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अपनेति
अपनीत पु., ब. व., छिपा कर रख दिए - छब्बग्गिया भिक्खू ... चीवरम्पि अपनिधेसु, तस्मिं वत्थुस्मि, परि. 33-34; - स्सथ भवि., म. पु.. ब. व., छिपा कर रखोगे - भिक्खूनं पत्तम्पि चीवरम्पि अपनिधेस्सथ, पाचि. 165; - स्सन्ति भवि., प्र. पु., ब. व., दूर हटा देंगे, छिपा देंगे - कथहि नाम ... भिक्खून पत्तम्पि चीवरम्पि अपनिधेस्सन्तीति, पाचि. 165; - अपनिहित/धित भू. क. कृ. [अपनिहित], हटाया हुआ, दूर में रखा गया, छिपा कर रखा हुआ -- तेनापनिहिते तस्स, पाचित्तिं परिदीपये, विन. वि. 1650; अपनिधिते आपत्ति पाचित्तियस्स, परि. 70; - त्त नपुं., अपनिहित का भाव. [अपनिहितत्व]. दूर हटा कर रख देने की अवस्था, छिपा । कर रख देने की स्थिति - साटकस्स पन अपनिहितत्ता नग्गो अहोसि, पे. व. अट्ठ. 216... अपनीत त्रि., अप + vनी का भू. क. कृ. [अपनीत], दूर ले जाया गया, हटा दिया गया, छिपाया हुआ, अदृश्य बनाया हुआ - अपनीतो अविज्जाविसदोसो, म. नि. 3.41; इदानेव मया इमस्स सोको अपनीतो, पब्बेपि अपनीतोयेवाति वत्वा तेहि याचितो अतीतं आहरि पे. व. अट्ठ. 34; दिविगतन्ति खो, वच्छ, अपनीतमेतं तथागतस्स, म. नि. 2.163; किन्ते छत्तुपाहनं अपनीतान्ति, ध. प. अट्ठ. 1.214; अपनीतन्ति नीहट अपविद्धं, म. नि. अट्ठ. (म.प.) 2.141; - त्त नपुं., अपनीत का भाव. [अपनीतत्व], दूर ले जाना, तिरोहित कर देना - तनुबन्धमुद्धरन्ति तनुकं ... तित्तकस्स अनपनीतत्ता तं असादुमेव कयिरा, जा. अट्ठ. 3.281; निषे. अनपनीतत्त; - ता स्त्री., भाव., उपरिवत्, निषे. अनपनीतता - तरस जातदिवसे गममलस्स धोवित्वा अनपनीतताय केसा जटिता हुत्वा अट्ठसु. ध. प. अट्ठ. 406; - कसाव त्रि., ब. स. [अपनीतकाषाय], चित्त के कलुषित विचारों को हटा चुका, निर्मल चित्त वाला - सब्बवङ्कदोसनिहितनिन्नीतकसावोति निहितसब्बवङ्कदोसो चेव अपनीतकसावो च म. नि. अट्ठ. (उप.प.) 3.145; - काळक त्रि., ब. स., काले धब्बों या मस्सों से रहित, अकुशल तत्त्वों से मुक्त - विचितकाळकन्ति अपनीतकाळकं म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(1).183; तत्थ विचितकाळकन्ति विचिनित्वा अपनीतकाळकं, दी. नि. अट्ठ 1.221; - पाणि त्रि., ब. स. [अपनीतपाणि], हाथ को हटाया हुआ, भोजन समाप्ति पर पात्र से हाथ को हटा चुका - ओनीतपत्तपाणिन्ति पत्ततो अपनीतपाणिं, धोतपत्तपाणिन्तिपि पाठो, धोतपत्तहत्थन्ति अत्थो, उदा. अट्ठ. 196; - मान त्रि., ब. स. [अपनीतमान], घमण्ड को नष्ट कर चुका, निरहङ्कार,
अभिमान न करने वाला - निहतमानन्ति अपनीतमानं थेरीगा. अट्ठ. 290; - हत्थ त्रि., ब. स. [अपनीतहस्त]. अपने हाथ को भोजनपात्र से हटा चुका व्यक्ति - ओनीतपत्तपाणिन्ति पत्ततो ओनीतपाणिं, अपनीतहत्थन्ति वृत्तं होति, सु. नि. अट्ट, 2.159; दी. नि. अट्ट, 1.224. अपनीयति अप + Vनी के कर्म. वा. का वर्तः, प्र. पु., ए. व. [अपनीयति]. दूर ले जाया जाता है, हटा दिया जाता है, शान्त कर दिया जाता है - अस्सोव जिण्णो निब्भोगो, खादना अपनीयति, स. नि. 1(1).205; खादना अपनीयतीति अस्सो हि यावदेव तरुणो होति जवसम्पन्नो, .... जिण्णं निब्भोग ततो अपनेन्ति, स. नि. अट्ठ. 1.230. अपनुदति/अपनुदेति अप + vनुद का वर्त., प्र. पु., ए. व. [अपनुदति], छोड़ देता है, हटा देता है, भगा देता है - ततो योगवचरो अहिते धम्मे अपनुदेति, हिते धम्मे उपग्गण्हाति, मि. प. 35; ध. स. अट्ठ. 166; - नुज्ज पू. का. कृ., हटा कर, त्याग कर, दूर कर - ते भगवा अपनुज्ज एकारामं अनुयुत्तो विहरति, दी. नि. 2.164; अपनुज्जाति तेसं ... विहरन्तो चित्तेन अपनुज्ज, दी. नि. अट्ट. 2.220; - नुदितु पु., क. ना., नष्ट कर देने वाला, मिटा देने वाला, हटा देने वाला - ..., उब्बेगउत्तासभयं अपनुदिता, दी. नि. 3.110; उभेगउत्तासभयापनूदनो, तदे. - पानुदि अद्य०, प्र. पु., ए. व. - यो मे सोकपरेतस्स, पितसोक अपानुदि, जा. अट्ठ. 3.135; सच्चं अहम्पि जानामि, दुस्सं में त्वं अपानुदि, पे. व. 148; - पानुदिं उ. पु.. ए. व. - तस्सा त्याजानमानाय, दुस्सं त्याहं अपानुदि, पे. व. 147; पाठा. अपनुदेति. अपनूदन त्रि., अप + नुद से व्यु. [अपनोदन], दूर हटा देने वाला, मिटा देने वाला, शान्त कर देने वाला - उभेगउत्तासभयापनूदनो, दी. नि. 3.110; ते तस्स धम्म देसेन्ति, सब्बदुक्खापनूदनं, चूळव, 273; उदा. अट्ठ. 339; तुल. अपनुदितु. अपनेति अप + vनी का वर्त.. प्र. पु., ए. व. [अपनयति],
दूर कर देता है, हटा या मिटा देता है, रोक देता है, उतार फेंकता है, निरस्त कर देता है, बहिर्भूत कर देता है - .... आणिं अञआय ... हत्थादीहि सञ्चालेत्वा अपनेति, उदा. अट्ठ. 139; ..., भयमपनेति, .... मि. प. 141; - न्ति ब. व. - .... तमेनं अपनेन्ति, अपनेत्वा जातकानं नेन्ति, अ. नि. 2(1).88; 90; - हि अनु.,म. पु., ए. व., निकाल बाहर करो, हटा दो - तं तेसं गरहं परिभवं विनोदेहि अपनेहि
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