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अक्खर
अक्खान
समूह, वर्णमाला, अक्षरसमाम्नाय, रू. सि. 1; - समय पु., अक्खाता पु. [आख्याता], क. कहने वाला, मिथ्यावाद या तत्पु. स. [अक्षरसमय], वर्णों का परम्परा-प्राप्त अर्थ, वर्गों झूठी निन्दा करने वाला - अमुत्र वा सुत्वा न इमेसं की परम्परागत पाठ-पद्धति - अक्खरसमयं न जानाति, अक्खाता, दी. नि. 1.4; अ. नि. 3(2).233, 235, 252. पु. ध, प. अट्ठ. 1.104; - समवाय पु., तत्पु. स. [अक्षरसमवाय], प. 168; ख. उपदेष्टा, शास्ता, शिक्षक - अनक्खातरस ध्वनियों का सम्मिश्रण, वर्गों की सन्धि, वर्णों का अव्यवहित मग्गरस अक्खाता, स. नि. 1(1).221; अक्खातारं पवत्तार सामीप्य या सन्निकर्ष, संहिता - अक्खरसमवायो सु. नि. 169; तुम्हेहि किच्चमातप्पं अक्खातारो तथागता, व्यञ्जनसिलिट्ठता पदानुपुब्बतामेतन्ति, सु. नि. अट्ठ. 1.24; ध. प. 276; ग. अनुभव सिद्ध व्यक्ति - अक्खेय्यञ्च परिञाय, - सम्मोहच्छेदनी स्त्री., व्याकरण के एक ग्रन्थ का नाम, अक्खातारं न मञति, स. नि. 1(1).13. पालि लिट्रेचर ऑफ बर्मा, पृ. 106; स. उ. प. में द्रष्ट. अक्खाति आ + Vख्या का वर्त.. प्र. पु., ए. व., समझाता है, अन्त., अन्व., अपर., अव्यत्त (पद).. आदि., चतुर., चतुवीसत., घोषणा करता है, कहता है - ... अक्खाति विभजते चित्त, पमित., पुब्ब०, बट्ट, साक्खर, सञ्ज., सोळस. के इधेव धम्म, सु. नि. 87; गुरहञ्च तस्स नक्खाति, तस्स गुरह अन्त., तुल. अक्खरा..
न गृहति, जा. अट्ठ. 4.176, (वैकल्पिक रूप, आचिक्खति); अक्खर-उत्तरिक-यमक जिना. 105-8 में उदाहृत एक - सि म. पु., ए. व. - यं मे त्वं सम्म अक्खासि, जा. अट्ठ. प्रकार के अन्त्यानुप्रास का विशिष्ट रूप.
4.37; 7.264; - मि उ. पु., ए. व. - एतं वो अहमक्खामि, अक्खरा स्त्री., [वै. अक्षरा, सर्वथा भिन्न अर्थ में]. अक्षर, सु. नि. 174; - म उ. पु., ब. व. - ते मयमक्खाम, जा. वाक्य एवं पद से भिन्न केवल अक्षर-मात्र - अक्खराय अट्ठ. 7.277; - यन्तस्स वर्त. कृ., ष. वि., ए. व. - वाचेति, अक्खरक्खराय आपत्ति पाचित्तियस्स, पाचि. 26, राजकुलं गन्त्वा अक्खायन्तस्स, जा. अट्ठ. 3.91; - हि तुल. अक्खर.
अनु., म. पु., ए. व. - अक्खाहि मे भगवा दक्खिणेय्ये, सु. अक्खरिका स्त्री., [अक्षरिका], एक प्रकार के खेल का नाम, नि. 493; जातिं अक्खाहि पुच्छितो, सु. नि. 423; -थ अनु., आकाश या पीठ पर लिखे अक्षर को जानने का खेल - म. पु., ब. व. - अक्खाथ नो ब्राह्मणा के नु तुम्हे, जा. अट्ठ. अक्खरिका वच्चति आकासे वा पिद्वियं वा अक्खरजाननकीळा, 5.386; - क्खेय्य विधि., प्र. पु., ए. व. - अक्खेय्य तिब्बानि दी. नि. अट्ठ. 1.78; अक्खरिकायपि कीळन्ति, चूळव. 22. परस्स धीरो, जा. अट्ठ. 4.202; पाठा. आचिक्खेय्य; - अक्खरुक्खपेतवत्थु पे. व. के एक खण्ड का शीर्षक - क्खिस्सं भवि., उ. प., ए. व. - एहि ते अहमक्खिस्सं, जा. अक्खरुक्खपेतवत्थु तेरसम, पे. व. 158.
अट्ठ. 7.284; - क्खा अद्य., प्र./म. पु.. ए. व. - उदाहु अक्खलित त्रि., द्रष्ट. अखलित.
ते कोचि नं एतदक्खा , जा. अट्ठ. 4.242; यमेतमक्खा अक्खवाट पु. [अक्षवाट या अक्षपाट], अखाड़ा, कुश्ती खेलने उदधिं महन्तं, जा. अट्ठ. 6.187; - क्खिं अद्य., उ. पु., ए. का स्थान, एक खेल का घेरा - अक्खवाट कारेत्वा... जा. व. - तस्साहं अक्खिं विवरिं गुरहमत्थं, जा. अट्ठ. 5.73; - अट्ठ. 4.73.
क्खंसु अद्य०, प्र. पु., ब. व. - पुब्बेवमेतमक्खंसु, जा. अट्ठ. अक्खा अक्खाति का अनद्य. द्रष्ट. अक्खाति के अन्त. 3.424; - सि अद्य., प्र. पु., ए. व. - अक्खासि नं वेदयि (आगे).
मन्तपारगू सु. नि. 254; 509; 1137; जा. अट्ठ. 4.231; जा. अक्खात त्रि. अ + Vख्या का भू. क. कृ. [आख्यात], कहा अट्ठ. 6.119; 128; - तु निमि. कृ. - ... सक्का निब्बानस्स गया, व्याख्या किया गया, उदघोषित, उपदिष्ट, घोषणा सच्छिकिरियाय मग्गो अक्खातुं .... मि. प. 251. किया हुआ - अक्खातं वो यथातथं, सु. नि. 174; अक्खातो अक्खान नपुं. [आख्यान], क. घोषणा, विज्ञप्ति, कथन - वो मया मग्गो, ध, प. 275; इतिवु. 14; अक्खातं नून तं तेन, नेन तृ. वि., ए. व. - न सुकरा अक्खानेन पापुणितुं याव यो तं साखमकम्पथि, जा. अट्ठ. 3.372; तुल. आख्यात स. दुक्खा निरया, म. नि. 3.206; ख. कहानियों और मिथकों उ. प. में द्रष्ट, अन., दुर०, सम्मद., स्वा. के अन्तः; - रूप पर आधारित रङ्गमञ्चीय प्रदर्शन, जन-मनोरञ्जन की श्रृंखला त्रि, ब. स. [आख्यातरूप], पूर्णतः प्रसिद्ध, ठीक से जाना की एक कड़ी - नं प्र. वि., ए. व. - नच्चं गीतं वादितं हुआ, सुपरिचित - अक्खातरूपं तव सब्बमित्ता, जा. अट्ठ. पेक्खं अक्खानं पाणिस्सरं वेताळं... दी. नि. 1.6; अक्खानन्ति 5.17; अक्खातरूपन्ति सभावतो अक्खातं, जा. अट्ठ. 5.18. भारतयुज्झनादिकं दी. नि. अट्ठ. 1.77; - पञ्चम त्रि.. ब.
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