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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनागत 207 अनागत अज्ञात, वह, जिसे वर्तमान क्षण तक सीखा नहीं जा सका है, वह, जो ज्ञान के विषय के रूप में अभी तक उपस्थित नहीं है; 4. अनतिक्रान्त, वह, जो अभी तक पार नहीं कर सका हो- अडरते अनागते पठमयामेयेव जा. अट्ठ. 1.473; अनागतेति परियोसानं अप्पत्ते, अनतिक्कन्तेति अत्थो, जा. अट्ठ. 7.103; 5. केवल नपुं. में संज्ञा-रूप में भी प्रयुक्त; क. भविष्यकाल - अतीतं नान्वागमेय्य, नप्पटिकले अनागतं. म. नि. 3.227; अतीतं खो, आवसो, एको अन्तो, अनागतं दुतियो अन्तो, अ. नि. 2(2).105; ख. केवल व्याकरणों में, किसी क्रिया-पद द्वारा व्यक्त भवि. - अनागते भविस्सन्ती. क. व्या. 423; मो. व्या. 5.68; - तंस पु., कर्म. स. [अनागतांश], वर्तमान क्षण तक अप्राप्त कालखण्ड, वर्तमान समय तक न पहुंचा हुआ कोई भी धर्म या भाग - यं रूपं अजातं ... अनागतंसेन सङ्गहितं ... इदं वच्चति रूपं अनागतं विभ. 2: तीणि जाणानि-अतीतसे आणं, अनागतंसे आणं पच्चुप्पन्नसे आणं दी. नि. 3.221; - तंसाण नपुं.. तत्पु. स., सात अभिज्ञाओं में एक, जो अंश अथवा कालखण्ड वर्तमान क्षण तक अप्राप्त है, उसके विषय में ज्ञान - ... अनागतंसाणं पेसेत्वा ओलोकेन्तो ... समिज्झनभावं अद्दस, अ. नि. अट्ट, 1.123; अनागतंसाणचतुत्थं ... अनागते सङ्घो नाम राजा भविस्सतीति आदिना नयेन ... नवत्तब्बारम्मणं विभ. अट्ठ. 352; अनागतंसाणस्स, यथाकम्मुपगस्स च, अभि. अव. 140; - कालिक त्रि., [अनागतकालिक]. अभी तक नहीं आए हुए भविष्यत्काल से सम्बन्धित -- कत्थचि अतीतकालिका कत्थचि अनागतकालिका, सद्द. 1.49; -- कोट्ठास पु., कर्म. स. [अनागतकोष्ठांश], काल का अभी तक नहीं आया हुआ भाग, भविष्यकाल का कोई अंशअपरन्तं आरम्भाति अनागतकोट्ठासं आरम्मणं करित्वा, ध. स. अट्ठ. 415; - जाणकथा स्त्री.. तत्पु. स., कथा. नामक प्रकरण की पांचवीं कथा के आठवें खण्ड का कुछ संस्करणों में प्राप्त शीर्षक, पृ. 262; - त्त नपुं., भाव. [अनागतत्व], अनधिगमन, अग्रहण या अज्ञान की अवस्था, अज्ञानत्व, अप्राप्तित्व - राजानं निस्साय गन्धेसु अनागतत्ता, सा. वं. 112(ना.); - त्थ त्रि., ब. स. [अनागतार्थ], अर्थ अथवा परियत्ति एवं पटिवेध के ज्ञान को प्राप्त न किया हुआ, सत्यज्ञानविरहित - खुद्दञ्च बालं उपसेवमानो, अनागतत्थञ्च उसूयकञ्च, सु. नि. 320; अनागतत्थन्ति अनधिगतपरियत्तिपटिवेधत्थं सु. नि. अट्ठ. 2.57; - ताधिवचनकुसल त्रि., तत्पु. स., भविष्य के विषय में कुशल, भविष्यत्कालवाचक शब्द के प्रयोग के सम्बन्ध में कुशल - ... अतीताधिवचनकुसलो, अनागताधिवचनकुसलो .... नेत्ति. 