________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
अप्पना/अप्पणा
426
अप्पपञ्च 219; - कोसल्ल नपुं., भाव. [अर्पणाकौशल्य], अर्पणा- तपस्सिनो बह्मचारी, चोदेन्ता अप्पनाव ते, अप. 1.399; - समाधिविषयिणी कुशलता - ..., दसविधं अपनाकोसल्लं. नावह त्रि., अर्पणा-नामक समाधि-प्रभेद के अनुकूल - वीरियसमता, अप्पनाविधानन्ति इमे नव आकारा कथेतब्बा, उपचारवहा वुत्ता, सेसा, सेसा ते अप्पनावहा, अभि. अव. विसुद्धि. 1.114; 125; 132; 274; - चित्त नपुं., तत्पु. स. 113; - वारपरिहानि स्त्री., तत्पु. स., अर्पणा समाधि में [अर्पणाचित्त], अर्पणा समाधि में विद्यमान चित्त - तस्मा तं आई हुई हानि - सब्बत्थ अप्पनावार परिहानि कता मया, अप्पनाचित्तं, दिवसम्पि पवत्तति, अभि. अव. 880; - चेत उत्त. वि. 63;-विधान नपुं., तत्पु. स., अर्पणा समाधि का नपुं., तत्पु. स., उपरिवत् - अप्पनाचेतसो तानि, अभ्यास -- पनेत्थ कसिणकरणञ्चेव परिकम्मञ्च परिकम्मोपचारतो, अभि. अव. 898; - जवन नपुं, तत्पु. अप्पनाविधानञ्च सब्बं विसद्धिमग्गे वित्थारतो वृत्तमेव, म. स., अप्पना-समाधि में स्थित योगी का जवनचित्त - नि. अट्ठ. (म.प.) 2.182; - वीथि स्त्री., तत्पु. स., चित्तवीथियों दुहेतुकानमहेतुकानञ्च पनेत्थ किरियजवनानि चेव का एक प्रभेद, अर्पणा-समाधि के चित्त द्वारा विषयों के ग्रहण अप्पनाजवनानि च लभन्ति, अभि. ध. स. 30; विशेष करने की प्रक्रिया - यथाभिनीहारवसेन यं किञ्चि जवनं द्रष्ट. जवन के अन्त०; - झान नपुं.. तत्पु. स. अप्पनावीथिमोतरति, अभि. ध. स. 27; - समाधि पु., तत्पु. [अर्पणाध्यान], अर्पणा-नामक ध्यान, समाधि-प्रक्रिया की स., समाधि का एक चरण, जिसमें चित्त को आलम्बन पर अर्पणा नामक अवस्था - झानं भावेतीति एकचित्तक्खणिक पूर्णरूप से एकाग्र किया जाता है - इधेकच्चो पठम अप्पनाझानं भावेति जनेति वड्डेति, ध. स. अट्ठ. 258; --- उपचारसमाधि वा अप्पनासमाधि वा उप्पादेति, म. नि. अट्ठ. नाधिगम पु., तत्पु. स., समाधि-प्रक्रिया में अर्पणा-नामक (मू.प.) 1(1).116. अवस्था की प्राप्ति - उप्पन्ने निमित्ते तं वड्वेत्वा अप्पनाधिगमो अप्पनिग्घोस त्रि., ब. स. [अल्पनिर्घोष], कम कोलाहल भारो, सतेस सहस्सेसु वा एकोव सक्कोति, ध. स. अट्ठ. वाला, हल्ला-गुल्ला से रहित, शान्त - सं नपुं॰, प्र. वि., ए. 231-32; - प्पत्त/पत्त त्रि., तत्पु. स. [अर्पणाप्राप्त], वह, व. - विवित्तं अप्पनिग्घोसं, मत्त होहि भोजने, सु. नि. जिसने अर्पणा समाधि की अवस्था को पा लिया है -- तं 340; विवित्तं अप्पनिग्घोस, वाळमिगनिसेवितं, थेरगा. 577; - स्त्री., द्वि. वि., ए. व. - सो तं ... तं परमसुखुमं सेसु सप्त. वि., ब. व. - अप्पसद्देसु अप्पनिग्घोसेसु अप्पनाप्पत्तं सझं पापुणाति, ध. स. अट्ठ. 251; - त्ता स्त्री., विजनवातेसु मनुस्सराहस्सेय्यकेसु पटिसल्लानसारुप्पेसु. प्र. वि., ए. व. - निष्फन्ना अप्पनापत्ता, पञआ सा भावनामया, महानि. 277. अभि. अव. 1185; - त्ताय स्त्री., तृ. वि., ए. व. - मेत्ताय अप्पन्नपानभोजन त्रि., ब. स. [अल्पान्नपानभोजन]. अत्यल्प ... सब्बे सत्ता दसदिसाफरणवसेन पवत्ताय अप्पनाप्पत्ताय खाद्यों एवं पेयों को रखने वाला, दरिद्र - ने नपुं., सप्त. मेत्ताभावनाय अपचिता होन्ति, जा. अट्ठ. 4.68; - परिच्छेद- वि., ए. व. - रथकारकुले वा पुक्कुसकुले वा दलिद्दे जाननक-पञा स्त्री., कर्म. स., अर्पणा के विभिन्न चरणों अप्पन्नपानभोजने कसिखुत्तिके, पु. प. 161; अ. नि. 1(1).131. का ज्ञान कराने वाली प्रज्ञा - सह परिकम्मेन अप्पपंसु त्रि., ब. स. [अल्पपांसु], कम ढीली मिट्टी वाला, अप्पनापरिच्छेदजाननकपआ पन समापत्तिकुसलता नाम, दोमट मिट्टी से रहित - अजाता नाम पथवी - ध. स. अट्ठ. 416; - मन नपुं., तत्पु. स. [अर्पणामनस्]. सुद्धपालिका अप्पपंसुका अप्पमत्तिका, येभुय्येनपासाणा समाधि के अर्पणा-नामक चरण में स्थित मन - चतुत्थं येभु नसक्खरा येभुय्ये नकठला, येभु नमरुम्बा गोत्रभुं दिलु, पञ्चमं अप्पनामनो ... ततियं गोत्रभुं दिलु येभुय्येनवालिका, पाचि. 50. चतुत्थं अप्पनामनो, अभि. अव. 121; - मानस नपुं.. उपरिवत् अप्पपक्ख त्रि., ब. स. [अल्पपक्ष]. वह, जिसके पक्ष लेने - सेन तृ. वि., ए. व. - सहजातं तु यं आणं अप्पनामानसेन ___वाले बहुत कम लोग हों, बहुत कम समर्थकों वाला - क्खं हि, अभि. अव. 1064; - लक्खण त्रि., ब. स. [अर्पणालक्षण], नपुं., प्र. वि., ए. व. - असुकं नाम कुलं पुब्बे बहुञातिक आलम्बन पर चित्त को रख देने या बैठा देने के लक्षण अहोसि बहुपक्खं, इदानि अप्पञातिकं अप्पपक्खं जातान्ति, वाला - एवमेव खो, महाराज, अप्पनालक्खणो वितक्कोति, अ. नि. अट्ठ. 1.65. मि. प. 64; - वत नपुं., तत्पु. स. [अर्पणाव्रत], अर्पणा- अप्पपञ्च त्रि., ब. स. [अप्रपञ्च]. जटिलता से रहित, नामक समाधि से सम्बन्धित व्रत - ते सप्त. वि., ए. व. - प्रपञ्च-रहित, नहीं उलझन भरा - इति वदं अप्पपञ्च
For Private and Personal Use Only