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अत्रिच्छा
अनिच्छतामहिच्छतापापिच्छतादीनं पापधम्मानं
आसक्ति पहानाधिगमहेतुतो खु. पा. अट्ठ. 118; अत्रिच्छतं पजहन्तो खु. पा. अट्ठ 195; अतिच्च इच्छतीति अतिच्चिच्छो, तस्स भावो अतिच्चिच्छताति वत्तब्बे च्चिकारलोप कत्वा अतिच्छता ति वृत्तं अतिच्छताति च सा एव युच्चतीति तत्रापि नेरुत्तिकविधानेन पदसिद्धि वेदितव्या यथालयं वा अतिक्कमित्या अत्र अत्र इच्छानं अत्रिच्छता, सा एवं कारस्स तकारे कत्वा अतिच्छताति बुत्ता विभ. अड्ड मू. टी. 218-219; - टि. म. भा. आ. भा. के ध्वनिपरिवर्तन की अनिश्चित प्रवृत्तियों के आलोक में यह निश्चय करना कठिन है कि सं. के अतीच्छ, अतृच्छ अथवा अतृप्स में से किसका समीपतम पालिरूपान्तरण अत्रिच्छ है; - हत त्रि.. तू. तत्पु, स.. इच्छा की अधिकता द्वारा पीड़ित तं अनिच्छताहतं रोदमानं दिस्वा... जा. अड. 3.194,
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पाठा. अतिच्छता. अत्रिच्छा त्रि. [अतीच्छा, अतृप्सा, अत्यृच्छा?], अत्यधिक लोभ, प्रबल इच्छा, लालच, तृष्णा अत्रिच्छं अतिलोभेन, जा. अट्ट. 2.193 तुल. अतिच्छा निग्गह पु. लोभ अथवा प्रबल इच्छा का नियंत्रण अत्रिच्छानिग्गहाय उपोसथं समादियित्वा एकमन्तं निपज्जि जा. अड. 4. 292 च्छाभिभूतत्र अत्यधिक इच्छाओं द्वारा पीड़ित अनिच्छाभिभूतो मल्लरद्वे पच्चन्तगामं गतो, तदे.. अथ निपा. अ., [अथ] सातत्य निरन्तरता, संयोग, अधिकार, निश्चय, बिलगाव एवं प्रश्न आदि का सूचक निपा., गाथाओं में केवल पादपूरणार्थ अथोथानन्तरारम्भ हे पदपूरणे, अभि. प. 1190 अधाति अविच्छेदत्थे खु. पा. अड. 91; अथ इति निपातो अञ्ञाधिकारवचनारम्भे, सु० नि. अ. 1.110; क. और इससे आगे अथदसासिं सम्बुद्ध सु. नि. 1151; ख. और उससे पूर्व अप्पवारितो व सङ्घो भविस्सति, अथायं रत्ति विभायिस्सतीति, महाव. 238; अपरियादिन्नाव... अस्सु, अब... परियादानं गच्छेय्य. स. नि. 1 ( 2 ). 161; ग. अन्य निपा के साथ, और इसके आगे, और इसके बाद अथ परतो महासमुद्द गम्भीरं वित्थतं मि. प॰ 114; घ. तब, ठीक तभी, परिणामस्वरूप, फलस्वरूप, तदनन्तर अथस्स नवहि सोतेहि सु. नि. 199 अथ तत्तअयोगुळसन्निभं सु. नि. 672, ख. प्रश्नपूरक उपवाक्यों में, तब भला, अब यदि, तब कौन, तब क्यों, तब क्या अथ को चरहि जानाति सु. नि. 996: अथ त्वं गज्जसि, जा. अट्ठ. 4.391; अथ त्वन्ति ननु त्वं ... तदे;
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अथुस
अथ
च. अथ खो तेन खो पन समयेन के बाद में प्रयुक्त होने पर, ठीक तभी उसी क्षण में, तदनन्तर, उसके बाद, तब तेन समयेन बुद्धो भगवा उरुवेलायं विहरति खो भगवा बोधिरुक्खमूले सत्ताहं एकपल्लङ्केन निसीदि, महाव. 1; छ. क्रि.वि. के रूप में किन्तु परन्तु इससे विपरीत, कम से कम, तो भी होतु, ... सेलेहि पासाणो सम्पटिच्छितो, अथ पपटिकायपि अपचिति कातब्बा ..... मि प. 175; ज. वियोजक निपात के रूप में अथवा कल्याणमध पापकं जा. अड्ड. 1.35: देवतं अथ मानुसं अप. 1.55 झ. वादहेतुसूचक क्योंकि चूंकि, यस्मात् अथ पापजनं कोधो, पब्बतोवाभिमद्दति, स. नि. 1(1). 277. अथकन नपुं. थकन का निषे, अनाच्छादान, आच्छादित करके न रखना, छिपाकर न रखना, अनियन्त्रण, असुरक्षा
या अगुत्ति या अगोपना यो अनारक्खो यो असंवरो, अथकन अधिदहनन्ति अत्यो ध. स. अड्ड. 421. अथब्बणवेद / आधब्बणवेद पु. कर्म. स. [ अथर्ववेद, अथर्वन्वेद], चतुर्थ वेद, अथर्व वेद - आथब्बणवेदं चतुत्थं कत्वा, दी. नि. अड. 1.200 ... ब्राह्मणमाणवकानं इरुवेदं यजुवेदं सामवेद अथव्वणवेदं लक्खणं... मि. ए. 173-74. अथवा अ. विकल्पार्थसूचक निपा. [ अथवा ]. अथवा, या पिछले कथन में संशोधन का सूचक अथवास्स अगारानि अग्गि डहति पावको ध. प. 140 अथवा समाधिलाभेन ध. प. 271 वापि अ निपा. [ अथवापि] अथवा भी नीचेय्यो अथवापि सरिक्खो सु. नि. 924 पिता च माता अथवापि जातका, पे. व. 98.
अथावर त्रि, थावर का निषे [अस्थावर], अस्थिर, चलायमान, कम्पनशील, हिलता डुलता, वह जो सुदृढ़ नहीं है पुथुज्जनस्स हि सद्धा अधावरा... अ. नि. अड्ड. 2.130; अयं अत्तभावो नाम भिज्जनकट्ठेन, अथावरद्वेन कुलालभाजनसदिसो ध. प. अ. 1.180. अथिर त्रि. थिर का निषे [ अस्थिर ], परिवर्तनशील, अविश्वसनीय, अस्थिर अथेतन्ति अथिरं अप्पतिद्वितवचनं, जा. अट्ठ. 4.52; - त्त नपुं., अथिर का भाव., [अस्थिरत्व], अस्थिरता, परिवर्तनशीलता; चित त्रि. ब. स. [ अस्थिरचित्त], अस्थिर अथवा चञ्चल मन वाला - हलिद्दिरागन्ति हलिद्दिरागसदिसं अथिरचित्तं, जा. अट्ठ. 3.127. अथुस त्रि थुस का निषे, ब. स. [ अतुष] भूसीरहित कणरहित अनुपाको सालि पातुरहोसि अकणो अणुसो, सुद्धो, दी. नि. 3.65.
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