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अपराधेति
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अपरामट्ठ
[अपराधीनता, स्वाधीनता, स्वतन्त्रता, आत्मनिर्भरता - यं 1(2).150; ... महामेघो अपरापरं अनुप्पबन्धो अभिवस्सेय्य, पनेत्थ सब्बत्थेव अपराधीनताय लभति चित्तसुखं, उदा. मि. प. 135; ग. शनैः शनैः, क्रमशः, एक-एक करके - अट्ठ. 128; - वृत्ति त्रि., ब. स. [अपराधीनवृत्ति], स्वतन्त्र अपरापर पनेत्थ मनु स्सा भिक्खु सङ्घस्स जीवन-वृत्ति वाला व्यक्ति, वह, जिसकी जीवन-पद्धति किसी रतिट्ठानदिवाट्ठानमण्डपचङ्कमादीनि करियिंसु, म. नि. अट्ठ. दूसरे पर आश्रित नहीं है - इमं उदानन्ति इमं (मू.प.) 1(2).135; तस्स अपरापरं पीति उप्पज्जति, मि. प. पराधीनापराधीनवुत्तीसु आदीनवानिसंसपरिदीपक उदानं 273; अपरे पन ... अपरापरं जरामरणेहि सिवथिकवड्डनाति उदानेसि, उदा. अट्ठ. 127.
अत्थं वदन्ति, उदा. अट्ठ. 287. अपराधेति अप + राध के प्रेर. का वर्त, प्र. पु., ए. व. अपरापरिम नपुं, अपरापर से व्यु. [अपरापर्य], लगातार [अपराधयति], शा. अ. अनुचित रूप में होने या करने हेतु चली आ रही परम्परा, पुनर्जन्मों का लगातार चल रहा प्रेरित करता है, असफल उकसाता है, ला. अ. उपेक्षा सिलसिला-दिट्ठव धम्मे गरहं सम्पराये दुग्गतिं अपरापरिये करता है - चेतसा विहरन्तो अकिच्चं करोति, किच्चं उम्मादञ्च पापुणाति, खु. पा. अट्ठ. 115; - वेदनीय त्रि., अपराधेति, अ. नि. अट्ठ. 1(2).77; किच्चं अपराधेतीति तत्पु. स. [अपरापर्यवेदनीय], पुनर्जन्मों में अनुभव किया कत्तब्बयुत्तकं किच्चं अकरोन्तो तं अपराधेति नाम, अ. नि. जाने वाला, चार प्रकार के कर्मों में से वह कर्म जिसके अट्ठ. 2.305; - त्वा पू. का. कृ., उपेक्षा करके - सो विपाकों का संवेदन अगले जन्मों में होता है - तस्सापि वचनं ... तमेव अपराधेत्वा कालं कत्वा पदुमनिरये अपरापरियवेदनीयं कम्मं अपरापरियवेदनीयद्वेन नियतन्ति?, उप्पज्जि , सु. नि. अट्ठ. 2.178.
कथा. 492; दिट्ठधम्मवेदनीय उपपज्जवेदनीय अपरापर त्रि., [अपरापर], लगातार क्रम वाला, एक के बाद अपरापरियवेदनीयं अहोसिकम्मञ्चेति पाककालवसेन चत्तारि दूसरा, कई एक, बहुत सारे, विविध प्रकार के - अपि च कम्मानि नाम, अभि. ध. स. 36; अपरे अपरे दिट्टधम्मतो अपरापरं निब्बाहनं सोतुकामो न सम्पटिच्छिन्ति, मि. प. अञ्जस्मि यत्थ कत्थचि अत्तभावे वेदितब्बं कम्म 283; - रे पु., प्र. वि., ब. व. - अपरापरे पन ब्राह्मणा अपरापरियवेदनीय, अभि. ध. स. 155; - वेदनीयकम्म पाणातिपातादीनि पक्खिपित्वा तयो वेदे भिन्दित्वा बुद्धवचनेन नपुं.. तत्पु. स. [अपरापर्यवेदनीयकर्मन], अगले जन्मों में .... अकंसु, म. नि. अठ्ठ. (म.प.) 2.298; दी. नि. अट्ठ. अनुभव में आने वाला कर्म - विपाकं दत्वाव नस्सतीति 1.221; अपरापरे पनाति अट्ठकादीहि अपरा परे पच्छिमा अपरापरियवेदनीयकम्म सन्धायाह, जा. अट्ठ. 4.353;
ओक्काकराजकालादीसु उप्पन्ना, लीन. (दी.नि.टी.) 1.2733; उभिन्नमन्तरे पञ्चजवनचेतना अपरापरियवेदनीयकम्मं नाम, - रा स्त्री., प्र. वि., ब. व. - रत्तियो पत्थयन्तेन, उळारा अभि. अव. 154; - वेपक्क त्रि., तत्पु. स., अगले जन्मों में अपरापरा, स. नि. 1(1).104; - रेसु सप्त. वि., ब. व. - विपाक को प्राप्त करने वाला कर्म - अप्पट्टियं कम्म तस्मा तस्स भगवा अपरापरेसुपि दिवसेसु पिण्डाय चरितब्ब, अपरापरियवेपक्कन्ति?, कथा. 384. ..... सु. नि. अट्ठ. 2.194.
अपरापरियाय द्रष्ट. अपरपरियाय के अन्त.. अपरापरं अ., क्रि. वि. [अपरापरं], क. इधर-उधर, इस छोर । अपरापरूप्पत्तिक त्रि., ब. स. [अपरापरूत्पत्तिक], शनैः से उस छोर, एक किनारे से दूसरे किनारे तक - अपरापरं शनैः अथवा क्रमशः उत्पन्न होने वाला/वाली - परियेसन्ति, महानि. 271; अपरापरं परियेसन्तीति उपरूपरि अपरापरूप्पत्तिका वनथा नाम,ध. प. अट्ठ.2.243. गवेसन्ति, महानि. अट्ठ. 320; सो पासादो ... अपरापरं अपरापरूप्पन्न त्रि., कर्म. स. [अपरापरूत्पन्न], उत्तरकम्पति चलति न सन्तिट्ठति, म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(2). काल में उत्पन्न, क्रमशः उत्पन्न, हेतु-प्रत्ययों की अपेक्षा से 199; सो हत्थी ... अपरापरं करोन्तो कीळति, उक्खिपित्वा उत्पन्न - सा अपरापरूप्पन्नाय अविज्जाय उपनिस्सयपच्चयो कुम्भे पतिट्ठापेति, जा. अट्ठ. 1.188; ते अपरापरं संसरन्ता होति, म. नि. अट्ठ. 1(1),233. एक बुद्धन्तरं देवलोके खेपेत्वा अम्हाकं भगवतो काले ... अपरामट्ठ त्रि., परामट्ठ का निषे. [अपरामृष्ट], शा. अ. निब्बत्ति, उदा. अट्ठ. 145; ख. पुनः पुनः, बार-बार, और भी स्पर्श न किया हुआ, ला. अ. अप्रभावित, अदूषित, अगृहीत आगे - रुआ विनिच्छितकालतो पट्ठाय अट्ठो अपरापरं न - ... सीलानि अखण्डानि अच्छिद्दानि ... अपरामट्ठानि सञ्चरति, राजवचनेनेव छिज्जति, म. नि. अट्ठ. (मू.प.) समाधिसंवत्तनिकानि ..., दी. नि. 2.63; तण्हादिट्ठीहि
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