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अपस्सितब्बयुत्तक
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अपहरति व. - दलिद्दा कपणा नारी, परागारं अपस्सिता, वि. व. 185; अपह त्रि., अप + Vहा से व्यु. [अपह], नष्ट करने वाला, परागारं अपरिसताति परगेहं निस्सिता, वि. व. अट्ठ. 81; - विनाशक, केवल स. उ. प. के रूप में ही प्रयुक्त, अघापह ता' पु., प्र. वि., ए. व. - अत्रे च उत्तरकुरु, सकं आदि के अन्त. द्रष्ट... बलमवस्सिता, अप. 1.383.
अपहत त्रि., अप + Vहन का भू. क. कृ. [अपहत], नष्ट कर अपस्सितब्बयुत्तक नपुं., कर्म स., अमङ्गल कारक दृश्य, दिया गया, हटा दिया गया, मिटाया हुआ, पीड़ित,
अशुभ प्रकाशित करने वाला दृश्य - ता ते चण्डालपुत्ते व्यथित - तेन पुत्तकं गच्छस्स. मा सोकापहतो भवाति, .... चण्डालपुत्ताति सुत्वा अपस्सितब्बयुत्तकं वत पस्सिम्हाति थेरगा. 82; - काळक त्रि., ब. स., वह, जिसकी कालिमा .... निवत्तिंसु, जा. अट्ठ. 4.350.
या दूषित तत्त्व हटा दिए गये हैं, काले धब्बों से अपस्सेतु पु., अप + Vसी से व्यु., क. ना. [अवश्रयितु]. रहित, क्लेशों से मुक्त- अपहतकाळकोतिपि पाठो, पारा. अट्ठ. किसी के सहारे टिकने वाला, किसी का सहारा लेकर स्थित 1.149.
या लेटा हुआ - ... नाभिजानामि अपस्सेनकं अपस्सयिता अपहत्तु पु.. अप+Vहर से व्यु., क. ना. [अपहर्तृ], अपहरण .... कप्पेता, म. नि. 3.168.
करने वाला, हटा देने वाला, मिटा देने वाला, नष्ट कर देने अपस्सेन' नपुं., अप + /सी से व्यु. [अपाश्रयण], शा. अ. वाला; - ता प्र. वि., ए. व. - बहूनं वत नो भगवा दीवाल पर टिकने हेतु प्रयुक्त लकड़ी या धातु की पट्टी, ला. दुक्खधम्मानं अपहत्ता बहूनं ... उपहत्ता..., म. नि. 2.120; अ. निर्भरता, भरोसा, अनुपालन - अपस्सेनं नाम अपस्सेने अपहत्ताति अपहारको, म. नि. अट्ठ. (म.प.) 2.117; विलो. सत्थं वा ठपेति विसेन वा मक्खेति ... ठपेति, पारा. 91; 88; उपहत्तु. अपस्सेने सत्थं वाति एत्थ अपस्सेनं नाम निच्चपरिभोगो अपहरण नपुं., अप + Vहर से व्यु., क्रि. ना. [अपहरण], दूर ... अपस्सेनकत्थम्भो ... आलम्बनरुक्खो ... अपस्सयनीयद्वेन ले जाना, चुरा कर ले जाना, लूट कर ले जाना-सो या अपस्सेनं नाम, पारा. अट्ट. 2.51; हत्थिनागे च पल्लङ्के, ता साललट्ठियो कुटिला ओजापहरणियो ता छेत्वा बहिद्धा अपस्सेनञ्चनप्पक, अप. 1.302; - नानि ब. व. - चत्तारि नीहरेय्य, ... विसोधेय्य, म. नि. 1.177; ओसधसमो सत्तानं अपस्सेनानि, ... सवायेकं पटिसेवति, ... अधिवासेति ... किले सब्याधि पसमें, उदक समो सत्तान परिवज्जेति, ... विनोदेति, दी. नि. 3.179; अपस्सेनानीति किलेसरजोजल्लापहरणे, मि. प. 188. अपस्सयानि, दी. नि. अट्ठ. 3.173; कथञ्चावुसो, भिक्खु अपहरति अप + हर का वर्त, प्र. पु., ए. व. [अपहरति], चतुरापस्सेनो होति, ..., दी. नि. 3.215; तुल. अपस्सय, 1. दूर ले जाता है, हटा देता है, रोक देता है, निवारण ऊपर; - त्थम्भ पु., कर्म. स. [अपाश्रयणकस्तम्भ], टिकने करता है - कसामिवाति यथा भद्रो अस्सो अत्तनि पतमानं के लिये सहारा देने वाला स्तम्भ या खम्भा - अपस्सेने सत्थं कसं अपहरति, अत्तनि पतितुं न देति, ध. प. अट्ठ. 2.48; - वाति एत्थ अपस्सेनं नाम ... अपस्सेनफलकं वा दिवाहाने न्तो पु., वर्त. कृ., प्र. वि., ए. व. - यो निद्दन्ति अप्पमत्तो निसीदन्तस्स अपस्सेनकत्थम्भो वा तत्थजातकरुक्खो वा समणधम्म करोन्तो अत्तनो उप्पन्नं निदं अपहरन्तो बुज्झतीति चङ्कमे अपस्साय अपस्साय तिट्ठन्तस्स ... अपस्सयनीयद्वेन अपबोधेति, ध. प. अट्ठ. 2.48; यो निन्दं अपबोधतीति यो अपस्सेनं नाम, पारा. अट्ठ. 2.51; - फलक नपुं.. कर्म. स. गरहं अपहरन्तो बुज्झति, स. नि. अट्ठ. 1.35; अपहरन्तोति [अपाश्रयणफलक], विहार की रंगी-पुती दीवालों पर सिर अपनेन्तो ... एवं परिहरन्तोति अत्थो, स. नि. टी. 1.72; - या पीठ टिकाने हेतु प्रयुक्त लकड़ी का तख्ता या धातु से रितुं/हातुं निमि. कृ. - अप्पम्पि तस्स अपहातुमिच्छति, निर्मित पट्टिका - अपस्सेनफलकं नीहरित्वा एकमन्तं अ. नि. 2(2).230; - रित्वा पू. का. कृ. - पुन चपरं निक्खिपितब्बं महाव. 53; अपस्सेने सत्थं वाति एत्थ अपस्सेनं महाराज, तच्छको फेगुं अपहरित्वा सारमादियति, .... मि. नाम ... पीठं वा अपस्सेनफलकं वा दिवाडाने निसीदन्तस्स प. 386; 2. मना कर देता है, आपत्ति खड़ी कर देता है; अपस्सेनकत्थम्भो वा ... आलम्बनफलकं वा सब्बम्पेतं - न्ति वर्त. प्र. पु. ब. व. - ये ते पन्हवीमंसका परिसा अपस्सयनीयद्वेन अपस्सेनं नाम, पारा. अट्ठ. 2.51.
पारिसज्जा पासारिका, ते अपहरन्ति, अत्थापगतं भणितान्ति अपस्सेन' पु., व्य. सं., एक चक्रवर्ती राजा का नाम - इतो अत्थतो अपहरन्ति, ... अत्थो ते दुन्नीतो, महानि. 1213 छट्टम्हि कप्पम्हि, अपस्सेनसनामको, अप. 1.225..
अपहरन्तीति पटिबाहन्ति, महानि. अट्ठ.226.
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