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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org पद्मावती के ध्वंसावशेष : ५७ परम्परागत् वंश नाम अंकित है । मुद्रा लेख में राजा के नाम से पूर्व महाराजा श्री अथवा अधिराज श्री शब्द भी अंकित मिले हैं । हरिहर त्रिवेदी ने कुछ तांबे के सिक्के प्रकाशित किये हैं। इनके ऊपर एक ओर छह पंखुड़ियों वाला कमल बना हुआ है, साथ में कच्छप, स्वस्तिक, वृषशृंग तथा उज्जयिनी नामक चिह्न हैं । ये सिक्के पद्मावती की टकसाल के हैं। उनका मत है कि पद्मावती में ये ईसा की पहली तथा दूसरी शताब्दी में प्रचलित थे । किन्तु उन्होंने यह भी लिखा है कि ये सिक्के नाग राजाओं के पद्मावती में राज्य स्थापना करने के पहले जारी किये गये थे । उनकी यह धारणा सम्भवत: इस आधार पर है कि नाग राजाओं ने अपने निज के सिक्के भी जारी किये थे, परन्तु यह स्मरणीय है कि जनपदों के उच्छेत्ता नाग राजा नहीं, गुप्त सम्राट् थे । पद्मावती की टकसाल के सिक्कों का उल्लेख श्री गर्दे ने इनका सर्वप्रथम स्पष्ट रूप से प्रकाशन किया है। अस्तित्व का प्रमाण मिलता है । ( पृ० ३७९) (दे० पृ० ३४) महोदय ने भी किया था, परन्तु त्रिवेदी इन सिक्कों से पद्मावती जनपद के नागवंश के कुछ सिक्के ब्रिटिश संग्रहालय में भी हैं । ये सिक्के शेषदात, रामदात और शिशुचन्द्रदात के माने जाते हैं। डॉ० काशी प्रसाद जायसवाल ने इन सिक्कों को उन पर अंकित लिपि के आधार पर ईसा पूर्व की पहली शताब्दी का बताया है । उनके अनुसार शेषदात, रामदात और शिशुचन्द्रदात राजा ही क्रमशः शेषनाग, रामचन्द्र और शिशुनन्दी के नाम से हित किये जाते हैं । इन राजाओं के परस्पर सम्बद्ध होने का एक मात्र कारण इनके सिक्के ही हैं । इस सम्बन्ध में एक अन्य बात भी विचारणीय है । वीरसेन के सिक्के तथा उक्त तीनों राजाओं के सिक्कों में समानता है । वीरसेन के जिन दो सिक्कों का उल्लेख प्रो० रैप्सन एवं जनरल कनिंघम ने किया है, उससे सिद्ध होता है कि वीरसेन नागवंशीय राजा था । प्रो० रंप्सन द्वारा उल्लिखित सिक्के में एक ओर राजसिंहासन का चित्र अंकित है जिस पर एक स्त्री आसीन है । इस स्त्री के हाथ में घड़ा है। अनुमानतः यह स्त्री गंगा होंगी । राजसिंहासन के पीछे खड़े नाग का चित्र अंकित है। जनरल कनिंघम वाले सिक्के में भी खड़े नाग का चित्र अंकित है । इस चित्र में एक पुरुष का चित्र बना है । नाग के चित्र से यह कह सकना युक्तिसंगत प्रतीत होता है कि यह नागवंश का सिक्का है और वीरसेन नाग है । उक्त चार राजाओं के अतिरिक्त उत्तमदात, पुरुषदात, कामदात और शिवदात के भी सिक्के मिले हैं। एक सिक्का जिसे प्रो० रेप्सन ने मदत्त पढ़ा, डॉ० जायसवाल ने भवदात पढ़ा है। पुराणों में शिवनन्दी का उल्लेख नहीं हुआ है किन्तु पवाया के सम्बन्ध में प्राप्त शिलालेख में शिवनन्दी का उल्लेख है, सिक्के में शिवदात अंकित है। इससे लगता है कि यह शिवनन्दी शिवदात ही होगा क्योंकि नन्दी भी नागवंशीय चिह्न है, नागों के सिक्कों पर नन्दी अथवा वृष, नाग अथवा साँप और त्रिशूल के चिह्न भी अंकित मिलते हैं। शिवनन्दी पद्मावती का Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir राजा था । दात शब्द मूलतः दाता के अर्थ में प्रयुक्त हुआ होगा । यह राजाओं की उदारता का १. अंधकार युगीन भारत, पृष्ठ १६-६६ ८ For Private and Personal Use Only
SR No.020523
Book TitlePadmavati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Sharma
PublisherMadhyapradesh Hingi Granth Academy
Publication Year1971
Total Pages147
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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