29; - तारम्मण त्रि.. ब. स. [अनागतालम्बन], वे चित्त एवं चैतसिक धर्म, जिनका आलम्बन भविष्य हैं, भविष्य को चिन्तन-विषय बनाने वाले चित्त एवं चैतसिक धर्म -- अनागते धम्मे आरब्भ ये उप्पज्जन्ति चित्त-चेतसिका धम्मा-इमे धम्मा अनागतारम्मणा, ध. स. 1048, 1433; - तारम्मणकथा स्त्री., कथा. के 9.7, अध्याय का शीर्षक, कथा. 328-336; - पुच्छा स्त्री., तत्पु. स. [अनागतपृच्छा], भविष्यत्काल के विषय में पूछताछ - अपरापि तिस्सो पुच्छा - अतीतपुच्छा, अनागतपुच्छा, पच्चुप्पन्नपुच्छा, महानि. 251; -- प्पजप्पा स्त्री.. च. तत्पु. स. संभवतः प्र + जल से व्यु.. भविष्य से सम्बन्धित अनेक प्रकार की मानसिक कामना - अनागतप्पजप्पाय, अतीतस्सानसोचना, स. नि. 1(1).63; जा. अट्ठ. 6.31; अनागतप्पजप्पायाति अनागतरस पत्थनाय, स. नि. अट्ठ. 1.27 (द्रष्ट, पजप्पा, पजप्पना, आगे)- फल त्रि., ब. स. [अनागतफल], वह, जिसने फल को प्राप्त नहीं किया है, अनधिगतफल, फल को अप्राप्त - आगताफलो अनागताफलो च, सद्द. 2.491; - भय नपुं, तत्पु. स. [अनागतभय], भविष्य में आने वाला भय, भविष्य में आशङ्कित सङ्कट या विपत्ति - ... कामेस अनागतभयं सम्पस्समाना ...., म. नि.1.387; पुरा आगच्छते एतं, अनागतं महब्भयं थेरगा. 978; ... देवदत्तो लाभसक्कारगिद्धो हुत्वा अनागतभयं न ओलोकेसि, जा. अट्ठ. 4.144: - मद्धान नपुं., अनागत + अद्धान [अनागताध्वन्], काल का अभी तक न आया हुआ भाग, भविष्यत्काल - अनागतमद्धाने द्विन्नम्पि तेसं चक्खूनं अन्तरधानं दिस्वा.... मि. प. 130, द्रष्ट, अद्धान; - रूप नपुं., कर्म. स. [अनागत-रूप], भविष्यत्कालवाचक कोई शब्दरूप - ... भविस्सती ति आदीनि वदतो अनागतरूपं न समेति, म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(2).182; अनागतरूपन्ति अभीते अत्थे अनागतसद्दारोपनं अनागतप्पयोगो न समेति, मू. प. टी. 1(2).196; - वंस पु.. श्रीलङ्का के कस्सप-नामक स्थविर द्वारा रचित भावी बुद्ध मैत्रेय के जीवन-वृत्तान्त से सम्बन्धित एक लघु वंश-ग्रन्थ का नाम: ग. वं. 61, (जॅ. पा. टे. सो. 1886, 33-53 में जे. मिनायेफ द्वारा तथा ई. लूमन द्वारा मैत्रेय समिति, स्ट्रेसबर्ग 1919, 184-191 में संपादित); - वचन नपुं., कर्म. स., भवि. वाचक अथवा उससे सम्बन्धित शब्द - विम्हयत्थवसेन पनेत्थ भविस्सतीति अनागतवचनं कतं, म. नि. अट्ठ. (म.प.) For Private and Personal Use Only
SR No.020528
Book TitlePali Hindi Shabdakosh Part 01 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Panth and Others
PublisherNav Nalanda Mahavihar
Publication Year2007
Total Pages761
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size29 MB
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