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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अभिन्दितब्बपरिस 490 अभिपत्थेति/अभिपत्थयति नि. अट्ट. 1.42; - कारण नपुं., अभिनीहार का कारण - णा सप्त. वि., ए. व. - अभिदो... अभिन्ने अड्वरत्तसमये, म. नि. प्र. वि., ब. व. - अधिकारो छन्दता एते अभिनीहारकारणा, अट्ठ. (म.प.) 2.193; ला. अ. क. वह, जो बिखरा हुआ न सु. नि. अट्ठ. 1.42; - कुसल त्रि., अभिनीहार के निर्माण हो, जो छिन्न-भिन्न न हुआ हो, ताजा मृत शरीर, गीला में निपुण, दृढ़ संकल्प लेने में कुशल - लो पु., प्र. वि., मृतशरीर - ... अञ्जतरो भिक्खु सुसानं गन्वा अभिन्ने सरीरे ए. व. - समाधिस्स अभिनीहारकुसलो, अ. नि. 2(2).30; - पंसुकूलं अग्गहेसि, पारा. 68; अभिन्ने सरीरेति अब्भुण्हे ला ब. व. - चन्दसूरियपरिमज्जका विकुब्बनाधि- अल्लसरीरे..., पारा. अट्ठ. 1.302; ला. अ. ख. वह, जो ट्ठानाभिनीहारकुसला इद्धिया पारमिं गता, मि. प. 311; - अस्त-व्यस्त न हो, जिसका क्रम गड़बड़ न हो, संभ्रमरहित क्खम त्रि., अभिनीहार करने में सक्षम - मं द्वि. वि., ए. व. - न्नो पु., प्र. वि., ए. व. - अनाकुलो अनाकिण्णो अभिन्नो - ... अभिनीहारक्खमं कत्वा, अभि. अव. 138; - गुणपारमी छेकेन चित्तकारेन तुलिकाय परिच्छिदित्वा पञ्जत्तो विय, म. स्त्री., अभिनीहार के गुण से युक्त पारमिता - नि. अट्ठ. (म.प.) 2.151; हत्थपादसीसेहि ... पहटेन न अभिनीहारगुणपारमियो पूरेत्वा, सु. नि. अट्ठ. 1.220; - चलितो अभिन्नो, म. नि. टी. (म.प.) 2.103; ला. अ. ग. दीपनीगाथा स्त्री., जिनालंकार की गाथाओं के एक समुच्चय वह मार्ग, जो गड़बड़ या टूटा-फूटा न हो - न्नेन पु., तृ. का शीर्षक, जिना. 5.13-22; - नानत्तता स्त्री., अभिनीहार वि., ए. व. - मग्गेन अभिन्नेनेव गमिस्सामि, जा. अट्ठ. का नानात्व, विविधता या नानारूपता - ता प्र. वि., ए. व. 1.107; - कट्ठ त्रि., ब. स. [अभिन्नकाष्ठ], वह, जिसका - चतुत्थं झानं भावेत्वा... अभिनीहारनानत्तता, विभ. 498; - अग्निकाष्ठ विदीर्ण या विदलित न हो, वह, जिसके पास पच्चुपट्ठान त्रि., ब. स., गतिशीलता द्वारा प्रकाशित होने काटी हुइ लकड़ियां न हों - 8ो पु., प्र. वि., ए. व. - वाला - हाना स्त्री, प्र. वि., ए. व. - वित्थम्भनलक्खणा अभिन्नकट्ठोसि अनाभतोदको, जा. अट्ट, 5.192; - सण्ठान वायोधातु ... अभिनीहारपच्चुपट्ठाना, अभि. अव. 81; - त्रि., ब. स., वह, जिसकी आकृति भिन्न न हो, जिसका रूप परिपुच्छादिविनिच्छयादिविनिमुत्त त्रि., अभिनीहार के भिन्न न हो, एक जैसी शारीरिक बनावट वाला - नानि विषय में प्रश्न आदि एवं निश्चय आदि से विमुक्त - त्तस्स नपुं., प्र. वि., ब. व. - अभिन्नसण्ठानानि तिट्ठन्ति, पे. व. ष. वि., ए. व. - परेसहि