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अधारणता
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अधिकरण
अभि. प. 930; अधरसद्दो पि हेडिमत्थवाचको बवत्थावचनो येव, सद्द. 1.267. 2. पु., नीचे वाला होठ - दन्तावरणमोट्ठो चाप्यधरो दसनच्छदो, अभि. प. 262; - काय पु., कर्म. स. [अधरकाय], शरीर के निचले भागों के अङ्ग, शरीर का निचला भाग - तस्स भोतो गोतमस्स अधरकायोव इञ्जति. म. नि. 2.346; - रारणी स्त्री., अधर + अरणी [अधरारणि], जिन्हें रगड़कर अग्नि उत्पन्न की जाती है उन अरणी नामक दो लकड़ियों में से नीचे वाली लकड़ी - अयं उत्तरारणी अयं अधरारणीति आवज्जेन्तेन अज्ञविहितकेन भवितब्बं, म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(1).404, द्रष्ट. अरणी; - रुत्तर/रोत्तर त्रि., द्व. स. [अधरोत्तर], नीचे का एवं ऊपर का - पुब्बापरानं अधरुत्तरानं सद्द. 1.272; अधरो च उत्तरो च अधरुत्तरानं, क. व्या. 166; - रोट्ठ पु.. अधर + ओट्ट कर्म. स. [अधरोष्ठ], निचला होठ - तथा तस्स अधरोटे च उत्तरोटे च दण्डकं ठपेत्वा, जा. अट्ठ. 3.22. अधारणता स्त्री., धारण के भाव. का निषे. [अधारणता]. अस्मृति, चित्त में धारण करने में असमर्थता, स्मृति की। शिथिलता - या असति, अननुस्सति ... अधारणता ... इदं वुच्चति मुट्ठसच्च, ध. स. मा. 1356. अधारित त्रि., धारित का निषे. [अधारित], नहीं धारण किया हुआ - एत्थन्तरे न जानामि, सेतच्छत्तं अधारितं, अप. 1.406. अधि अ. उप. [अधि], क नामों से पूर्व में प्रयुक्त, पू. स. के रूप में धातुओं से पूर्व में प्रयुक्त, उप. के रूप में, ख. यदा कदा समाना. अति एवं अभि उप. के परस्पर-विनिमय या व्यामिश्रण के कारण प्रयुक्त, ग. स्वरों से पूर्व प्रायः 'अज्झ' रूप में दृष्टिगत, घ. अन्य उपसर्गों के साथ भी प्रयुक्त यथाः 1. अधि + ओ = अज्झो , 2. अधि + आ = अज्झा , 3. अधि + उप = अज्झुप, 4. अधि + प = अधिप्प, 5. अधि + सं = अधिसं, ङ. आवृत्यर्थक समासों के मध्य मे अन्तर्निवेशित, (छत्ताधिछत्त), च. विविध अर्थ - तक, पर, की ओर, अतिरेक, आधिक्य, उत्कर्ष - अधिकिस्सरपाठाधिट्ठानपापुणनेस्वधि, निच्छये, चोपरित्ताधिभवने च विसेसने, अभि. प. 11773; पठवियं अधिसेस्सति, ध. प., 41; भोगक्खन्धं अधिगच्छति, दी. नि. 2.67; छ. सप्त. वि. के अर्थ में प्रयुक्त उप. के रूप में - अधि ब्रह्मदत्ते पाञ्चाला, सद्द. 3.730; क. व्या. 316. अधिक त्रि., [अधिक], संख्या, मात्रा, गुणवत्ता आदि में बढ़ा हुआ, अभि उपस. के अर्थ में - अभिमुख्यसिविट्ठद्धकम्मसारूप्पवुद्धिसु. अभि. प. 1176;
अधिकिस्सिरपाठाधिट्ठानपापुणनेस्वधि, अभि. प. 1177; उप एवं अधि के तात्पर्य में - उपाध्यधिकिस्सरवचने, क. व्या. 316, उपाधियोगे अधिक इस्सरवचने सद्द. 3.729; - कार पु., परित्याग - अधिकारोति अधिककारो, परिच्चागोति अत्थो, सु. नि. अट्ठ. 1.41, द्रष्ट, अधिकार के अन्त.; - क्क नपुं.. एक पवित्र स्नान-स्थल का नाम - बाहुकं अधिकक्कञ्च, गयं सुन्दरिक अपि, म. नि. 1.49; अधिकक्कन्ति न्हानसम्भारवसेन लद्धवोहारं एक तित्थं वुच्चति, म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(1).187; - गुणता स्त्री., श्रेष्ठता, उत्तमता - नक्खत्तेहि अधिकगुणताय नक्खत्तराजा ति ..., वि. व. अट्ठ. 70; - च्छेदन नपुं., कर्म. स., [अधिकछेदन], अत्यधिक काटना, बहुत अधिक काट-छांट - अधिकच्छेदनं तस्स, पाचित्तियमुदीरितं. विन. वि. 574; - तर त्रि., अधिक का तुल. वि. 1. और भी अधिक, अधिक विख्यात,
और भी अधिक संख्या में, तृ. वि. अथवा प. वि. के योग में प्रयुक्त - ... देवदत्तो ... बोधिसत्तेन ... अधिकतरो, मि. प. 192; इतो अधिकतरं दस्सामि, ध. प. अट्ठ. 1.357; 2. क्रि. वि., अत्यधिक मात्रा में और अधिक रूप में - अधिमत्तन्ति अधिकतरं पे. व. अट्ठ. 75; - त्त नपुं.. अधिक + त्त, भाव. [अधिकत्व], अधिकता, प्रचुरता, उत्तमत्व - सब्बचित्तानं अधिकत्ता उत्तमत्ता, उदा. अट्ठ. 206 - प्पयोग पु., कर्म. स. [अधिकप्रयोग], दिशान्तरण, अपसरण - को अधिप्पयासोति को अधिकप्पयोगो, म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(1).322; - मान पु., कर्म स॰ [अधिकमान], अहङ्कार, घमण्ड - अधिमानेनाति ... अधिकमानेन वा थद्धमानेनाति अत्थो, पारा. अट्ठ. 2.72; - मानस त्रि., ब. स. [अधिकमानस], किसी कार्य के निष्पादन में अत्यधिक सन्नद्ध मन वाला, उन्नत मन वाला - चागेन अधिकमानसो, जा. अट्ठ. 7.237. अधिकत त्रि., अधि + Vकर का भू. क. कृ. [अधिकृत], 1. प्रमुख अथवा प्रधानरूप में स्थापित, नियुक्त, कार्य निष्पादन हेतु प्राधिकृत, अध्यक्ष - अज्झक्खो धिकतो चेव, अभि. प. 343; ... दानाधिकारे अधिकतो, पे. व. अट्ठ. 109; 2. वशीभूत, असुरक्षित, अधीर, अधिकार में ले लिया गया - जनो सम्मूळ्हो विमतिजातो अधिकतो संसयपक्खन्दो, मि. प. 145. अधिकरण नपुं., [अधिकरण]. 1. महत्त्वपूर्ण स्थान पर स्थापन अथवा नियुक्ति, प्रबन्धन क्षेत्र, अधीक्षण, प्रसार, प्रबन्धन, प्रशासन-पद - अधिकरणे नियुत्तकपुरिसो, पे. व.
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