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अट्टि 93
अद्वित स. नि. 1(2).27; अ. नि. 1(1)66; अट्ठीति ... द्वतिस अट्टिकच्छक पु., एक विशाल वृक्ष का नाम, अंजीर वृक्ष का दन्तट्ठीनि अवसेसानि, विसुद्धि. 1.244; 2. आंठी, गुठली - एक भेद - कच्छकोति अष्टिकच्छको, स. नि. अट्ठ. 3.188. तेसं अम्बं खादित्वा अट्टि रोपितं न सम्पज्जति, जा. अट्ठ. अट्टिकच्छप पु., कछुआ, कच्छप, कूर्म, - महाकुम्मकुलन्ति 2.86; कोचिदेव परिसो पक्कं अम्बं खादित्वा अलुि रोपेय्य, मि. महन्तं अद्विकच्छपकुलं, स. नि. अट्ठ. 2.181. प. 84; - क नपुं [अस्थिक], हड्डी - अडिकानि विपकिण्णानि अडिंकत्वा/अद्विकत्वा/अद्विकत्वान अट्ठि + Vकर का होन्ति, पारा. 43; अद्विकानेव सेसानि, दी. नि. 2.254; स. पू. का. कृ., किसी वस्तु के विचारणीय होने की प्रकृति का उ. प. में द्रष्ट., अम्बल., ताल., मधुकफल., कदल. अनुभव करके, अत्यवहित होकर, ध्यान लगाकर, मन में इत्यादि के अन्त.; - कङ्कल पु., [अस्थिकङ्काल], हड्डियों का धारण कर - यो कोचिमा अट्टिकत्वा सुणेय्य, लभेथ पुब्बापरिय ढांचा, अस्थिपञ्जर - अपि नु खो सो कुक्कुरो अमुं अडिकङ्कलं विसेसं. जा. अट्ठ. 5.144; अट्टिकत्वाति अत्तनो अत्थिकभावं ... पलेहन्तो जिघच्छादुब्बल्यं पटिविनेय्या ति, म. नि. 2.29; कत्वा अत्थिको हत्वा सक्कच्चं सणेय्य, जा. अट्ठ. 5.145; कप्पं सन्धावतो संसरतो सिया एवं महाअट्टिकङ्कलो अद्विपुञ्जो विहायाय विक्खपमलं अटिकत्वान साधुकं सद्धम्मो. 220; यं अद्विरासि यथायं वेपुल्लो पब्बतो, स. नि. 1(2).167; - तथागतप्पवेदिते धम्मविनये देसियमाने अद्विंकत्वा मनसिकत्वा कङ्कलकुटि स्त्री., अस्थिकङ्काल से निर्मित शरीर, अस्थिपञ्जर सब्बचेतसा समन्नाहरित्वा ओहितसोतो धम्म सुणाति, म. से निर्मित शरीर - अट्ठिकङ्कलकुटि चे सा, मक्कटावसथो नि. 1.407; साधुकं सुणोमाति अहिँ कत्वा मनसि कत्वा इति, सु. नि. अट्ठ. 1.27; - कङ्कलकुटिका स्त्री., उपरिवत् सब्बचेतसा समन्नाहराम, महाव. 131. - अट्ठिकङ्कलकुटिके, मंसन्हारुपसिब्बिते, थेरगा. 1153; - अट्ठिकसुत्त नपुं., स. नि. के बोज्झङ्ग-संयुत्त के सातवें वर्ग कल्याण नपुं., दांतों की अस्थियों का सौन्दर्य - केसकल्याणं के प्रथम सुत्त का नाम, कुछ संस्करणों में अद्विकमहप्फल मंसकल्याणं, अडिकल्याणं, छविकल्याणं, वयकल्याणन्ति, नाम से भी उल्लिखित, स. नि. 