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अतिगतत्त
अतिगतत्त नपुं., भाव. [ अतिगतत्व], बहुत दूर चले जाने अथवा समाप्त या व्यतीत हो जाने की अवस्था तं अहं रागादीनं ... अतिगतत्ता सङ्गातिगं.... वदामीति अत्थो, ध. प. अट्ठ. 2.375. अतिगम्भीर त्रि., कर्म, स० [अतिगम्भीर ], अत्यन्त गम्भीर, बहुत अधिक गहरा महानामो सबको भगवन्तं अतिगम्भीरं पञ्हं पुच्छति, अ. नि. 1(1). 250; अत्तनो पन भिक्खुसङ्घस्स च अतिगम्भीरवित्थतं संसारमहण्णवं तरित्वा ... उदा. अ.
343.
अतिगरु त्रि. [ अतिगुरु ] अत्यधिक सम्माननीय, परमपूज्य - अतिगरुनो सम्मासम्बुद्धस्स सन्तिकं उद्धतवेसेन गन्तुं न युत्तं, म. नि. अट्ठ. (उप. प.) 3.250-251. अतिगाळ्हयति अति + √गाह का वर्त० प्र० पु०, ए. व., धीरेधीरे नष्ट कराता है, विध्वंस कराता है - न्ति ब. व. वेदेहि वित्तं अतिगाळ्हयन्ति, जा. अट्ठ. 7.57; अतिगाळ्हयन्तीति
वेदेहि तस्स सन्तकं वित्तं अतिगायन्ति विनासेन्ति, विद्धसेन्ति, जा. अट्ठ. 7.59. अतिगाह त्रि. अति + √गाह का भू. क. कृ. [अतिगाढ़]. अत्यधिक प्रगाढ़ बहुत अधिक तीव्र बहुत गहरा, मर्मछेदक अयं कप्पना अतिगाढहा, जा. अड. 1.72; अगाळलेनाति अतिगाढ हेन मम्मच्छेदकेन थद्धवचनेन पु. प.
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अट्ठ. 63.
अतिगाहित त्रि, अतिगाळह से व्यु, अत्यधिक पीड़ित, कठोरतापूर्वक दबोच दिया गया ते भतुरत्या अतिगाहिता पुन, दिसा पनस्सन्ति अलद्ध किञ्चनं जा, अड्ड, 5.397; अतिगाहिताति विद्धस्तसेनवाहना हुत्वा तदे.. अतिगुणकारक त्रि. [अतिगुणकारक ]. अत्यधिक हितकारक, अपरिमेय कल्याण करने वाला माता नाम अतिगुणकारिका
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जा. अट्ठ. 5.322.
अतिगुणता स्त्री. भाव [अतिगुणता], असाधारण गुणसम्पन्नता मणि अतिगुणताय कामददो, मि. प. 258. अतिघंसति अति + उस का वर्त, प्र. पु. ए. व. अत्यधिक रगड़ता है, घिसता है, अतिक्रमण करता है बुद्धआणं देवमनुस्सानं पञ्ञ फरित्वा अतिघंसित्वा तिष्ठति, पटि० म० 369.
अतिचण्ड त्रि. [अतिचण्ड ], अत्यधिक खूंखार, अत्यधिक भयानक सो पन अतिचण्डो येव, ध. प. अट्ठ. 2.289. अतिचरण नपुं., [अतिचरण], नियम विपरीत आचरण, नियम का उल्लंघन, नियम का अतिक्रमण सकारे वह्नितेपि पुन
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अतिचित्र
अतिचरणं विय पित्तादीसु एकस्स भेसज्जे करियमाने सेसानं प्रकोपवसेन पुन साबाधता. म. नि. अड. (उप.प.) 3.8. अतिचरति अति + √चर का वर्त., प्र. पु. ए. व. [ अतिचरति ],
शा. अ. सीमा के उस पार चला जाता है, अत्यधिक चारा चरता है; ला. अ. नियमों का उल्लंघन करता है, विशेषरूप से स्त्री-संसर्ग के क्षेत्र में निर्धारित सीमाओं का अतिक्रमण करता है, व्यभिचार करता है - बाराणसिरज्ञो अग्गमहेसिया सद्धि अतिचरति जा. अड. 3.265 इतिपरतनं राजानं चक्रवत्तिं मनसापि नो अतिचरति, कुतो पन कायेन, म. नि. 3.213-14: सि वर्त. म. पु. ए. व. नेतं छन्नं पतिरूपं यं त्वं अतिचरसि मं, पे. व. 361; - रामि उ० पु०, ए. व. नाह तं अतिचरामि, कायेन उद चेतसा, पे. व. 362; - न्ति प्र. पु. ब. व. रविखता अतिचरन्ति सामिकं जा. अड्ड 5.450; - मानाय स्त्री०, वर्त. कृ., च. वि., ए. व. सो मं अतिचरमानाय सामिको एतदब्रवि, पे. व. 361; - रे विधि., प्र. पु. ए. व. कं वापि इत्थी नातिचरे तदअन्ति, जा. अड. 5.441 रितुं निमि कृ. तस्स पन गतदिवसतो पद्वाय ब्राह्मणी अतिचरितुं आरद्धा जा. अड्ड 1473; रित्वा पू. का. कृ. - पुरिसा हि परस्स दारेसु अतिचरित्वा कालं करवा.... इतियभावं आपज्जन्ति ध. प. अट्ट. 1.186
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रिता पु. क. ना. प्र. वि. ए. व. [ अतिचरितृ]. व्यभिचारी, व्यभिचारिणी - नाभिजानामि नकुलपितरं गहपतानिं मनसापि अतिचरिता, कुतो पन कार्यन अ. नि. 1 ( 2 ) 71 नाभिजानामि सामिकं मनसापि अतिचरिता, अ. नि. 2(2).209.
अतिचारी पु.. [अतिचारी] व्यभिचारी, दुष्कर्म करने वाला, निर्धारित मर्यादा का अतिक्रमण करने वाला - अतिचारी च दुस्सीलो अप्पस्सुतो च कुसीतो स. नि. 2 (2). 238: रिनी स्त्री. व्यभिचारिणी स्त्री जारी चेवातिचारिणी, अभि. प. 238; सा आनीतदिवसतो पट्ठाय अतिचारिनी अहोसि, घ. ए. अड्ड. 2.202 तस्साहं भरिया आसिं, दुस्सीला अतिचारिनी, पे. व. 360.
अतिचिण्ण त्रि. भू. क. कृ. [अतिचीर्ण] अतिक्रान्त, उल्लंघित, मर्यादाओं के बाहर जाकर दुराचार के रूप में किया गया अतिथिष्णो मया धम्मो, तं मे अक्खाहि पुच्छितोति, जा. अट्ठ. 5.256.
अतिचित्र [अतिचित्र ] अत्यन्त असाधारण प्रकृति वाला, चित्र-विचित्र अतिचित्रानि पञ्हपटिभानानि विसज्जितानीति मि. प. 25.
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