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अधिकारिक
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अप. 1.294; अधिकार महा मयहं धम्मराज सुणोहि मे अप. 2.258; अहं खो, भन्ते, तस्स ब्राह्मणस्स अधिकारं सरामि महाव, 62: ग. सम्मान, अभिनन्दन, त्याग असादियन्तरस कतो अधिकारो वझो भवति अफलो, मि. प. 108 किं नु खो सत्धु अधिकारं करोमी ति चिन्तेत्वा... ध. प. अड. 1.273; तुल, अभिकार घ. ऐसा नियन्त्रक पद जिसकी अनुवृत्ति आने वाले पदों एवं सूत्र- नियमों आदि में की जाए अत्थाति अधिकारत्थे निपातो. उदा. अड. 30 पुब्बेवाति अधिकारी सु. नि. अ. 1.95, तुल. अधिकार सूत्र, पाणिनीय अष्टाध्यायी; - कत त्रि. ब. स. अपने कर्त्तव्यों को पूरा कर चुका व्यक्ति, पहले उपकार कर चुका व्यक्ति अधिकारकतो पुब्बे कतूपकारो होति, जा० अट्ठ. 7.141, तुल कताधिकार; रन्तर नपुं. अधिकार + अन्तर [ अधिकारान्तर] नवीन विषय नूतन परिस्थिति, नया क्षेत्र खोति अधिकारन्तरनिदरसनत्थे निपातो खु. पा. अड्ड. 91 खो पनाति इदं पनेत्थ निपातद्वयं पदपूरणमतं अधिकारन्तरदरसनत्थं वाति सु. नि. अट्ठ. 1.109 सुत्त नपुं, व्याकरणों में ही विशेष रूप में प्रयुक्त, कर्म. [ अधिकारसूत्र ], व्याकरण के छः प्रकार के सूत्रों में से एक, वह सूत्र जिसकी अनुवृत्ति परवर्ती अनेक सूत्रों में की जाती
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है सञ्ञाधिकारपरिभासाविधिसत्तेसु अधिकारसुत्तन्ति वेदितं क. व्या. 52 पर क. व., निपच्चते इच्चेतं अधिकारत्थं वेदितब्ब, सद्द. 3.806.
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अधिकारिक त्रि. [आधिकारिक]. किसी विषय विशेष से सम्बद्ध के रूप में कार्यरत अधिकार क्षेत्र में आया हुआ - तक्षणिकन्ति अचिरकालाधि कारिक पारा. अनु. 2.127. अधिकारी पु.. [ अधिकारिन्] अधिकार प्राप्त व्यक्ति, प्रशासक,
अध्यक्ष- आनपेत्वा ततो मञ्जुअधिकारि नराधिपो म० कं 74-129. अधिकिस्सरवचन नपुं. अधिकत्व और ईश्वरत्व का अर्थउप-अघि इच्छेतेस पयोगे अधिकिस्सरवचनेसु सत्तमी विभत्ति होति. क. व्या. 316.
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अधिकुट्टन नपुं अघि कुट्ट से व्यु [ अधिकुट्टन ], काटना, छेदना, कूटना, पीसना, चूर्ण करना असिसूनूपमा काम अधिकुहनÈन, थेरीगा. अड. 311 म. नि. अड. (मू.प.) 1(2).10. अधिकुट्टना स्त्री. कसाई द्वारा प्रयुक्त वह काष्ठफलक या लकड़ी का तख्ता जिस पर वह पशुओं के सिर काटता है, काष्ठमयी वध्यशिला सत्तिसूलूपमा कामा खन्धासं अधिकुट्टना, स. नि. 1.152.
अधिगच्छति
अधिकुमारि अ.. अव्ययी. स. [ अधिकुमारि] कुमारी के सम्बन्ध में कुमारं अधिकिच्च कथा वत्ततीति, अधिकुमारि,
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क. व्या. 322.
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अधिकुसल त्रि., [अधिकुशल], अत्यधिक पुण्यवान, उच्चरूप में पुण्यमय, अञ्जतरञतरेसु च अधिकुसलेसु धम्मेसु दी. नि. 3.108; अरतीति अधिकुसलेसु धम्मेसु उक्कण्ठा, म. नि. अट्ठ. ( मू०प.) 1(1). 169. अधिकूनक क्रि ब. स. [ अधिकोनक] कुछ अधिकता तथा कुछ न्यूनता से युक्त अधिकूनकतो एकक्खरतो च इतो पर, सद्द० 1.235. अधिकोट्टन नपुं. वध हेतु प्रयुक्त काष्ठपीठ आघातनं वधट्ठानं, सूणा तु अधिकोट्टनं अभि. प. 521; तुल० अधिकुट्टना.
अधिकोपित त्रि [अधिकोपित] अत्यधिक क्रुद्ध कराया गया, बहुत अधिक उत्तेजित किया गया मा ते अधिसरे मुञ्च, सुबाळ्हमधिकोपित जा. अड. 5.112. अधिगच्छति अधि + √गम, वर्त, प्र. पु. ए. व. [ अधिगच्छति] प्राप्त करता है, समझ जाता है, ठीक से जान लेता है भोगक्खन्धं अधिगच्छति दी. नि. 2.67; रतिं सो नाधिगच्छति ध. प. 187: समाधिं नाधिगच्छति ध. प. 365; सन्तिमेवाधिगच्छति इतिवु, 59 समिज्झतीति- लभति पटिलभति अधिगच्छति विन्दतीति, महानि. 2 - च्छामि वर्त, उ. पु. ए. व. निबुतिं नाधिगच्छामि पे व 38:न्ति वर्त० प्र० पु०, ब० व. एवरूपं उळारं विसेसं अधिगच्छन्ति दी. नि. 1.208 च्छ अनु. म. पु. ए. व. अत्तानं अधिगच्छ उब्बिरि, थेरीगा. 51; - च्छे विधि., प्र. पु. ए. व. अधिगको पदं सन्तं थेरगा. 11: झगा / झगमा / गछि अय., प्र. पु. ए. व. तहानं खयमज्झगा, ध. प. 154; यो नाज्झगमा भवेसु सारं. सु. नि. उळारं विसेसं अधिगञ्छि, उदा. अट्ठ 239, पाठा. अधिगच्छि जागू / जागमिंसु अद्य.. प्र. पु. ब. क. सुतस्स पज्ञाय च सारमज्झगू, सु. नि. 332; पच्चे कर्म वज्झगमं सु बोधि, म.नि. 3.115; छिस्सामि / छिस्स अद्य. प्र. पु. ए. व. भवि., उ. पु.. ए. व. अरियधम्म आहरिस्सामि अधिगच्छिस्सामि, महानि. 48; ओताएं नाधिगच्छिस्सं सु. नि. 448; त्वा पू कुसलं धम्मं अधिगन्त्वा, दी. नि. 1.205; सज्ञवेदयितनिरोधे आनिसंस अधिगम्म अ. नि. 3(1). 250 न्तब्बं / मनीय सं. कृ. - निब्बानं अधिगन्तब्ब
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का. कृ.
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