अभिनीहारपरिपुच्छादिवि- अट्ठ. 35; - सरीरवत्थु नपुं.. सद्य:मृत शरीर की कथा या निच्छयादिविनिमत्तस्सेव... अट्टप्पत्तिभावेन, उदा. अट्ठ. 253B विषय - स्मिं सप्त. वि., ए. व. - अभिन्नसरीरवत्थुस्मि - समिद्धि स्त्री., अभिनीहार का कार्यान्वयन, अभिनीहार की अधिवत्थोति ... सरीरे निब्बत्तो, पारा. अट्ठ. 1.301. सिद्धि या उपलब्धि - तो प. वि., ए. व. - अभिपत्थियना स्त्री, प्र. वि., ए. व., विश्वास, प्रतीति, अट्ठधम्मसमोधानेन अभिनीहारसमिद्धितो पभुति ..., म. नि. आस्था, श्रद्धा - अभिपत्थियना सद्दहनमेव, नेत्ति. अट्ठ. 220. अट्ठ. (मू.प.) 1(1).120; - सम्पन्न त्रि., ब. स., वह, जिसने अभिपत्थित त्रि., [अभिप्रार्थित], आकांक्षित, अभिलषित, वाञ्छित, अभिनीहार को उपलब्ध कर लिया है, अभिनीहार से युक्त, चाहा हुआ, इच्छित - तो पु., प्र. वि., ए. व. - चेतसो सुदृढ़ संकल्प वाला - न्नो पु., प्र. वि., ए. व. - पत्थितपत्थनो । अभिपत्थितो, थेरगा. 514; - तं नपुं., प्र. वि., ए. व. - यं अभिनीहारसम्पन्नो सावको, जा. अट्ठ. 2.117 - न्ना स्त्री., किञ्चि अभिपत्थितान्ति, म. नि. 2.351; - ता स्त्री॰, प्र. वि., प्र. वि., ए. व. - सेद्विधीता... पत्थितपत्थना अभिनीहारसम्पन्ना, ए. व. - दहरा त्वं रूपवती, पुरिसानभिपत्थिता, जा. अट्ठ. ध. प. अट्ठ. 1.220; - न्नं नपुं.. प्र. वि., ए. व. - 7.283; - ता पु., प्र. वि., ब. व. - लोकनाथेन अभिपत्थिता पत्थितपत्थनं अभिनीहारसम्पन्न, ध. प. अट्ठ. 1.393. पवत्तिता च, इतिवु. अट्ट, 117. अभिन्दितब्बपरिस त्रि., वह, जिसके अनुगामी अपने आप में अभिपत्थेति/अभिपत्थयति अभि + vपत्थ का वर्त., प्र. विभक्त होने योग्य नहीं हैं; एकताबद्ध अनुयायियों वाला, पु., ए. व. [अभिप्रार्थयति], इच्छा करता है, चाहता है, एकजुट होकर रहने वाले समूह वाला - सो पु., प्र. वि., आकांक्षा करता है - न्ति वर्त., प्र. पु., ब. व. - यं ए. व. - अभेज्जपरिसोति अभिन्दितब्बपरिसो, दी. नि. अट्ठ. यदेवाभिपत्थेन्ति, सब्बमेतेन लभति, खु. पा. 10; - यं/मानो 3.190. वर्त. कृ., पु., प्र. वि., ए. व. - न कामे अभिपत्थयं सु. नि. अभिन्न त्रि., भिद के भू. क. कृ. का निषे॰ [अभिन्न], शा. 425; निब्बानपदाभिपत्थयानो, सु. नि. 367; अ. अविभक्त, अखण्डित, अनटूटा, पूर्ण, समान - न्ने पु., निब्बानपदाभिपत्थयानोति ... खन्धपरिनिब्बानपदं पत्थयमानो, For Private and Personal Use Only
SR No.020528
Book TitlePali Hindi Shabdakosh Part 01 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Panth and Others
PublisherNav Nalanda Mahavihar
Publication Year2007
Total Pages761
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size29 MB
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