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अक्कोसन
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अक्खक्खायिकछातक अक्कोसथ परिभासथ रोसेथ विहेसेथ म. नि. 1.418; - चलता है - रथङ्गेक्खो, अभि. प. 893; अक्खो रथो ति, मि. सेय्य विधि., प्र. पु., ए. व. - अक्कोसेय्यपि मं परिभासेय्यपि प. 23; ... भिक्खवे. ... सेय्यथा वा पन अक्खं अब्भजेय्य मं, पु. प. 144;- सिस्सन्ति भवि., प्र. पु., ब. व. - सचे ...... स. नि. 2(2).180; अक्खे न अक्खं ... पटिवद्देसि, दी. ने भन्ते, सुनापरन्तका मनुस्सा अक्कोसिस्सन्ति परिभासिस्सन्ति नि. 2.75; अक्खयुगादीनि, जा. अट्ठ. 1.116. ..., स. नि. 2(2).67; - सि/च्छि अद्य., प्र. पु., ए. व. - अक्ख' पु., [अक्ष], 1. पासा - अक्खो तु पासको भवे, अभि. चतुहाकारेहि थेरं अक्कोसि, ध. प. अट्ठ 1.279; अक्कोच्छि में प. 532; सुवण्णस्मिं पासके अक्खमिन्द्रिये, अभि. प. 893; ध. प. 3; तत्थ अक्कोच्छीति अक्कोसि, ध. प. अट्ठ. 1.29; अक्खं मुखे पक्खिपित्वा, जा. अट्ट, 1.363; अक्खेनपि द्रष्ट. क. व्या. 500; - सितब्ब सं. कृ. - न ... कीळन्ति, चूळव. 22; अक्खा जिता संयमो अब्भतीतो, जा. भिक्खुनिया भिक्खु अक्कोसितब्बो परिभासितब्बो, अ. नि. अट्ठ. 3.477; अक्खेसु धनपराजयो, सु. नि. 664; यो अक्खेसु 3(1).106.
धनपराजयो, स. नि. 1(1).176; अ. नि. 1(2).4; अ. नि. अक्कोसन नपुं., कुस से व्यु. [आक्रोशन], गाली, निन्दा, 3(2).146; विमट्ठा तुम्हं सुस्सोणी अक्खस्स फलकं यथा, डांट-फटकार, अभिशाप, दुर्वचन - अक्कोसनमभिस्सङ्गो, जा. अट्ठ. 5.150; 2. पासे या गोली का एक प्रकार का खेल अभि. प. 759; एवं छसु पि ठानेसु अक्कोसनं बोधिसत्तस्सेव -... घटिकं सलाकहत्थं अक्खं ..., दी. नि. 1.6; अक्खन्ति आनुभावेन अहोसि, जा. अट्ठ. 5.103; - ना स्त्री., उपरिवत् गुळकीळा, दी. नि. अट्ठ. 1.78; 3. एक वृक्ष का नाम, बहेड़ा, - या परेसं अक्कोसना वम्भना गरहणा उक्खेपना समक्खेपना जिसका बीज पासा के रूप में प्रयुक्त होता था - अक्खो ...., विभ. 405.
विभीटको, अभि. प. 569; 4. तौल, दो अक्ष पांच मासा के अक्कोसप्पहार पु., द्व. स. [आक्रोशप्रहार], गाली-गलौज बराबर और आठ अक्ष एक धरण के बराबर होता है -द्वे
और धक्का-मुक्की - वेतनं अदेन्तेहि सद्धि कलहं करोन्तो अक्खा मासका पञ्चक्खानं धरणमट्ठकं अभि. प. 479. अक्कोसप्पहारेयेव बहू लभति, जा. अट्ठ. 3.201.
अक्ख नपुं.. [अक्ष], ज्ञानेन्द्रिय - विसयी त्वक्खमिन्द्रियं, अक्कोसवग्ग पु., अ. नि. के एक वर्ग का शीर्षक, अ. नि. 3(2).64.
अक्ख' पु., केवल ब. स. में ही प्रयुक्त, स. उ. प. के रूप अक्कोसवचन नपुं, कर्म. स. [आक्रोशवचन], आक्रोश से में अक्खि का ही अक्ख रूप में परिवर्तन [अक्षि], चक्षु, नेत्र, भरा वचन या कथन, निन्दावचन, दुर्वचन- अक्कोसवचनेहि, आंख - अनञ्जित., अलार., आविल., उत्तम., काल., म. वं. 37.154.
लोहित., गव., चतुर., तम्ब०, तिरो., नील., अपच्च., परो., अक्कोसवत्थु नपुं॰ [आक्रोशवस्तु], शरीर वाणी और मन के भद्द, मत्त., मन्द., रत्त, विरुप., विसाल., सदिस., समान., द्वारों से प्रकट दस अकुशल कर्म, दुर्व्यवहार, गाली, निन्दा सहस्स., सुन्दर, के अन्त. द्रष्ट.. - दसहि अक्कोसवत्थूहि अक्कोसन्ति, जा. अट्ट, 1.190; ध. प. अक्खक' द्रष्ट. मोरक्खक के अन्त. आगे. अट्ठ. 2.377; विभ. अट्ठ, 323; दसहि अक्कोसवत्थूहि अक्कोसन्ते अक्खक पु., [अक्षक], गिरेवान की हड्डी, गले की हड्डी - वधबन्धादीहि वा विहेसन्ते, खु. पा. अट्ठ. 119; अक्कोसवत्थूहि गलन्तट्टितु अक्खको, अभि. प. 278; -ट्ठि नपुं. [अक्षकास्थि], अभिसत्तो, सु. नि. अट्ठ. 2.87.
उपरिवत्-द्वे अक्खकट्ठीनि .... विसुद्धि. 1.244; अक्खकट्ठीनि अक्कोससुत्त नपुं., स. नि. के एक सुत्त का शीर्षक, स. नि. खुद्दकलोहवासि-दण्डसण्ठानानि, खु. पा. अट्ठ. 38; विभ. 1(1).188.
अट्ठ. 226; स. उ. प. के रूप में द्रष्ट. अधक्खक, उभक्खक अक्कोसीयति आ + कुस भा. वा., वर्तः, प्र. पु., ए. व. दक्षिणक्खक के अन्त.. गाली दी जा रही है, निन्दा की जा रही है; - सियमान , अक्खकण्ड नपुं., जातक संख्या 546 के एक वर्ग का त्रि., वर्त. कृ., किसी के द्वारा निन्दित - अप्पेव नाम तुम्हेहि शीर्षक; जा. अट्ठ. 7.172-79. अक्कोसियमानानं परिभासियमानानं रोसियमानानं विहेसियमानानं अक्खक्खायिकछातक नपुं, कर्म. स., ऐसा दुर्भिक्ष, जिसमें सिया चित्तस्स अञथत्तं, म. नि. 1.418.
बिना पके बहेड़ा फल को उबालकर खाया जाता था --- अक्ख' पु., [अक्ष, अक्ष + अच], धुरी, धुरा, गाड़ी के बीच कोट्टनामम्हि मलये अक्खखायिकछातके, म. वं. 32.29; में प्रयुक्त लकड़ी या लोहे का वह धड़ जिस पर पहिया
पालाक फा पहचड़ जिस पर पाहया तुल. पासाण-छातक.
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