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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra अमोह - अमोहपच्चया अनेक कुसला धम्मा सम्भवन्ति, अ. नि. 1 (1). 233; - हुस्सद त्रि, प्रज्ञा अथवा ज्ञान से परिपूर्ण, प्रज्ञा अथवा ज्ञान की प्रधानता को लिए हुए दा पु.. प्र. वि.. ए. व. लोभुस्सदा दोसुस्सदा मोहुस्सदा अलोभुस्सदा अदोसुस्सदा अमोहुस्सदा च होन्ति विसुद्धि. 1.101. अमोहर त्रि.. ब. स. [ अमोह ] मोह से मुक्त, अज्ञानरहित हो पु०, प्र. वि., ए. व. सो अरागो अदोसो अमोहो अनङ्गणो असंकिलिङ्गचित्तो काल करिस्सति म. नि. 1.32. अमोहयि मुह के प्रेर. का अद्य. प्र. पु. ए. व.. मोहजाल में फंसा लिया, मूर्ख बना दिया, धोखा दिया - अमोहयि मयुराजन्ति बूमी ति इतिदु 43 यित्थ अद्य, प्र. पु. ए. व.. आत्मने. मच्चुराजा अमोहयित्थ वसानुगे, सु. नि. - - www.kobatirth.org - 334. अम्बक. पु. / नपुं. [आ] आम्रवृक्ष, आम का पेड़म्बो पु. प्र. वि., ए. व. अम्बो चूतो, सहो त्वेसो सहकारो सुगन्धता, अभि. प. 557; तस्सा अविदूरे अम्बो, महाव, 35: म्बं पु.. द्वि. दि. ए. व. साघूति अम्बं उपगन्त्वा सत्तपदमत्धके ठितो. जा. अड्ड. 4.181: म्बस्स पु.. ष० वि. ए. व. मूलं अम्बस्सुपागच्छं जा. अड्ड. 6.74: म्बा पु., प्र. वि., ब. व. अम्बा कपित्था पनसा, साला जम्बू विनीतका, जा. अट्ट. 7293 बेहि तु. वि. ब. व. अलं तेहि अम्बेहि, जा. अट्ठ. 2.132; ख. नपुं, आम का फल - म्बं नपुं. प्र. वि. ए. व. सेय्यथापि तं अम्बं आमं आमवण्णि... पु. प. 154 म्बं द्वि. वि. ए. व. सामि इच्छामहं अम्बं खादितु न्ति, जा. अट्ठ. 3.24; - म्बा पु०, प्र० वि., ब.व. अम्बाव पतिता छमा, जा० अट्ठ 7.251; अम्बाव पतिता छाति भूमियं पतितअम्बपक्कानि विय, तदे. - म्बे पु. वि. वि. ब. द. अम्बे आमलकानि च थेरगा. 938; - म्बानि नपुं. वि. वि. व. व. पविद्वे अम्बचोरका अम्बानि पातेत्वा खादित्वा च गहेत्वा च गच्छन्ति जा. अड. FOR - 538 3.117. " अम्मकञ्जिक नपुं., कर्म. स. [ अम्लकञ्जिक ], खट्टी काँजी - कं द्वि. वि. ए. व. अम्बकञ्जिकं अहमदासिं, वि. व. 517; अम्बकञ्जिकन्ति अम्बिलकञ्जिक, वि. व. अड. 121. अम्बकट्ठ नपुं., तत्पु० स० [आम्रकाष्ठ], आम की लकड़ी का टुकड़ा, आम्रकाष्ठद्वं द्वि. वि. ए. व. अथापरो पुरिसो सुक्खं अम्बकट्ठे आदाय अग्गिं अभिनिब्बत्तेय्य, म. नि. अम्बकपञ्ञत्रि ब. स. [ अम्बिकाप्रज्ञ] स्त्री होने के नाते अन्य स्त्री की ही तरह चतुर या बुद्धिमती ज्ञा स्त्री. प्र. 2.337. अम्बद्ध वि., ए. व. उपासिका बाला अब्यत्ता अम्मका अम्मकपञ्ञा. अ. नि. 2 (2).63; अम्मका अम्मकपञ्ञाति इत्थी हुत्वा इत्थिसजाय एवं समन्नागता अ. नि. अट्ट. 3. 116: अम्मक के अन्त.. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - अम्बका स्त्री.. [अम्बिका ] नारी स्त्री य तृ. वि. ए. व. -जितम्हा यत भो अम्बकाय पराजितम्ह वत भो अम्बकाया ति महाव. 308 अम्बकायाति मानुगामेन, उपचारवचनहेतुं इत्थी यदिदं अम्बका मातुगामो जननिकाति सारत्थ. टी. 3.291. " अम्बगन्धी पु. प्र. वि. ए. व. [ आम्रगन्धी] एक वृक्ष का नाम, जिसकी गन्ध आम की गन्ध के समान होती है. नयिता अम्बगन्धी च अप. 1.13. अम्बगहपतिस्स पु०, एक श्रामणेर का नाम स्सो प्र. वि., ए. व. कलियुगे पन... सीहलदीपतो अम्बगहपतिस्सो वातुरगम्भो ति इमे छ सामणेरा... आगता... सा. वं. 124 (ना.). अम्बगाम पु. क. वैशाली और भोगनगर के बीच में स्थित एक गांव का नाम येन हथिगामो येन अम्बगामो ... भोगनगरं तेनुपसङ्कमिस्सामा ति दी. नि. 2.94; ख. श्रीलङ्का में स्थित एक प्राचीन गांव का नाम ग्गामे सप्त. वि., ए. व. अम्बग्गामे चतुत्तिसहत्थायामं मनोहरं चू. वं. 86.23: पाठा. अम्बग्गाम. अम्बगोपक पु०, [आम्रगोपक], आम्रवृक्षों की रक्षा करने वाला •को प्र. वि., ए. व. पुब्बेपेस अम्बगोपको हुत्वा ... जा. अट्ठ. 3.117. अम्बङ्कर पु., [आम्राङ्कुर], आम का अङ्कुर या अंखुआ रेन तृ. वि. ए. व. अम्बङ्कुरवण्णन्ति अम्बङ्कुरेन समानवण्णं ध. स. अट्ठ. 350. अम्बङ्गण नपुं०, श्रीलङ्का के एक स्थान का नाम णं प्र. वि., ए. व. - ओकासे सङ्घस्स अनागते अम्बङ्गणं नाम सन्निपातद्वानं भविस्सति पारा. अड. 1.70. अम्बचोरकपु., [आम्रचोरक], आम के फलों को चुराने वाला का प्र. वि. ब. व. भिक्खाचार पविट्टे अम्बचोरका अम्बानि पातेत्वा खादित्वा च गहेत्वा च गच्छन्ति, जा. अट्ठ. 3.117; वत्थु नपुं. वि. पि. के एक खण्ड का शीर्षक सत्तसु अम्बचोरकादिवत्थूसु पंसुकूलसञ्ञाय गहणे अनापति - पारा. अट्ठ. 1.307. अम्बद्ध पु. ब्राह्मण जाति में उत्पन्न, पोक्खरसाति नामक ब्राह्मण आचार्य के एक शिष्य का नाम ट्ठो प्र. वि., ए. For Private and Personal Use Only
SR No.020528
Book TitlePali Hindi Shabdakosh Part 01 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Panth and Others
PublisherNav Nalanda Mahavihar
Publication Year2007
Total Pages761
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size29 MB
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