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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पद्मावती के नवनागों की धर्म-साधना : ७७ धर्म एक स्वेच्छापूर्ण अन्तःकरण की वस्तु होते हुए भी भारशिवों ने अपने आचरण एवं प्रचार के द्वारा सम्पूर्ण समाज के सम्मुख धर्म का एक ऐसा चित्र प्रस्तुत किया कि व्यक्तियों ने स्वेच्छापूर्वक उस धर्म को स्वीकार कर लिया। समाज में शिव और विष्णु की उपासना की एक प्रबल लहर दौड़ गयी। धर्म से विजातीय तत्वों को निकाल फेंका गया और समाज ने हिन्दू धर्म के उस स्वरूप को प्रतिस्थापित किया जो शताब्दियों के थपेड़ों के बाद भी अक्षुण्ण बना रहा। भारशिवों ने जिन सामाजिक और धार्मिक आदर्शों को अपनाया वे आज भी हिन्दुत्व की रक्षा कर रहे हैं। साधारणतः विजित राज्यों की प्रजा के जीवन के आदर्श विजेताओं के आदर्शों के अनुसार बदल जाते हैं किन्तु भारशिवों के सम्बन्ध में हमें ज्ञात होता है कि गुप्तों ने पद्मावती के राजा और प्रजा दोनों के जीवनादर्शों को बड़े गौरव के साथ अपनाया था। उन्होंने भारशिवों से विवाह सम्बन्ध किये और उनकी प्रशस्ति को अपने शिलालेखों में स्थान दिया । इसी प्रकार वाकाटकों के लेखों में भी भारशिवों की प्रशंसा मिलती है । इसका एक मात्र कारण भारशियों की श्रेष्ठता और प्रजा पर उसके प्रभाव के अतिरिक्त और क्या हो सकता है। भारशिवों ने कभी राज्य लोलुपता नहीं दिखायी । वे एक सच्चे मानवधर्म के प्रचार कार्य में लगे हुए थे, व्यष्टि के कल्याण में उनकी आस्था थी, जिसके लिए निरन्तर प्रयत्नशील रहे। पद्मावती उस समय का एक धार्मिक संस्थान थी। यहाँ शिव और विष्णु के मन्दिर मिले हैं, माणिभद्र यक्ष की मूर्ति मिली है और एक शिवलिंग की प्राप्ति हुई है । इस बात का भी प्रमाण मिलता है कि उस काल में सूर्य की उपासना भी की जाती होगी। शिव की उपासना उत्तर से ले कर सुदूर समुद्र तट तक व्यापक हो चली थी। त्रिशूलधारी शिव मानव के लिए कल्याणकारी थे। इस समय तक पद्मावती पर बौद्ध-धर्म का प्रभाव शिथिल और हिन्दू-धर्म के सर्वव्यापक स्वरूप का प्रभाव गहरा होता जा रहा था। धर्म का समन्वयवादी स्वरूप इस युग में अपना प्रभुत्व स्थापित कर रहा था और समाज ने इसी स्वरूप को अनेक शताब्दियों तक स्वीकार किया। पद्मावती के जीवन-दर्शन की यह अमूल्य देन है। __ मुख्य मार्ग पर स्थित पद्मावती ने तत्कालीन सांस्कृतिक जीवन को नयी दिशा देने में अभूतपूर्व योगदान दिया है । सादा जीवन उच्च विचारों की परिकल्पना भारशिवों ने की थी। वे सत्ता से निलिप्त रहने का प्रयास करते रहे । यद्यपि उन्होंने प्रजा के आर्थिक विकास में पूरापूरा सहयोग दिया। व्यक्तियों के जीवन को उन्नत बनाने का प्रयत्न भी किया गया किन्तु व्यक्ति को आत्म-विकास के लिए स्वतंत्र रूप से अनेक अवसर मिलते थे। कुछ प्रतिष्ठित और सम्पन्न व्यक्ति मिल कर धार्मिक कृत्यों में हाथ बंटाते थे। माणिभद्र यक्ष की स्थापना ऐसे ही व्यक्तियों ने की थी । धनी और सम्मानित पुरजन दान देने में आस्था रखते थे और सामाजिक जीवन को सुरुचिकर बनाने में पूरा-पूरा सहयोग देते थे। सांस्कृतिक संस्थान और धार्मिक स्थल होने के साथ-साथ पद्मावती व्यापार का एक प्रमुख केन्द्र था। मुख्य मार्ग पर स्थित होने के कारण सार्थवाह यहाँ ठहरते थे और वस्तुओं का आदान-प्रदान होता था। यही कारण है कि ईसा के प्रारम्भिक तीन-चार शताब्दियों में पद्मावती ने आर्थिक समृद्धि के वे दिन देखे जो आज भी नहीं भुलाये जा सकते हैं । कलाओं For Private and Personal Use Only
SR No.020523
Book TitlePadmavati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Sharma
PublisherMadhyapradesh Hingi Granth Academy
Publication Year1971
Total Pages147
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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