3(1).150. ध. प. अट्ट, 1.217; - कङ्कलसन्निम त्रि., अस्थिकङ्काल के अढिकुम्म पु., कछुआ - कुम्मोति अढिकुम्मो, कच्छपोति समान - अडिकलसन्निभा अप्पस्सादढेन, थेरीगा अट्ठ तस्सेव वेवचनं, स. नि. अट्ठ. 3.72, द्रष्ट. अट्टिकच्छप, 311; - कदली स्त्री., बीजयुक्त फलवाला केला का पेड़ - (ऊपर). मोचाति अट्ठिककदलियो, जा. अट्ठ. 5.402; - कीळन नपुं., अद्वित' त्रि., ठित का निषे., [अस्थित], अस्थिर, अविच्छिन्न, अस्थियों की क्रीड़ा, हड्डियों का खेल, अस्थियों को लेकर निरन्तर, असुदृढ़, चञ्चल, स्पन्दनशील; - सभाव त्रि., क्रीडाप्रदर्शन - अद्विकीळनसदिसं नच्चं दिस्वा..., सु. नि. अस्थिर प्रकृतिवाला, शिथिल स्वभाववाला - अद्वितधम्माति अट्ठ. 1.90; - कोटि त्रि., हड्डी का किनारा या छोर - नहितसभावा, दी. नि. अट्ठ. 3.87; द्रष्ट. 'अहितकारी', अडिकोटिं तुण्डेन पहरि जा. अट्ठ. 3.22; - चम्म नपुं.. द्व. 'अद्वितधम्म' तथा 'अद्वितपधान' के अन्त. (आगे) विलो. स., अस्थि एवं चर्म, हड्डी एवं चमड़ा - पुन किसिके ति अनट्टित. वचनं अविचम्मन्हारुमत्तसरीरताय अतिविय किसभावदस्सनत्थं अद्वितः त्रि., आ + Vठा का भू. क. कृ. [आस्थित]. वुत्तं, पे. व. अट्ठ. 58; - चम्ममत्त त्रि., वह, जिसके शरीर अधिष्ठित, अभिप्रेत, सुदृढीकृत प्रतिज्ञात - अद्वितं मे मनस्मि में केवल हड्डी और चमड़ा मात्र शेष है - न उदकं पिवि. मे, अथो मे हदये कतं, जा. अट्ठ. 2.207; - कारी त्रि., परिसुस्सित्वा किसा अट्ठिचम्ममत्ता अहोसि, जा. अट्ठ. अप्रमादी, सदैव क्रियाशील, निरन्तर कार्य करने वाला, 2.280; - चम्मावसेस त्रि., वह, जिसकी हड्डी और चमड़ी शान्त मन से काम करने वाला - सक्कच्चकारी सातच्चकारी शेष है - सा खुदापीळिता अद्विचम्मावसेसा किसा अहोसि. अद्वितकारी ..., महानि. 42; - किरियता स्त्री., भाव., जा. अट्ठ. 2.168; - परिकिण्ण त्रि., अस्थियों से परिपूर्ण, अप्रमाद-पूर्वक क्रिया की स्थिति, दृढ़कर्मपरायणता - या ' हड्डियों से भरा हुआ - निवेसनं अट्ठि(क)परिकिण्णं दिस्वा कुसलानं धम्मानं भावनाय सक्कच्चकिरियता सातच्चकिरियता ..... जा. अट्ठ. 1.381; पाठा. अहि(क)-परिपुण्ण - सहगत अद्वितकिरियता ..., ध. स. 1379; -धम्म त्रि., वह, जो त्रि., अस्थि की संज्ञा से युक्त, अस्थि की संज्ञा को रखने धर्म में सुदृढ़ रूप से अवस्थित है, स्थिर स्वभाव वाला - वाला - अष्टि(क)सञ्जासहगतं धम्मविचयसम्बोज्झङ्गभावेति. अद्वितधम्मा समणा सक्यपुत्तिया विहरन्तीति, दी. नि. 3.99; स. नि. 3(1).150.
अद्वितधम्माति नद्वितसभावा, दी. नि. अट्ठ. 3.87; - वत
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