाचि. 70; थम्म पु० [ अर्ग स्तम्भ, अर्गलास्तम्भ ], किवाड़ के पीछे लगा हुआ काठ, द्वार में नियोजित अर्गला का खम्भा या खूंटा कपिसीसो अग्गलत्थम्भो, अभि. प. 217 थम्भक पु.. खिड़की, खिड़की में लगाया जाने वाला अर्गला का खूंटा या खम्मा - अम्हाकं गज्झे अग्गळत्थम्भको ठितो. खु. पा. अनु. 41; - दान नपुं. पैवन्द को लगाना, अर्गला को बैठाना जिण्णस्स हि तुन्नं वा अग्गलदान वा कातब्बं होति. जा. अड. 1.11 पासक [अर्द्धमा अग्गलपासग], दरवाजे को बन्द करने के लिए लगायी गयी अगड़ी, अर्गला का चतुर्भुजीय छोर कपिसीसके नाम द्वारवाहं विज्ञिात्वा तत्थ पवेसितो अग्गळपासको वुच्चति चूळव, अड्ड. 51 पुर नपुं. एक नगर का नाम आयस्मा रेवतो उदुम्बरा अग्गळपुरं अगमासि, चूळव. 469: फलक नपुं०, द्वार का फलक, दरवाजे की पट्टी या तख्ता के सप्त. वि. ए. व. - - For Private and Personal Use Only - Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - पुरिसो लहुकं सुत्तगुळं सब्बसारमये अग्गळफलके पक्खिपेय्य, म. नि. 3.139; रुक्ख पु. दरवाजे की सिटकिनी या चटखनी क्खं द्वि. वि. ए. व. कपिसीसन्ति द्वारबाहकोटियं ठितं अग्गळरुक्खं दी. नि. अ. 2.157 - ट्टि स्त्री. [ अर्गलिवर्त्तिका] अर्गला के लिए खम्भा या खूटा - अनुजानामि, भिक्खदे, कवाट - उत्तरपासक अग्गळवट्टिक चूळव. 238; - वट्टिकरण नपुं., अर्गला के रूप में प्रयुक्त खूंटे का निर्माण - अग्गळवट्टिकरणमत्तेनपि नवकम्णं देन्ति, चूळव 303 सीस नपुं. दरवाजे की अर्गला का चतुर्भुजीय छोर भगवति परिनिब्वायन्ते
SR No.020528
Book TitlePali Hindi Shabdakosh Part 01 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Panth and Others
PublisherNav Nalanda Mahavihar
Publication Year2007
Total Pages761
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size29 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy