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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अननुस्सति 192 अनन्त अननुस्सति स्त्री०, अनुस्सति का निषे०, तत्पु., [अननुस्मृति], अपरियन्तगोचरं ध. प. अट्ठ. 2.114; इच्छा हि अनन्तगोचरा, अनुस्मृति की अनुपस्थिति या अभाव, स्मृति-विप्रमोष - या विगतिच्छान नमो करोमसेति जा. अट्ठ. 2.216; इच्छा हि अस्सति अननुस्सति अप्पटिस्सति अस्सति अस्सरणता अनन्तगोचराति लद्धं हीळेत्वा अञमज आरम्मणं इच्छनतो अधारणता पिलापनता सम्मुसनता- इदं वुच्चति मुट्ठस्सच्चं. अयं इच्छा नाम तण्हा अनन्तगोचरा, तदे.; - जालि पु., विभ. 417; ध. स. 1356. भाजनपालक थेर के पूर्ववर्ती जन्म का नाम - तेपासे अननुस्सुत त्रि., [अननुश्रुत], परम्परा में अप्राप्त, वह, जिसे इतो कप्पे, अनन्तजालिनामको, सत्तरतनसम्पन्नो, चक्कवत्ती पहले कभी नहीं सुना गया है - पुब्बे अननुस्सुतेसु धम्मेसु.. महब्बलो, अप. 1.229; - जिन पु.. [अनन्तजिन], अनन्त दी. नि. 2.25; ये ते समणब्राह्मणा पुब्बे अननुस्सुतेसु धम्मसु अर्थात् निर्वाण पर विजय प्राप्त करने वाला, अनन्त विजेता, सामंयेव धम्म अभिआय, म. नि. 2.434; पुब्बे अननुस्सुतेसु अनन्तजयी अर्हत् अथवा बुद्ध के लिये आजीवक उपक धम्मेसु सामं सच्चानि अभिसम्बुज्झि, महानि. 344; - धम्म द्वारा प्रयुक्त शब्द - यथा खो त्वं आवसो, पटिजानासि, पु., [अननुश्रुतधर्म], पहले, कभी नहीं जाना गया धर्म - अरहसि अनन्तजिनोति, महाव. 12; सो तं असहन्तो भद्दे, अननुस्सुतधम्मेसु, पुब्बे दुक्खादिकेसु च, अप. 2.284; - अहं अनन्तजिनस्स सन्तिकं गच्छामी ति, मज्झिमदेसाभिमुखो वग्ग स. नि. के एक वर्ग का शीर्षक, स. नि. 3(1). पक्कामि, सु. नि. अट्ठ. 1.218; - ञाण त्रि०, ब. स. 253-259. [अनन्तज्ञान], अनन्तज्ञान से युक्त, अनन्तज्ञानान्वित अनन्त' त्रि., अन्त का निषे., तत्पु. [अनन्त], सीमारहित, (प्रधानतः बुद्ध के विशेषण के रूप में प्रयुक्त)- अनन्तत्राणं असीम, निस्सीम, अन्तरहित - विआणं अनिदस्सनं, अनन्तं सम्बुद्ध को दिस्वा नप्पसीदति, अप. 1.170; सो हि भगवा सब्बतोपभं, दी. नि. 1.203; उप्पादन्तो वा वयन्तो वा ठितस्स महापओ ... अनन्तञाणो अनन्ततेजो..., महानि. 130; अञथत्तन्तो वा एतस्स नत्थीति अनन्तं, दी. नि. अट्ठ. - ता स्त्री॰, भाव. [अनन्तता], निस्सीमता, असीमता, 1.294; आकासो अतिवित्थारताय अनन्तो, मि. प. 2583; सीमाराहित्य - अयं आकासो अनन्तो अनन्तोति वदन्ति, चत्तारि हि अनन्तानि - आकासो अनन्तो, चक्कवाळांनि कुतस्स अनन्तता, दी. नि. अट्ठ. 2.69; - तेज त्रि., ब. स. अनन्तानि, सत्तनिकायो अनन्तो, बुद्धआणं अनन्तं, ध. स. [अनन्ततेजस्], अनन्त तेज से युक्त, अनन्त तेजवान्, अट्ठ. 205; अच्चन्तमनन्तं सन्तं, अमतं अपलोकितं, अभि. असीम तेज वाला - अनन्ततेजो अमितयसो, अप्पमेय्यो अव. 104; अपलोकितं निपुणमनन्तमक्खरं, अभि. प.7;- दुरासदो, बु. वं. 