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अकुसीत
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अक्कमति कर्म. स. [अकुशलहेतु], अकुशल धर्मो के तीन हेतु लोभ, अकोतूहलमङ्गलिक त्रि., निषे. [अकौतूहल-माङ्गलिक], द्वेष तथा मोह - तत्थ कतमो तयो अकुसलहेतू ? लोभो अन्धविश्वासपूर्ण विचारों अथवा बाहरी कर्मकाण्डों एवं उत्सवों दोसो मोहो- तयो अकुसलहेतू, ध. स. 1059; विभ. 4703; आदि में मन को न लगाने वाला - सद्धो होति, सीलवा 472; 476; 482; 500.
होति, अकोतूहलमङ्गलिको होति, अ. नि. 2(1).192. अकुसीत त्रि., कुसीत का निषे. [अकुसीद], आलस्यरहित, अकोप त्रि., ब. स. [अकोप], क्रोध-रहित, कोपरहित - उद्योगी, परिश्रमी - अकुसीते अतन्दिते कल्याणमित्ते भजस्सु, समिताविनो वीतरागा अकोपा, सु. नि. 504. ध. प. अट्ठ. 2.346; अकुसीता अनुद्धता, थेरीगा. 113; - अकोविद त्रि., कोविद का निषे. [अकोविद], मूर्ख, अज्ञानी, दुत्ति त्रि., ब. स. [अकुसीदवृत्ति], आलस्यरहित, धर्म के सम्यक् ज्ञान से रहित व्यक्ति - जना मञ्जन्ति अध्यवसायी पुरुष - आरद्धवीरियो परमत्थपत्तिया, अलीनचित्तो बालोति, ये धम्मस्स अकोविदा ति, स. नि. 1(1).189; धीर अकुसीतयुत्ति, सु. नि. 68; चूळनि. 266, 268; अकुसीतकुत्तीत्ति मञ्जन्ति बालोति, ये धम्मस्स अकोविदा ति, जा. अट्ठ. एतेन ठानआसनचङ्कमनादीसु कायस्स अनवसीदनं सु. नि. 3.49; अकोविदा गामधम्मस्स सेग्ग, जा. अट्ठ. 2.150. अट्ठ. 1.97.
अकोसल्ल नपुं.. भाव., निषे., तत्पु. स. [अकौशल्य], अकुह त्रि., ब. स. [अकुह], छल-प्रपंच से रहित, सरल, अचतुरता, अनिपुणता, स. पू. प. के रूप में - पवत्ति स्त्री., ईमानदार - तं बुद्ध ... अकुहं गणिमागतं. सु. नि. 963; [अकौशल्यप्रवृत्ति], अकुशलता की प्रवृत्ति - इसिसत्तमस्स अकुहस्स ... भगवतो, म. नि. 2.55; - क. अकोसल्लप्पवत्तिया अकुसलं वेदितब्बं, म. नि. अट्ठ. (मू.प.) त्रि.. [अकुहक], ईमानदार, निष्कपट, वञ्चनारहित - __1(1).205; - सम्भूत त्रि., अकुशलता से उत्पन्न, अनैपुण्य पतिलीनो अकुहको, अपिहालु अमच्छरी, सु. नि. 858; से उत्पन्न - पापकानं अकोसल्लसम्भूततुन अकुसलानं अकुहको निपको अपिहालु, थेरगा. 1227; अकुहकोति धम्मानं समापत्ति, पारा. अट्ठ. 1.99. कोहरहितो असठो अमायावी, थेरगा. अट्ठ. 2.440. अक्क पु., [अर्क]. 1. सूर्य - भानु अक्को सहस्सरंसि च, अभि. अकूजन त्रि., कूजन का निषे. [अकूजन], शकट की कर्कश प. 63; 2. आक का पौधा - त्वळक्को सेतपुप्फके, अभि. प. ध्वनि से रहित - वाचासचमकूजनो, जा. अट्ठ. 7.142; 581; - दुस्स नपुं, आक के पौधे से बना वस्त्र - उजुको नाम सो मग्गो, अभया नाम सा दिसा-रथो अकूजनो अक्कदुस्सकदलिदुस्सएरकदुस्सानि पन पोत्थकगतिकानेव, नाम, धम्मचक्केहि संयुतो, स. नि. 1(1).37.
महाव. अट्ठ. 391; - नाळ नपुं, आक के पौधे की छड़ीअकेतवी त्रि. [अकैतव], ढोंग से मुक्त, छल-मुक्त, चालबाजी भिक्खु अक्कनाळ निवासेत्वा .... महाव. 398; महाव. अट्ठ. से रहित - अमायाविनो अकेतविनो अनुद्धता अनुन्नळा 391. अचपला अमुखरा अविकिण्णवाचा, म. नि. 1.39 = अ. नि.. अक्कन्त त्रि., आ + कम का भू. क. कृ. [आक्रान्त], किसी 2(1).184; पाठा. अकेटुभिनो.
के द्वारा रौंदा हुआ, कुचला हुआ, अभिभूत - अक्कन्तोपि पासो अकेराटिक त्रि. केराटिक का निषे. [अकैरातिक], समस्त न संवरति, मि. प. 152; हत्थेन वा पादेन वा अक्वन्तं हत्थं प्रपञ्चों से रहित, छल-छद्म-मुक्त - अनक्खाकितवेति अनक्खे वा पादं वा भेच्छति, अ. नि. 1(6).11; अथस्स गहितसाखापि अकितवे अजुतकरे चेव अकेराटिके च, जा. अट्ठ. 5.113, अक्कन्तसाखापि भिजिंसु.ध. प. अट्ठ. 1.37. द्रष्ट. केराटिक.
अक्कन्तसञक पु., एक थेर का नाम - आयस्मा अकेवल त्रि., केवल का निषे. [अकेवल], जो पूर्ण नहीं है, अक्कन्तसञको थेरो इमा गाथायो अभासित्थाति, अप. अपूर्ण, सदोष, दोषपूर्ण - अकेवलंयेव समानं केवलन्ति 1.221. वक्खति, म. नि. 1.409, द्रष्ट. केवल.
अक्कन्दति आ + कन्द का वर्त., प्र. पु., ए. व. [आक्रन्दति], अकेवली त्रि., [अकेवलिन्], हीन, अधूरा - इदं चिल्लाता है, जोर से रोता है - अक्कन्दति परोदति, दुब्बलो पटिक्कोसमकेवली सो. सु. नि. 884; अपरद्धा विरद्धा सुद्धिमग्गं, अप्पथामको, स. नि. 2(2).204. अकेवलिनो च, सु. नि. अट्ठ. 2.249.
अक्कपण्ण नपुं., तत्पु. स. [अर्कपर्ण], आक के पौधे का पत्ता, अकोटिगत त्रि. [अकोटिगत], अपने अन्त तक न पहुंचा हुआ, मन्दारपर्ण - अक्कपण्णेन वेठेत्वा ... जा. अट्ठ. 1.404. फल-अवस्था को अप्राप्त व्यक्ति - आगन्तुकेन ... अगदेन अक्कमति आ + ।कमु का वर्त, प्र. पु., ए. व. [आक्राम्यति], पटिपीलितं विसं अकोटिगतं येव विगतन्ति, मि. प. 281. कदम-कदम चलकर थोड़ी दूर चलता है, रौंदता है,
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