309; अनन्ततेजो अमितयसो, भूमिपालो क त्रि., ब. स. [अनन्तक], सीमारहित, असीम, निस्सीम, महद्धनो, अप. 1,42; अनन्ततेजो अनन्तवीरियो अनन्तबलो अन्तरहित - अनन्तको च आकासो, एवं बुद्धा अखोभिया, बुद्धबलपारमिं गतो .... मि. प. 302; - दस्सी त्रि., अप. 1.43; - काय पु., राजा मिलिन्द के एक मन्त्री का [अनन्तदर्शिन], अनन्त प्रज्ञा वाला, अनन्तदर्शन से सम्पन्न नाम - अथ खो देवमन्तियो च अनन्तकायो च मङरो च - अनन्तदस्सी भगवाहमस्मि, जातिजरं सोकमपातिवत्तो, स. येनायस्मा नागसेनो तेनुपसङ्कमिंसु, मि. प. 27; - गुण त्रि., नि. 1(1).169; जा. अट्ठ. 3.318; अनन्तदस्सी भगवा, गोतमो ब. स. [अनन्तगुण], अनन्त गुणों से युक्त - सो भगवा सक्यपुङ्गवो, अप. 1.93; - दोसुप्पद्दव पु., तत्पु. स. विचित्तपुप्फरासि विय अनन्तगुणो अप्पमेय्यगुणो, मि. प. [अनन्तदोषोपद्रव], अनन्त दोषों, संकटों तथा हानियों का 315; - गुणसञ्चय त्रि., तत्पु. स., अनन्त या निस्सीम उपद्रव, अनन्त दोषों या विपत्तियों का उत्पात - गुणों का संकलन या संग्रह रखने वाली - देसेति पवरं अनन्तदोसूपद्दवतोति आसीविसे निस्साय उप्पज्जनकानव्हि धम्म, अनन्तगुणसञ्चयो, अप. 2.151; - गुणसागर त्रि., दोसूपद्दवानं पमाणं नत्थि, स. नि. अट्ठ. 3.61; - धिति अनन्त या निस्सीम गुणों का समुद्र, अनेक गुणों से परिपूर्ण स्त्री., [अनन्तधृति], अनन्त धैर्य, कभी न अन्त होने वाला - तिस्सं बुद्धं समुद्दिस्स, अनन्तगुणसागरं, अप. 1.128; - धैर्य, निस्सीम धृति - सो भगवा असमो असमसमो ... गोचर त्रि., [अनन्तगोचर], वह, जिसके ज्ञानप्रसार का । अनन्तधिति अनन्ततेजो... धम्मनगरं मापेसि, मि. प. 302; क्षेत्र अनन्त है, अपर्यन्तगोचर, अनन्त गोचरवाला - तं -- नय त्रि., [अनन्तनय], अनन्त नयों वाला, अनन्त बुद्धमनन्तगोचर अपदं केन पदेन नेस्सथ, जा. अट्ठ. 1.88; पद्धतियों से युक्त - अनन्तनयं समन्तपट्टानं विचिनन्तो अनन्तगोचरन्ति अनन्तारम्मणस्स सब्बतआणस्स वसेन सत्ताहं वीतिनामेसि, जा. अट्ठ. 1.87; - पञ त्रि., ब. स. For Private and Personal Use Only
SR No.020528
Book TitlePali Hindi Shabdakosh Part 01 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Panth and Others
PublisherNav Nalanda Mahavihar
Publication Year2007
Total Pages761
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size29 MB
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